ट्रॉमा सेंटर के बाहर अक्सर निजी अस्पतालों की एंबुलेंस खड़ी रहती हैं, जो घायल मरीजों को सीधा वहां ले जाती हैं। इससे इन अस्पतालों और ट्रॉमा सेंटर में काम करने वाले डॉक्टरों के बीच मिलीभगत के आरोप भी लगते हैं। एक प्रशासनिक अधिकारी के मुताबिक, कुछ जूनियर रेजिडेंट की इस तरह की गतिविधियों की शिकायत मिलने पर जांच कराई गई थी।
KGMU : ट्रॉमा सेंटर में मरीजों की दलाली में पांच जूनियर डॉक्टरों की सेवाएं समाप्त, प्राइवेट अस्पतालों से मिलीभगत का खुलासा
Nov 18, 2024 11:17
Nov 18, 2024 11:17
ट्रॉमा सेंटर में मरीजों की भारी भीड़
केजीएमयू के ट्रॉमा सेंटर में फिलहाल 450 बेड हैं। लेकिन, अधिकतर समय ये सभी बेड भरे रहते हैं। मरीजों की संख्या इतनी अधिक है कि हर दिन लगभग 100 से अधिक घायल मरीजों को स्ट्रेचर पर ही इलाज करना पड़ता है। इस भीड़भाड़ का फायदा उठाकर कुछ जूनियर रेजिडेंट मरीजों को बहकाकर निजी अस्पतालों में भेजने का काम कर रहे थे।
बेड की कमी का हवाला देकर मरीजों को प्राइवेट हॉस्पिटल भेजते थे जूनियर डॉक्टर
ट्रॉमा सेंटर में शाम और रात के समय आने वाले घायलों के लिए स्थिति और भी चुनौतीपूर्ण होती है। बेड की कमी के कारण इन्हें सही इलाज मिलने में देरी होती है। इस स्थिति का फायदा उठाकर कुछ जूनियर डॉक्टर मरीजों को यह कहकर निजी अस्पताल भेजते थे कि वहां उन्हें बेहतर इलाज और सुविधाएं मिलेंगी।
ट्रॉमा सेंटर के बाहर अक्सर खड़ी रहती है निजी अस्पतालों की एंबुलेंस
ट्रॉमा सेंटर के बाहर अक्सर निजी अस्पतालों की एंबुलेंस खड़ी रहती हैं, जो घायल मरीजों को सीधा वहां ले जाती हैं। इससे इन अस्पतालों और ट्रॉमा सेंटर में काम करने वाले डॉक्टरों के बीच मिलीभगत के आरोप भी लगते हैं। एक प्रशासनिक अधिकारी के मुताबिक, कुछ जूनियर रेजिडेंट की इस तरह की गतिविधियों की शिकायत मिलने पर जांच कराई गई थी। जांच में इन आरोपों की पुष्टि होने पर तुरंत एक्शन लिया गया।
अस्पताल की छवि पर पड़ रहा था असर
इस प्रकार के मामलों से अस्पताल की छवि खराब हो रही थी और मरीजों के भरोसे पर गहरा असर पड़ रहा था। सरकारी की बेहतर चिकित्सा सुविधाओं पर भी सवाल उठ रहे थे। इसलिए जानकारी होने पर केजीएमयू प्रशासन ने तत्काल मामले की जांच पड़ताल की। इसके बाद आरोप सही पाए जाने पर इन डॉक्टरों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की गई।
महिला मरीज की हो चुकी है मौत
केजीएमयू में ईएनटी विभाग के रेजिडेंट डॉक्टर रमेश कुमार को हाल ही में प्राइवेट प्रैक्टिस के आरोप में निलंबित किया गया है। डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक के निर्देश पर ये कार्रवाई की गई है। दरअसल लखीमपुर खीरी की 32 वर्षीय पूनम मौर्य की मौत के बाद ये कदम उठाया गया। इस केस में केजीएमयू में डॉक्टरों की निजी अस्पतालों से मिलीभगत का खुलासा हुआ।
डॉक्टर की निजी अस्पताल से मिलीभगत से खुलासा
मृतक महिला के पति सुरेन्द्र पाल सिंह के मुताबिक सितंबर में केजीएमयू के डॉ. रमेश ने उन्हें गले में मस्सा होने के कारण ऑपरेशन कराने की सलाह दी। केजीएमयू में काफी लंबी वेटिंग का हवाला देते हुए डॉ. रमेश ने उनसे यह ऑपरेशन खदरा स्थित एक निजी अस्पताल में करने को कहा। इसके बाद विगत 25 अक्तूबर को पूनम मौर्य को खदरा के केडी अस्पताल में भर्ती कराया गया। शाम को ऑपरेशन के बाद उनकी हालत गंभीर हो गई और आनन-फानन में उन्हें केजीएमयू के शताब्दी वेंटिलेटर यूनिट में भर्ती कराया गया, लेकिन शनिवार को उनकी मौत हो गई। इस घटना ने केजीएमयू के वेंटिलेटर यूनिट और निजी अस्पतालों के बीच की मिलीभगत की पोल खोल दी। मरीज को निजी अस्पताल भेजने में चिकित्सकों की भूमिका साफ तौर पर उजागर हुई।
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