यह बच्चा फरवरी 2023 में केजीएमयू लाया गया था। बच्चे के घरवालों ने बताया कि उसकी मां भी एमडीआर टीबी से पीड़ित थी और निजी अस्पताल में प्रसव के बाद मां की मौत हो गई थी। गर्भ में ही बच्चा टीबी से संक्रमित हो चुका था। उसकी हालत गंभीर होने पर उसे केजीएमयू रेफर किया गया, जहां उसे ऑक्सीजन और वेंटिलेटर की सहायता से रखा गया।
केजीएमयू : चिकित्सकों ने गर्भ में एमडीआर टीबी संक्रमित बच्चे की बचाई जान, मां की मौत के बाद इस तरह किया इलाज
Oct 21, 2024 11:26
Oct 21, 2024 11:26
फरवरी 2023 में केजीएमयू लगाया गया नवजात
बाल रोग विभाग की डॉ. सारिका गुप्ता के मुताबिक यह बच्चा फरवरी 2023 में केजीएमयू लाया गया था। बच्चे के घरवालों ने बताया कि उसकी मां भी एमडीआर टीबी से पीड़ित थी और निजी अस्पताल में प्रसव के बाद मां की मौत हो गई थी। गर्भ में ही बच्चा टीबी से संक्रमित हो चुका था। उसकी हालत गंभीर होने पर उसे केजीएमयू रेफर किया गया, जहां उसे ऑक्सीजन और वेंटिलेटर की सहायता से रखा गया।
कई चिकित्सकों ने अपने अनुभव से किया एमडीआर टीबी का इलाज
राष्ट्रीय गाइडलाइन के अनुसार, एमडीआर टीबी का इलाज 18 महीने तक चलता है। इस बच्चे को पहले छह महीने तक सात दवाएं दी गईं, लेकिन उसका वजन नहीं बढ़ रहा था और उसे ऑक्सीजन सपोर्ट से हटाना भी मुश्किल हो रहा था। इसके चलते दिल्ली में डॉ. एसके काबरा और डॉ. वरिंदर सिंह के साथ ही केजीएमयू के डॉ. सूर्यकांत से लगातार संपर्क किया गया। बाल रोग विभाग की प्रो. माला कुमार और प्रो. एसएन सिंह ने भी इसके इलाज में अहम भूमिका निभाई। छह महीने बाद, बच्चे की हालत में सुधार होने लगा और जनवरी 2024 में उसे डिस्चार्ज कर दिया गया।
गर्भ में एमडीआर टीबी से संक्रमित बच्चे का पहला मामला
डॉ. सारिका गुप्ता ने बताया कि यह पहला ऐसा मामला है जहां गर्भ में ही एमडीआर टीबी से संक्रमित बच्चे की जान बचाई गई। इस विशिष्ट केस को प्रकाशन के लिए चिकित्सा जर्नल में भेजा गया है ताकि चिकित्सा जगत में इसे विस्तार से साझा किया जा सके।
एमडीआर टीबी की गंभीरता और इलाज की मुश्किलें
एमडीआर टीबी वह अवस्था होती है जब शरीर में दवाओं के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है। इस स्थिति में टीबी की सामान्य दवाएं काम नहीं करतीं। बच्चे को विशिष्ट दवाओं के सहारे रखा गया, लेकिन उसकी हालत इतनी गंभीर थी कि उसे प्रतिदिन दो इंजेक्शन दिए जाते थे। कुछ दवाएं जो गाइडलाइन में शामिल नहीं थीं, उनके इस्तेमाल की अनुमति भी नहीं मिली। ऐसे में, पुरानी दवाओं के सहारे ही इलाज जारी रखा गया।
इलाज के बाद बच्चा स्वस्थ
बच्चे की हालत इतनी खराब थी कि वह दूध भी नहीं पी पाता था। ऐसे में उसे नली के माध्यम से आहार दिया गया। जब वह थोड़ा बड़ा हुआ तो उसे कटोरी और चम्मच से दूध पिलाया गया। अब बच्चा स्वस्थ है और सामान्य तरीके से खाता-पीता है। डॉक्टरों की अथक मेहनत और सही इलाज की वजह से बच्चे की जान बचाई जा सकी।
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