अखिलेश यादव सरकार के जाते ही जेपीएनआईसी का मामला लखनऊ विकास प्राधिकरण के गले की फांस बना हुआ है। सपा सरकार के इस ड्रीम प्राजेक्ट पर योगी सरकार ने आते ही नजरें टेढ़ी कर लीं। मामले की पड़ताल में कई तरह की गड़बड़ी और मनमानी सामने आई।
अखिलेश यादव के ड्रीम प्रोजेक्ट जेपीएनआईसी की डीपीआर गायब, एलडीए अपनों पर कराएगा एफआईआर!
Jun 28, 2024 12:58
Jun 28, 2024 12:58
- डीपीआर से बाहर जाकर कराए करोड़ों के काम का एलडीए ने किया भुगतान
- कई अफसरों की गर्दन फंसना तय, जांच में सामने आएगा सच
सपा सरकार में शुरू हुआ 18 मंजिला प्रोजेक्ट
लखनऊ विकास प्राधिकरण के दफ्तर के पास 18 मंजिल के जेपीएनआईसी का निर्माण सपा सरकार में वर्ष 2013 से 2016 के दौरान किया गया था। इस दौरान करीब 865 करोड़ रुपए खर्च किए गए। बाद में भाजपा सरकार के आने के बाद ये प्रोजेक्ट पूरी तरह से रुक गया और इसकी लागत से लेकर अन्य बिंदुओं पर कई सवाल उठाए गए। सपा सरकार में जेपीएनआईसी के किए गए निर्माण में अनियमितताओं का आरोप लगाया गया, जिसके बाद योगी सरकार द्वारा वर्ष 2017 में प्रोजेक्ट की जांच कराने का निर्णय किया।
मुख्य सचिव ने दिए जांच के आदेश
इसके बाद मुख्य सचिव की ओर से इसके आदेश जारी किए। जेपीएनआईसी के निर्माण में 865 करोड़ रुपए की डीपीआर की जांच का निर्देश दिया गया। शासन की व्यय वित्त समिति को इसका जिम्मा दिया गया। इसमें कहा गया कि समिति देखेगी कि डीपीआर और मंजूरी से अलग हटकर कौन से काम कराए गए। डीपीआर में शामिल गैर जरूरी कामों का भी परीक्षण करने की बात कही गई। इसे लेकर एलडीए से रिपोर्ट भी मांगी गई। इसके साथ ही योगी सरकार ने बिना बजट बढ़ाए जेपीएनआईसी के काम पूरा करने के लिए भी आदेश दिया। इसके लिए न्यूनतम कामों को शामिल करते हुए 865 करोड़ के बजट में ही व्यय वित्त समिति की अनुमति लेकर प्रोजेक्ट पूरा करने को कहा गया।
एलडीए के अफसरों की मिलीभगत
मुख्य सचिव के निर्देश के बाद आवास विभाग के सचिव ने लखनऊ विकास प्राधिकरण को पत्र भेजा और पूर्व में स्वीकृत बजट में ही जेपीएनआईसी के काम कराने को कहा गया। इसके साथ ही स्पष्ट तौर पर कहा गया कि बिना सरकार की मंजूरी के जो काम प्राधिकरण ने कराए, उसका भुगतान शासन स्तर पर नहीं किया जाएगा। जो काम पूर्व स्वीकृत बजट के अलावा कराए गए हैं, उनका भी भुगतान लखनऊ विकास प्राधिकरण को शासन नहीं करेगा। इस तरह के काम कराने वालों की जिम्मेदारी भी तय करने का आदेश दिया गया।
जांच टीम को नहीं सौंपी गई डीपीआर
हालांकि इतना समय गुजरने के बाद भी मामला लटका हुआ है। जांच कर रही टीम डीपीआर को लेकर लगातार लखनऊ विकास प्राधिकरण से मांग कर रही है। लेकिन, अभी तक उसे इसे सौंपा नहीं गया है। अब डीपीआर के गायब होने की बात कही जा रही है। कहा जा रहा है कि कई लोगों की गर्दन फंसने की आशंका में इसे गायब कर दिया गया है। ऐसे में आवास एवं शहरी नियोजन के अपर मुख्य सचिव नितिन रमेश गोकर्ण ने प्राधिकरण के उपाध्यक्ष डॉ. इन्द्रमणि त्रिपाठी को प्रकरण में एफआईआर दर्ज करवाने के निर्देश दिए हैं।
एलडीए के गले की फांस बना प्रोजेक्ट, सामने आई मनमानी
दरअसल अखिलेश यादव सरकार के जाते ही जेपीएनआईसी का मामला लखनऊ विकास प्राधिकरण के गले की फांस बना हुआ है। सपा सरकार के इस ड्रीम प्राजेक्ट पर योगी सरकार ने आते ही नजरें टेढ़ी कर लीं। मामले की पड़ताल में कई तरह की गड़बड़ी और मनमानी सामने आई। बताया गया कि 203 करोड़ के विद्युत व यांत्रिक के काम की अनुमति डीपीआर में थी। लेकिन, इससे कहीं ज्यादा आगे बढ़कर 249 करोड़ के काम करा दिया गया। हैरानी वाली बात रही कि इसमें से 208 करोड़ खर्च का भुगतान भी एलडीए ने कर दिया। इतना सब कुछ शासन की मंजूरी के बिना कर दिया गया। इसके अलावा कई ऐसे काम जो डीपीआर में शामिल नहीं थे, उन्हें भी मनमानी पूर्वक कराया गया, जिससे बजट लगातार बढ़ता चला गया। अब जांच के दायरे में अधिकारियों के आने पर डीपीआर को ही गायब कर दिया गया है।
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