वन नेशन-वन इलेक्शन : यूपी के विपक्षी नेताओं ने किया खारिज, आखिरी बार 1983 में आया था प्रस्ताव...

यूपी के विपक्षी नेताओं ने किया खारिज, आखिरी बार 1983 में आया था प्रस्ताव...
UPT | वन नेशन-वन इलेक्शन

Sep 20, 2024 17:51

देश में वन नेशन-वन इलेक्शन का मुद्दा चल रहा है। सरकार चाहती है कि देश में एक देश एक चुनाव लागू हो। वहीं विपक्ष सरकार के इस फैसले के खिलाफ है। मोदी सरकार को कई चुनौतियों का सामने करना पड़ रहा है...

Sep 20, 2024 17:51

Lucknow News : देश में वन नेशन-वन इलेक्शन का मुद्दा चल रहा है। सरकार चाहती है कि देश में एक देश एक चुनाव लागू हो। वहीं विपक्ष सरकार के इस फैसले के खिलाफ है। मोदी सरकार को कई चुनौतियों का सामने करना पड़ रहा है। केंद्रीय कैबिनेट ने बुधवार (18 सितंबर 2024) को वन नेशन वन इलेक्शन पर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। बिल को शीतकालीन सत्र में संसद से पास कराएगी, जिसके बाद यह कानून बन जाएगा और इसके साथ ही देश में एक साथ चुनाव कराने के द्वार भी खुल जाएंगे। आइये जानते हैं यूपी का विपक्ष इस प्रस्ताव पर क्या राय रखता है।

जानें अखिलेश यादव की प्रतिक्रिया 
सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने गुरुवार (19 सितंबर) लखनऊ में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की, जहां उन्होंने "वन नेशन, वन इलेक्शन" पर सवाल उठाए। उन्होंने बीजेपी सरकार पर भी तीखा हमला किया। अखिलेश ने पूछा कि क्या महिला आरक्षण लागू होगा और सरकार इसके लिए तैयार है? उन्होंने यह भी कहा कि वन नेशन, वन इलेक्शन की रिपोर्ट 18,626 पेज लंबी थी और इसे 191 दिनों में तैयार किया गया, जो इस बात का प्रमाण है कि चर्चा का स्तर क्या रहा होगा। उन्होंने इसे भाजपा की रिपोर्ट करार दिया, जो "एक राष्ट्र, एक चुनाव और एक दान" की अवधारणा पर आधारित है।



मोदी सरकार से किए सवाल
वहीं 18 सितंबर को अखिलेश यादव ने सोशल मीडिया हैंडल एक्स पर पोस्ट कर कहा कि लगे हाथ महाराष्ट्र, झारखंड व यूपी के उपचुनाव भी घोषित करवा देते। अगर ‘वन नेशन, वन नेशन’ सिद्धांत के रूप में है तो कृपया स्पष्ट किया जाए कि प्रधान से लेकर प्रधानमंत्री तक के सभी ग्राम, टाउन, नगर निकायों के चुनाव भी साथ ही होंगे या फिर त्योहारों और मौसम के बहाने सरकार की हार-जीत की व्यवस्था बनाने के लिए अपनी सुविधानुसार? भाजपा जब बीच में किसी राज्य की चयनित सरकार गिरवाएगी तो क्या पूरे देश के चुनाव फिर से होंगे?
  राहुल गांधी ने बताया भारत के संघ पर हमला
वहीं इस प्रस्ताव का नेता प्रतिपक्ष और रायबरेली सांसद राहुल गांधी ने भी विरोध किया है। इस मामले पर कांग्रेस सरकार के खिलाफ हमलावर है। पहले सांसद अधीर रंजन चौधरी ने समिति में शामिल होने से मना कर दिया, फिर जयराम रमेश ने इसे कर्मकांडीय बताया। ट्वीट करते हुए राहुल गांधी ने कहा, "इंडिया का मतलब भारत, राज्यों का एक संघ है। एक राष्ट्र, एक चुनाव का विचार संघ और सभी राज्यों पर हमला है।" पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक राष्ट्र, एक चुनाव की संभावना की जांच के लिए समिति बनाई गई थी, जिसमें कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी को भी शामिल किया गया, लेकिन उन्होंने इसमें शामिल होने से इनकार कर दिया।
  चंद्रशेखर आजाद ने भी उठाए सवाल
आज़ाद समाज पार्टी के मुखिया और नगीना सीट से सांसद चंद्रशेखर आजाद ने 'वन नेशन, वन इलेक्शन' को लेकर केंद्र सरकार पर सवाल उठाए। उन्होंने 19 सितंबर को ट्वीट करते हुए कहा कि वन नेशन, वन इलेक्शन" स्वाभाविक प्रवाहवान राजनीति को बाधित करना है। मेरे कुछ सवाल है NDA(National Dramatic Allinace ) सरकार से। "वन नेशन, वन इलेक्शन" की प्रक्रिया एक बार शुरू होने के बाद कभी ये प्रक्रिया भंग नहीं होगी ये "जनता के मन की बात" है क्योंकि आजाद भारत के प्रथम चुनाव, साल 1952 में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ ही हुए थे। अभी हाल ही में, चुनाव आयोग ने महाराष्ट्र का चुनाव हरियाणा के चुनाव के साथ कराने में असमर्थता व्यक्त की थी तो जो चुनाव आयोग 2 राज्यों का चुनाव एक साथ नहीं करवा पाया, वो 28 राज्यों और 8 केंद्र शासित प्रदेशों में एक साथ चुनाव कैसे करवा पाएगा? ये संदेहास्पद न होकर हास्यास्पद लगता है।
  वन नेशन-वन इलेक्शन पर माया ने तोड़ी चुप्पी
वहीं वन नेशन-वन इलेक्शन के प्रस्ताव पर बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी सहमति जताई। 18 सितंबर को उन्होंने एक्स पर पोस्ट कर कहा कि ’एक देश, एक चुनाव’ की व्यवस्था के तहत देश में लोकसभा, विधानसभा व स्थानीय निकाय का चुनाव एक साथ कराने वाले प्रस्ताव को केन्द्रीय कैबिनेट द्वारा आज दी गयी मंजूरी पर हमारी पार्टी का स्टैण्ड सकारात्मक है, लेकिन इसका उद्देश्य देश व जनहित में होना ज़रूरी।
विपक्ष की एकजुटता बढ़ाएगी मुश्किल
वन नेशन-वन इलेक्शन के प्रस्ताव को भले ही कैबिनेट की मंजूरी मिल गई हो, लेकिन ये सफर इतना भी आसान नहीं है, जैसा लग रहा है। पहले केंद्र सरकार इसे शीतकालीन सत्र में संसद में लेकर आएगी। ये संविधान संशोधन वाला बिल होगा, इसलिए इसमें राज्यों की सहमति भी जरूरी होगी। सरकार की कोशिश है कि 2029 में इसे पूरी तरह से लागू कर दिया जाए। यदि विपक्ष वन नेशन, वन इलेक्शन पर एकजुट होता है, तो सरकार के लिए लोकसभा में इसे पारित कराना आसान नहीं होगा। इस बिल को पास कराने के लिए सरकार को कम से कम 362 वोटों की आवश्यकता है, जबकि वर्तमान में उसके पास केवल 293 सांसद हैं। इस स्थिति में, यदि विपक्ष लोकसभा में एकजुट होता है, तो मोदी सरकार के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं।

'वन नेशन वन इलेक्शन' के पक्ष में 32 दल
इस रिपोर्ट के अनुसार, 191 दिनों की जांच के बाद 47 राजनीतिक दलों ने अपने विचार प्रस्तुत किए, जिनमें से 32 दल 'वन नेशन वन इलेक्शन' के पक्ष में हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि इन दलों ने न केवल इस प्रणाली का समर्थन किया, बल्कि संसाधनों की बचत, सामाजिक समरसता और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए इसे अपनाने की जोरदार सिफारिश भी की है। हालांकि, 15 दलों ने इस पहल का विरोध किया है, उनका तर्क है कि इससे संविधान की मूल संरचना को नुकसान पहुंचेगा। उनका मानना है कि यह प्रणाली अलोकतांत्रिक होगी, संघीय ढांचे के विपरीत है और क्षेत्रीय दलों की पहचान को कमजोर कर राष्ट्रीय दलों के प्रभाव को बढ़ाएगी।

इंदिरा गांधी की सरकार ने को दिया था एक साथ चुनाव कराने का प्रस्ताव
बता दें कि आजादी के बाद, लोकसभा चुनाव के साथ ही अधिकांश राज्यों के चुनाव हुए थे। वर्ष 1957, 1962, और 1967 में भी लोकसभा और कई राज्यों के विधानसभा चुनाव एकसाथ हुए थे। हालांकि, कुछ राज्यों में, जैसे आंध्र राष्ट्र (जो बाद में आंध्र प्रदेश बना) में 1955, केरल में 1960-65, और ओडिशा में 1961 में अलग से चुनाव हुए थे। 1983 में, भारतीय चुनाव आयोग ने इंदिरा गांधी की सरकार को एक साथ चुनाव कराने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन यह प्रस्ताव आगे नहीं बढ़ सका।

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