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आजादी के बाद से ही रिजर्व रही है हरदोई की सीट : बसपा बेकरार, भाजपा हैट्रिक लगाने को तैयार, सपा का क्या हाल?

बसपा बेकरार, भाजपा हैट्रिक लगाने को तैयार, सपा का क्या हाल?
UPT | आजादी के बाद से ही रिजर्व रही है हरदोई की सीट

May 10, 2024 06:00

आजादी के बाद से ही हरदोई की लोकसभा सीट सुरक्षित रही है। इस पर सबसे ज्यादा बार कांग्रेस का ही कब्जा रहा। लेकिन 1989 के चुनाव में कांग्रेस की हरदोई से रुखसती ऐसी हुई कि आज तक वापसी नहीं हो पाई।

May 10, 2024 06:00

Short Highlights
  • सबसे ज्यादा बार कांग्रेस के पास रही सीट
  • 1989 के बाद खत्म हुआ कांग्रेस का दबदबा
  • 2014 की मोदी लहर में विपक्ष हुआ चित
Hardoi News : 13 मई को उत्तर प्रदेश की 13 लोकसभा सीटों के लिए चौथे चरण का मतदान होना है। इसमें शाहजहांपुर, खीरी, धौरहरा, सीतापुर, हरदोई, मिश्रिख, उन्नाव, फर्रुखाबाद, इटावा, कन्नौज, कानपुर, अकबरपुर और बहराइच शामिल हैं। इसके पहले हम आपको शाहजहांपुर, खीरी, धौरहरा और सीतापुर की लोकसभा सीट और 2024 में इन सीटों पर बन रहे सियासी समीकरणों के बारे में बता चुके हैं। आज बात हरदोई सीट की...

सबसे ज्यादा बार कांग्रेस के पास रही
हरदोई शहर का नाम हिरण्यकश्यप से जुड़ा है। इसका पहले नाम हरिद्रोही हुआ करता था। लेकिन समय के साथ अपभ्रंश के चलते यह हरिद्रोही से हरदोई हो गया। आजादी के बाद से ही यह लोकसभा सीट सुरक्षित रही है। इस पर सबसे ज्यादा बार कांग्रेस का ही कब्जा रहा। 1952 में हुए पहले आम चुनाव में कांग्रेस के बुलकाई राम वर्मा यहां से सांसद चुने गए। लेकिन अगले ही चुनाव में यह सीट कांग्रेस से छिन गई और 1957 में जनसंघ के डी. शिवादीन ने जीत दर्ज कर ली। लेकिन इसी साल हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने सीट वापस पा ली और छेदा लाल सांसद बने। इसके बाद 1962, 1967 और 1971 में कांग्रेस के किंदर लाल यहां से जीतकर संसद पहुंचे। 1977 में इमरजेंसी के बाद जब चुनाव हुए, तो जनता पार्टी के परमाई लाल को यहां की जनता ने सिर-आंखों पर बैठाया और जीताकर संसद भेजा। 1980 में कांग्रेस (इंदिरा) के मन्नी लाल ने हरदोई से चुनाव लड़ा और जीत गए। 1984 में फिर कांग्रेस ने यहां से जीत दर्ज की और किंदर लाल चौथी बार सांसद बने।

1989 के बाद खत्म हुआ कांग्रेस का दबदबा
1989 के चुनाव में कांग्रेस की हरदोई से रुखसती ऐसी हुई कि आज तक वापसी नहीं हो पाई। 1989 में जनता दल के टिकट पर परमाई लाल और फिर 1990 में चौधरी चांद राम जीते। इसके बाद 1991 में भारतीय जनता पार्टी के जीत की शुरुआत हुई। भाजपा के टिकट पर जय प्रकाश पहले 1991 और फिर 1996 में जीतकर संसद पहुंचे। लेकिन 1998 में समाजवादी पार्टी ने यह सीट भाजपा से छीन ली और उषा वर्मा ने जीत हासिल की। इसके अगले ही साल हुए चुनाव में अखिल भारतीय लोकतांत्रिक कांग्रेस के टिकट पर जय प्रकाश ने दोबारा जीत हासिल कर ली। फिर आया साल 2004, जब देश में यूपीए की सरकार बनी और हरदोई से सपा प्रत्याशी उषा वर्मा ने वापसी की। जीत का यह सिलसिला 2009 में भी बरकरार रहा।

मोदी लहर में विपक्ष हुआ चित
2014 में भाजपा ने अंशुल वर्मा को प्रत्याशी बनाया, जबकि सपा ने फिर से उषा वर्मा पर भरोसा जताया था। वहीं बसपा ने शिव प्रसाद वर्मा को टिकट दिया। इस चुनाव में अंशुल वर्मा को 3.6 लाख वोट मिले और बसपा के शिव प्रसाद वर्मा 2.79 लाख वोट के साथ दूसरे नंबर पर रहे, जबकि सपा की उषा वर्मा 2.76 लाख वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहीं। 2014 में अंशुल वर्मा को 81 वोटों के अंतर से जीत मिली। लेकिन 2019 में भाजपा ने अंशुल वर्मा का टिकट काट दिया और इससे आहत होकर वह सपा में शामिल हो गए। तब 'मैं हूं चौकीदार' का नारा चर्चा में था और इसके जवाब में अंशुल वर्मा अपना इस्तीफा भाजपा कार्यालय के चौकीदार को देकर आ गए थे। बहरहाल, 2019 में भाजपा ने जय प्रकाश को दोबारा टिकट दिया और वह  1.32 लाख वोटों के अंतर से जीतकर संसद पहुंचे। 2019 में जय प्रकाश को 5.68 लाख वोट मिले थे, जो हरदोई के इतिहास में अपने आप में एक रिकॉर्ड है। वहीं सपा और बसपा का गठबंधन होने का फायदा उषा वर्मा को मिला और वह 4.35 लाख वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रही थीं। इस चुनाव में कांग्रेस के वीरेंद्र कुमार 19 हजार वोटों के साथ तीसरे नंबर पर रहे।

क्या कहते हैं 2024 के समीकरण?
2024 में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने गठबंधन कर लिया है। सीट सपा के खाते में आई है और उषा वर्मा एक बार फिर मैदान में हैं। लेकिन अगर जमीनी हालात देखें, तो इस गठबंधन का कोई खास फायदा सपा को होता नहीं दिख रहा है। हरदोई, जो कभी कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था, आज वहां पार्टी हाशिए पर है। पिछले दो चुनावों में कांग्रेस प्रत्याशी गिनती के वोट पा रहे हैं। 2014 में कांग्रेस को मात्र 23 हजार वोट मिले, जबकि 2019 में यह ग्राफ और गिर गया। 2019 में तो कांग्रेस के उम्मीदवार को केवल 13 हजार वोट ही मिल पाए। अंशुल वर्मा की भले ही घर वापसी हो गई हो, लेकिन भाजपा ने टिकट इस बार भी जय प्रकाश को दिया है। वहीं बसपा की तरफ से भीमराव अंबेडकर उम्मीदवार बने हैं। जय प्रकाश और उषा वर्मा इसके पहले तीन बार आमने-सामने चुनाव लड़ चुके हैं, जिसमें से दो बार जीत जय प्रकाश और एक बार उषा वर्मा की हुई है। अब चौथी बार चुनावी मैदान में दोनों आमने-सामने होंगे।

कुर्मी वोटर तय करेंगे जनादेश?
हरदोई की लोकसभा सीट के अंतर्गत 5 विधानसभा क्षेत्र आते हैं, जिसमें सवायजपुर, शाहाबाद, हरदोई सदर, गोपामऊ और सांडी शामिल हैं। इन सारी सीटों पर भारतीय जनता पार्टी का कब्जा है। सवायजपुर में माधवेंद्र प्रताप, शाहाबाद से रजनी तिवारी, हरदोई से नितिन अग्रवाल, गोपामऊ से श्याम प्रकाश और सांडी से प्रभास कुमार भाजपा के विधायक हैं। हरदोई की सीट पर कुर्मी वोटर की संख्या ज्यादा है। यहां करीब 3 लाख कुर्मी वोटर हैं, जो जनादेश तय करने में महत्पूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसके अलावा 2.5 लाख के लगभग राजपूत और ब्राह्मण मतदाता हैं, वहीं 1 लाख वैश्य समाज का भी है। आंकड़े बताते हैं कि हरदोई की सीट पर अनुसूचित जाति और मुस्लिम वोटर की संख्या मिलाकर लगभग 44 फीसदी है। जाहिर है कि ये वोटर जिसके पक्ष में चले जाएं, उसकी जीत सुनिश्चित है। यही वजह है कि भाजपा, सपा और बसपा तीनों इसे लेकर कोई रिस्क नहीं लेना चाहते और तीनों अपने स्तर से वोटरों को साधने की जुगत में लगे हुए हैं। देखना दिलचस्प होगा कि 4 जून को फैसला किसके पक्ष में आएगा।

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