बसपा ने अभी तक अपने उम्मीदवारों की आधिकारिक घोषणा नहीं की है। चुनावों को लेकर हमेशा तत्पर रहने वाली मायावती की इस बार चुप्पी अपने आप में कई सवाल खड़े कर रही है।
लोकसभा चुनाव 2024 : न प्रत्याशियों की सूची, न कोई रैली... मायावती की चुप्पी किसी बड़े 'खेल' का संकेत तो नहीं?
Mar 13, 2024 17:27
Mar 13, 2024 17:27
- बसपा ने नहीं की प्रत्याशियों की आधिकारिक घोषणा
- ऐन वक्त पर बड़ा खेल कर सकती हैं मायावती
- मायावती की चुप्पी से खड़े हो रहे बड़े सवाल
प्रत्याशियों की आधिकारिक सूची भी नहीं
बसपा की पहचान देश में एक ऐसी राजनीतिक पार्टी के रूप में है, जो चुनावों से महीनों पहले, कभी-कभी तो सालों पहले ही यह एलान कर देती है कि किस सीट पर उनका कौन-सा प्रत्याशी चुनाव लड़ेगा। लेकिन 2014 के बाद से ये परिस्थिति बदली और फिर बदलती ही चली गई। हालात ये है कि पार्टी ने आधिकारिक तौर पर अपने प्रत्याशियों की सूची तक नहीं जारी की है। हालांकि मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से चंद सीटों पर उम्मीदवारों के नाम जरूर सामने आए हैं। बसपा की तरफ से अभी तक एक भी रैली तक नहीं आयोजित की गई है।
चुप्पी के क्या हैं मायने?
मायावती लंबे समय से वेट एंड वॉच की स्थिति में हैं। लंबे समय से उनके द्वारा 'अकेले लोकसभा चुनाव लड़ने' के एलान के अलावा कोई बड़ा बयान नहीं दिया गया है। लेकिन क्या ये सब कुछ उतना ही साधारण है, जितना दिख रहा है या गेम कुछ और है? राजनीतिक जानकार बताते हैं कि मायावती वह नेता हैं, जो अपने एक फैसले से उत्तर प्रदेश की सियासत का पूरा गणित बदल सकती हैं। 2014 की मोदी लहर में बसपा ने भले ही एक भी सीट न जीती हो, लेकिन वह 4.14 फीसद वोट के साथ देश की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी थी।
2019 में भी मायावती ने बदला खेल
2014 के नतीजों के बाद मायावती को ये जरूर समझ में आ गया कि उन्हें 2019 की तैयारी किस तरह करनी है। इसलिए 2019 में मायावती ने 'साइकिल' की सवारी करना बेहतर समझा और उस चुनाव में उनकी पार्टी ने 10 सीटें जीतीं। हालांकि इस चुनाव में बसपा भले ही 3.62 फीसदी वोट के साथ चौथे नंबर पर रही, लेकिन उसे 10 सीटों पर अपना वर्चस्व दिखाने का मौका मिला। इस चुनाव में बसपा-सपा गठबंधन के सामने भाजपा प्रत्याशियों को काफी मशक्कत करनी पड़ी थी।
चुनाव से ऐन पहले करेंगी गठबंधन?
मायावती ने भले ही पहले दिन से कह रही हों कि उनकी पार्टी 2024 के चुनावों में अकेले लड़ेगी, लेकिन राजनीतिक गलियारों में दबे जुबान में इस बात की चर्चा जरूर हो रही है कि वह चुनाव से ऐन पहले कोई बड़ा फैसला ले सकती हैं। संभव कि बसपा समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन कर ले। अगर ऐसा होता है कि यह भाजपा के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं होगा।
यूपी में बसपा की स्थिति क्या?
80 लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश राज्य में 21 फीसदी आबादी दलितों की है। इनके बीच मायावती की अच्छी पैठ है। कई वरिष्ठ पत्रकार बताते हैं कि कांशीराम के समय से ही बसपा दबाव बनाने वाले ग्रुप की तरह काम करती है। 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में बसपा को 19 सीटें मिली थीं और पार्टी का वोट शेयर 22 फीसदी था। वहीं 2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा को महज 1 सीट मिली, लेकिन बावजूद इसके पार्टी का वोट शेयर 13 फीसदी था। एक अनुमान के मुताबिक यूपी में दलितों की 65 उपजातियां हैं। इसमें से भी करीब 50 फीसदी आबादी जाटव है। मायावती स्वयं जाटव समाज से आती हैं। ऐसे में दलित वोटों के लिए मायावती की काट खोजना अभी भी राजनैतिक पार्टियों के लिए टेढ़ी खीर है।
भाजपा के साथ जाने की कितनी संभावना?
मायावती पर भ्रष्टाचार के तमाम गंभीर आरोप है। ऐसे में एक तबके का मानना है कि मायावती पर केंद्र सरकार का एक अघोषित दबाव है और यही वजह है कि वह अब तक किसी तरह की घोषणा करने से परहेज कर रही हैं। लेकिन राजनीतिक जानकार मानते हैं कि भाजपा कभी लोकसभा चुनाव में बसपा के साथ गठबंधन पर विचार नहीं करेगी। इसकी वजह ये है कि मायावती अगर अकेले चुनाव लड़ती हैं, तो इंडिया ब्लॉक के वोटों में बड़ी सेंधमारी होगी और इसका सीधा फायदा भाजपा को मिलेगा। वहीं उत्तर प्रदेश में कई ऐसी सीटें भी हैं, जिन पर भाजपा और बसपा के बीच सीट शेयरिंग पर सहमति नहीं बन पाएगी।
बसपा की क्या है रणनीति?
लोकसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा मार्च के दूसरे सप्ताह के अंत तक हो सकती है। इस बीच भाजपा ने अपनी पहली लिस्ट जारी कर दी है, जिसमें उत्तर प्रदेश की 51 सीटें हैं। पार्टी की दूसरी लिस्ट बुधवार तक आने की संभावना है। वहीं कांग्रेस ने भी अपनी दो सूची जारी कर दी है, लेकिन इसमें से एक में भी यूपी की किसी सीट का नाम नहीं है। उधर समाजवादी पार्टी ने भी अलग-अलग सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार दिए हैं। ऐसे में संभव है कि मायावती भाजपा या कांग्रेस और सपा गठबंधन से प्रत्याशियों के एलान का इंतजार कर रही हों। जानकार इसके पीछे जातीय और ध्रुवीकरण की राजनीति को आधार बता रहे हैं। लेकिन अचानक से बड़ा फैसला लेकर सबको चौंकाने वाली मायावती ऐन मौके पर क्या 'खेल' करेंगी, ये कोई नहीं जानता।
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