यूपी में ऑर्गन ट्रांसप्लांट में प्राइवेट हॉस्पिटल से बेहद पीछे हैं सरकारी संस्थान : विदेशी मरीजों का वर्चस्व, जानें वजह

विदेशी मरीजों का वर्चस्व, जानें वजह
UPT | संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान

Oct 20, 2024 09:17

राष्ट्रीय अंग एवं ऊतक प्रत्यारोपण संगठन के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 1995 के बाद से अब तक केवल 2,546 लोगों ने मृत्यु के बाद अंगदान किया है। जीवित रहते हुए 34,094 लोगों ने अंगदान का विकल्प चुना है।

Oct 20, 2024 09:17

Lucknow News : अंग प्रत्यारोपण को लेकर जागरूकता के अभाव में देश में स्थिति चिंताजनक है। इसके विपरीत, विदेशी नागरिक इस विषय पर अधिक सजग नजर आते हैं। प्रदेश के निजी अस्पतालों में अंग प्रत्यारोपण कराने वाला हर तीसरा मरीज विदेशी नागरिक होता है। यह तथ्य संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (SGPGIMS)  और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के ट्रॉमा सेंटर के एक साझा अध्ययन में सामने आया है।

स्टेट ऑर्गन एंड टिश्यू ऑर्गनाइजेशन की रिपोर्ट
स्टेट ऑर्गन एंड टिश्यू ऑर्गनाइजेशन (SOTO) के आंकड़ों के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की गई है, जिसमें सरकारी और निजी अस्पतालों का आकलन किया गया है। दिसंबर 2020 से लेकर अप्रैल 2023 तक के बीच प्रदेश के 52 अस्पतालों में कुल 569 अंग प्रत्यारोपण हुए। इनमें से 153 प्रत्यारोपण सरकारी अस्पतालों में और 416 प्रत्यारोपण निजी अस्पतालों में किए गए। इस तरह देखा जाए तो सरकारी अस्पतालों में 26.9 प्रतिशत और प्राइवेट में 73.1 प्रतिशत प्रत्यारोपण हुए। 



सरकारी अस्पतालों में भर्ती सभी मरीज भारतीय, प्राइवेट हॉस्पिटल में विदेशी 
रिपोर्ट के अनुसार, सरकारी अस्पतालों में प्रत्यारोपण कराने वाले सभी मरीज भारतीय थे। लेकिन निजी अस्पतालों में किए गए 416 प्रत्यारोपणों में से 132 (31.7 प्रतिशत) मरीज विदेशी थे। इसका सीधा अर्थ है कि निजी अस्पतालों में हर तीसरा मरीज विदेशी होता है। निजी अस्पतालों में किडनी और लिवर प्रत्यारोपण की लागत 15 से 20 लाख रुपये तक होती है, जबकि सरकारी अस्पतालों में यह खर्च आधे से भी कम होता है। वहीं, विदेशों में यह खर्च लगभग दस गुना अधिक है।

राष्ट्रीय आंकड़ों की तुलना
राष्ट्रीय अंग एवं ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (NOTTO) के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 1995 के बाद से अब तक केवल 2,546 लोगों ने मृत्यु के बाद अंगदान किया है। जीवित रहते हुए 34,094 लोगों ने अंगदान का विकल्प चुना है। उत्तर भारत में सरकारी अस्पतालों में दो प्रत्यारोपण के बीच औसतन 142 दिन का अंतर होता है, जबकि निजी अस्पतालों में यह अंतर मात्र 12 दिन का है।

यूपी में प्रत्यारोपण सुविधाओं वाले अस्पताल सीमित
लखनऊ में किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (KGMU), डॉ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान (RMLIMS) और संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (SGPGIMS) में प्रत्यारोपण की सुविधाएं उपलब्ध हैं। इसके अलावा प्रदेश के कुछ चुनिंदा निजी अस्पतालों में भी यह सुविधा है। प्रदेश के अन्य हिस्सों में अंग प्रत्यारोपण के लिए बहुत कम अस्पताल उपलब्ध हैं, जिससे मरीजों को इलाज के लिए राजधानी या अन्य बड़े शहरों की ओर रुख करना पड़ता है।

राष्ट्रीय स्तर पर अंगदान की स्थिति
राष्ट्रीय स्तर की बात करें तो सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश में प्रतिवर्ष होने वाले लगभग 10 प्रतिशत अंग प्रत्यारोपण विदेशी नागरिकों के होते हैं। राष्ट्रीय अंग एवं ऊतक प्रत्यारोपण संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2023 में कुल 18,378 अंग प्रत्यारोपण हुए, जिनमें से 1,851 मरीज विदेशी थे। यह दर्शाता है कि विदेशी मरीज अंग प्रत्यारोपण के लिए तेजी से भारत की ओर रुख कर रहे हैं। विशेष रूप से बांग्लादेश, नेपाल और म्यांमार जैसे ऐसे देशों से जहां इस तरह की चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं या प्रारंभिक अवस्था में हैं।

देश के विभिन्न राज्यों में इतने हुए प्रत्यारोपण 
रिपोर्ट के अनुसार विदेशी मरीजों के अंग प्रत्यारोपण दिल्ली (1,445), राजस्थान (116), पश्चिम बंगाल (88), उत्तर प्रदेश (76), तेलंगाना (61), महाराष्ट्र (35), कर्नाटक (15), गुजरात (11), तमिलनाडु (3), और मणिपुर (1) में हुए हैं। भारत में अंग प्रत्यारोपण की उच्च गुणवत्ता और कम लागत ने इसे अंतरराष्ट्रीय चिकित्सा पर्यटकों के लिए एक प्रमुख गंतव्य बना दिया है।

अंग प्रत्यारोपण प्रक्रिया
अंग प्रत्यारोपण की प्रक्रिया में एक जीवित या मृत दानदाता से अंग निकालकर जरूरतमंद मरीज (ग्राही) में प्रत्यारोपित किया जाता है। जीवित व्यक्ति अपनी किडनी, पैंक्रियास का एक हिस्सा, और लीवर का एक हिस्सा दान कर सकता है। जबकि, एक मृत व्यक्ति दिल, फेफड़े, लीवर, किडनी, आंतें और कॉर्निया जैसे कई अंग दान कर सकता है। इस प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने के लिए भारत में कई सख्त नियम और प्रक्रियाएं लागू हैं, खासकर जब मामला विदेशी मरीजों का हो।

कठिनाइयां और संभावनाएं
यूं तो देश में अब अंग प्रत्यारोपण के क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ रहा है, लेकिन अंगदान के प्रति जागरूकता की कमी अभी भी एक बड़ी चुनौती है। देश में लाखों लोगों को अंग प्रत्यारोपण की जरूरत है, लेकिन जागरूकता और सामाजिक समर्थन की कमी के कारण इसे पर्याप्त रूप से पूरा नहीं किया जा रहा है। चिकित्सकों के अनुसार, देश में अंगदान के प्रति जागरूकता न होने के कारण अंग प्रत्यारोपण की स्थिति बेहद खराब है। हर साल देश में 25,000 अंग प्रत्यारोपण की जरूरत होती है, लेकिन केवल 1,500 ही हो पाते हैं। यदि मृत्युपरांत अंगदान को बढ़ावा दिया जाए और जागरूकता अभियानों को और मजबूत किया जाए, तो स्थिति में सुधार हो सकता है। 

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