विशेषज्ञों के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के संकट से निजात के लिए कुछ बिंदुओं पर फोकस करना बेहद जरूरी है। इनमें कृषि विविधिकरण, फसलों का आच्छादन बढ़ाना, कृषि जलवायु के अनुकूल प्रजातियों का विकास, कम लागत में अधिक उत्पादन, प्राकृतिक खेती और तैयार उत्पाद का समय से वाजिब दाम प्रमुख रूप से शामिल हैं।
जलवायु परिवर्तन से इंडो गंगेटिक बेल्ट में 50 फीसदी गिरेगा उत्पादन : भविष्य की चुनौती को लेकर निकाला रास्ता
Aug 19, 2024 23:24
Aug 19, 2024 23:24
- दलहन, तिलहन, मोटे अनाज, सब्जियां और बागवानी बनेंगे प्रभावी विकल्प
- कृषि विविधिकरण, सिंचन क्षमता में विस्तार के जरिए प्रभावी समाधान की तैयारी
बिजनौर से बलिया तक गंगा के विस्तार में खेती होगी प्रभावित
उत्तर प्रदेश में बिजनौर से बलिया तक गंगा के विस्तार को देखते हुए इसका असर देखने को मिलेगा। कहा जा रहा है कि जलवायु परिवर्तन से इंडो गंगेटिक बेल्ट के प्रदेश में विस्तार के अनुसार असर पड़ेगा। चूंकि उत्तर प्रदेश दूध समेत खाद्यान्न, साग भाजी और कई फलों के उत्पादन में देश में अग्रणी है, लिहाजा इस जलवायु परिवर्तन का असर सिर्फ उत्तर प्रदेश पर ही नहीं पूरे देश के खाद्यान्न और पोषण सुरक्षा पर पड़ेगा। इसका असर देश और प्रदेश पर कम से कम हो, इसके लिए उत्तर प्रदेश सरकार हर संभव प्रयास कर रही है। इसमें केंद्र सरकार की भी मदद मिल रही है।
इन बिंदुओं पर फोकस जरूरी
विशेषज्ञों के मुताबिक इस संकट से निजात के लिए कुछ बिंदुओं पर फोकस करना बेहद जरूरी है। इनमें कृषि विविधिकरण, फसलों का आच्छादन बढ़ाना, कृषि जलवायु के अनुकूल प्रजातियों का विकास, कम लागत में अधिक उत्पादन, प्राकृतिक खेती और तैयार उत्पाद का समय से वाजिब दाम प्रमुख रूप से शामिल हैं। इन सबमें सिंचाई के संसाधनों के विस्तार की भूमिका बेहद अहम है। उत्तर प्रदेश पर इस मामले में प्रकृति और ईश्वर की बहुत कृपा रही है। वहीं बाण सागर, अर्जुन सहायक नहर और सरयू नहर राष्ट्रीय योजनाओं के पूरा होने से इस दिशा में मदद मिली है। योगी सरकार के कार्यकाल में 36 से अधिक छोटी और मझोली सिंचाई परियोजनाएं पूरी हुईं हैं। इनके पूरा होने से 23.23 लाख हेक्टेयर से अधिक अतिरिक्त भूमि सिंचित हुई। उत्तर प्रदेश में कृषि भूमि का 86 फीसदी रकबा सिंचित है।
कृषि विविधिकरण होने से एकल खेती का जोखिम घटा
सिंचाई क्षमता के विस्तार और अलग-अलग 9 एग्रो क्लाइमेट जोन की वजह से फसलोच्छादन और कृषि विविधिकरण भी बढ़ा है। इससे एकल खेती से होने वाला जोखिम भी घटा है। सरकार लगातार इसे बढ़ावा भी दे रही है। किसानों के लिए फसल तैयार होने के बाद उसका वाजिब दाम मिलना सबसे बड़ी आवश्यकता होती है। ऐसे में एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य को बढ़ाने के साथ इनके दायरे में कृषि विविधिकरण और क्लाइमेट चेंज की चुनौती से निबटने के लिए नई फसलों को भी लाने की पहल की गई है। इसी कड़ी में हाल ही केंद्र सरकार ने तुअर, उड़द और मसूर को भी एमएसपी पर खरीदने की घोषणा की।
दलहन का आयात घटने से विदेशी मुद्रा की होगी बचत
दलहन की खेती को प्रोत्साहन मिलने और इसका आयात घटने से बहुमूल्य विदेशी मुद्रा बचेगी। भारत विश्व में दलहन का सबसे बड़ा आयातक देश है। दुनिया की सर्वाधिक आबादी होने के नाते जब भी यहां मांग अधिक निकलती है तो अंतरराष्ट्रीय बाजार प्रभावित होते हैं और कीमतें बढ़ जाती हैं। इससे आयात का बजट बढ़ जाता है। दलहन का उत्पादन और उपलब्धता बढ़ने से गरीबों को जरूरी मात्रा में प्रोटीन मिल सकेगा। दलहन की सभी फसलें प्रकृति से नाइट्रोजन लेकर भूमि में फिक्स करती हैं, इसका लाभ अगली फसल के लिए बोनस होगा। यही नहीं दलहन की उड़द, मूंग,उड़द जैसी फसलें शॉर्ट ड्यूरेशन की होती हैं। इससे रबी और खरीफ के बीच एक और फसल लेने के लाभ के अलावा फसलोच्छादन भी बढ़ेगा।
प्राकृतिक खेती को दिया जा रहा बढ़ावा
प्राकृतिक खेती को बढ़ावा भी क्लाइमेट चेंज की चुनौतियों से मुकाबले की ही कड़ी है। हाल ही में केंद्र सरकार ने खेती और बागवानी की फसलों के लिए जिन 109 प्रजातियों को जारी किया है। उत्तर प्रदेश में खेती करने वालों की संख्या और यहां के वैविध्यपूर्ण जलवायु के मद्देनजर इसके बेहतर परिणाम सामने आने की बात कही गई है। ये सभी प्रजातियां अलग-अलग कृषि जलवायु क्षेत्र के अनुकूल हैं। इनका उत्पादन तो अधिक है ही रोगों, कीटों और बदलते जलवायु के प्रति भी प्रतिरोधी हैं। इसके साथ ही किसान सम्मान निधि और फसल बीमा जैसी योजनाओं से सरकार किसानों को स्वावलंबी बनाने के साथ आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा भी दे रही है।
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