चौथे चरण के लिए 13 सीटों पर 13 मई को वोट डाले जाएंगे। इनमें सबसे महत्वपूर्ण सीट खीरी की है। तिकुनिया कांड के बाद यह पहला आम चुनाव है। केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी के बेटे इस केस के आरोपी हैं।
भाजपा के कब्जे में कांग्रेस का गढ़ : कुर्मी वोटबैंक के सहारे सपा की नाव, खीरी में बसपा खोल पाएगी अपना खाता?
May 07, 2024 20:02
May 07, 2024 20:02
- कभी कांग्रेस का गढ़ था खीरी
- सपा को कुर्मी समाज से उम्मीद
- बसपा का नहीं खुला है खाता
कभी कांग्रेस का गढ़ था खीरी
खीरी लोकसभा क्षेत्र एक समय में कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था। अब तक इस सीट पर 17 बार चुनाव हो चुके हैं, जिसमें से कांग्रेस 8 बार जीत चुकी है। इस सीट पर सबसे पहले प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के खुशवंत राय 1957 में चुनाव जीते। इसके बाद 1962 में कांग्रेस के बालगोविंद वर्मा ने जीत दर्ज की और लगातार 15 साल सांसद रहे। इसके बाद 1977 में जनता पार्टी ने इस सीट पर जीत दर्ज की, लेकिन 1980 में बालगोविंद वर्मा चौथी बार सांसद चुने गए। इस चुनाव के कुछ दिन बाद ही वर्मा का निधन हो गया और कांग्रेस ने उनकी पत्नी उषा वर्मा को टिकट दिया। उषा 1980, 1984 और 1989 में यहां से सांसद चुनी गईं। हालांकि इसके बाद अगले 18 साल तक कांग्रेस पिक्चर से गायब रही और 2009 में जफर अली नकवी यहां से कांग्रेस के अंतिम सांसद बने।
सपा को कुर्मी समाज से उम्मीद
खीरी से समाजवादी पार्टी ने पहली बार 1998 में जीत दर्ज की थी। रवि प्रकाश वर्मा सपा के टिकट पर यहां से चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे। वर्मा 1998 के बाद 1999 औऱ 2004 में भी जीते। लगातार तीन बार जीत दर्ज करने के बाद अब तक सपा की वापसी खीरी में नहीं हो पाई है। लेकिन 2024 में समाजवादी पार्टी ने खीरी से उत्कर्ष वर्मा को प्रत्याशी बनाया है। उत्कर्ष कुर्मी समाज से आते हैं और उनकी मुस्लिम समुदाय में भी अच्छी पकड़ है। खीरी की सीट ब्राह्मण और कुर्मी बाहुल्य है। यही वजह है कि यहां से जीतने वाले ज्यादातर सांसद इसी समाज से आते हैं। एक आंकड़े के मुताबिक खीरी में कुर्मी और अन्य पिछड़ी जातियों की संख्या 7 लाख है। वहीं 3 लाख ब्राह्मण, 2.5 लाख दलित. 2.6 लाख मुस्लिम और 1 लाख से कम सिख हैं। सपा को उम्मीद है कि वह मुस्लिम, कुर्मी और सिख वोटरों के सहारे चुनाव की नैया पार लगा लेगी। हालांकि यह इतना आसान भी नहीं होने वाला है।
बसपा का नहीं खुला है खाता
बहुजन समाज पार्टी ने अभी तक एक बार भी खीरी की सीट पर जीत दर्ज नहीं की है। 2014 की मोदी लहर के बावजूद बसपा प्रत्याशी अरविंद गिरी ने 2.88 लाख वोट हासिल किए थे। वह अजय मिश्र टेनी से 1.10 लाख वोटों से पीछे रह गए और रनर अप रहे। लेकिन 2019 में सपा और बसपा ने गठबंधन कर लिया और सीट सपा के खाते में आई। समाजवादी पार्टी के टिकट पर डॉ. पूर्वी वर्मा ने चुनाव लड़ा, लेकिन वह भी दूसरे स्थान पर रहीं। 2019 में टेनी ने 2.18 लाख वोटों के अंतर से जीत दर्ज की। अब 2024 में सपा और बसपा अलग-अलग लड़ रही हैं। बसपा ने अंशय कालरा को प्रत्याशी बनाया है। अंशय पंजाबी समाज से आते हैं और यह उनका पहला चुनाव है। राजनीतिक जानकार मानते हैं कि बसपा का कोर वोट पिछले कुछ समय में खिसककर भाजपा की तरफ आ गया है। ऐसे में अब बहुजन समाज पार्टी के लिए सबसे बड़ी चुनौती अपने परंपरागत वोटों को पाने की होगी।
टेनी लगा पाएंगे हैट्रिक?
अजय मिश्र टेनी अगर 2024 के चुनाव में विजयी होते हैं, तो वह लोकसभा चुनाव में जीत की हैट्रिक लगा देंगे। लेकिन ये जंग उनके लिए इतनी आसान नहीं होने वाली है। 3 अक्तूबर 2021 को हुए तिकुनिया कांड के बाद अजय मिश्र टेनी की सबसे बड़ी चुनौती खुद की छवि को साफ साबित करना है। दरअसल इस कांड के बाद टेनी के इस्तीफे की मांग उठ रही थी, लेकिन वह बावजूद इसके अपने पद पर काबिज रहे। सपा प्रत्याशी उत्कर्ष वर्मा लोगों के बीच जाकर तिकुनिया कांड का जिक्र कर रहे हैं। इसके उलट अजय मिश्र टेनी के पास खुद की उपलब्धियां गिनाने के लिए कुछ नहीं है। वह पीएम मोदी और सीएम योगी का नाम अपने प्रचार में इस्तेमाल कर रहे हैं। जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटने से लेकर राम मंदिर बनने तक के मुद्दे उनकी जुबान पर हैं। वहीं उत्कर्ष वर्मा की समस्या ये हैं कि उनकी पार्टी के पूर्व नेता रवि वर्मा ही उनके लिए परेशानी का सबब बन गए हैं। दरअसल रवि वर्मा अपनी बेटी को खीरी से टिकट दिलाने के लिए सपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए थे। लेकिन उसके ठीक बाद ही सपा और कांग्रेस का गठबंधन हो गया और सीट सपा के खाते में चली गई। अब रवि वर्मा के मंसूबों पर पानी फिरा, तो वह उत्कर्ष वर्मा का भी सहयोग नहीं कर रहे हैं। उधर बसपा प्रत्याशी अंशय कालरा का राजनीतिक अनुभव कम है। ऐसे में उनको रेस से बाहर ही माना जा रहा है।
किस करवट बैठेगा सियासी ऊंट?
खीरी लोकसभा क्षेत्र में विधानसभा की 5 सीटें आतीं हैं। इसमें पलिया, निघासन, गोला गोकर्णनाथ, श्री नगर और लखीमपुर विधानसभा आते हैं। इन पांचों सीटों पर भाजपा कब्जा है। लेकिन सूत्र बताते हैं कि पलिया के विधायक रोमी साहनी, गोला गोकर्णनाथ के विधायक अमन गिरी और निघासन के विधायक शशांक वर्मा टेनी से नाराज चल रहे हैं। वह न तो रैलियों में शामिल हो रहे हैं और न ही टेनी के पक्ष में वोटिंग की अपील कर रहे हैं। एक तरफ विधायकों की नाराजगी है, तो वहीं दूसरी तरफ
टेनी के बेटे के तिकुनिया कांड में आरोपी होने के कारण स्थानीय लोगों में गुस्सा है। भाजपा के लिए सबसे बड़ा झोल यही है। हालांकि ये देखना दिलचस्प होगा कि सियासत का ऊंट 4 जून को किस करवट बैठता है।
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