मिल्कीपुर उपचुनाव में भाजपा और सपा दोनों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। इस उपचुनाव का परिणाम दोनों दलों के लिए बेहद मायने रखने वाला साबित होगा। अगर सपा इस सीट पर अपना कब्जा बनाए रखने में सफल होती है तो वह फिर पूरे देश में इसका प्रचार करेगी। वहीं अगर भाजपा यहां से जीत दर्ज करने में कामयाब होती है तो वह सपा का पूरी तरह से घेरेगी।
Milkipur By Election : प्रतिष्ठा की लड़ाई में दूर तक जाएगा परिणाम का संदेश, इस वजह से बनी हॉटसीट, जानें इतिहास और जातीय समीकरण
Jan 07, 2025 17:12
Jan 07, 2025 17:12
लोकसभा और उपचुनाव के दौरान सबसे ज्यादा रही चर्चा
लोकसभा चुनाव में भाजपा को अयोध्या में मिली शिकस्त की पूरे देश में चर्चा रही। समाजवादी पार्टी ने इसके बाद हर चुनाव में इसे भुनाने का प्रयास किया। सांसद अवधेश प्रसाद को अखिलेश यादव अपने साथ लेकर घूमते नजर आए। इसके बाद विधानसभा उपचुनाव में सबसे ज्यादा मिल्कीपुर सीट की ही चर्चा रही। हालांकि निर्वाचन आयोग ने तकनीकी कारणों से नौ सीटों पर उपचुनाव का कार्यक्रम घोषित किया, जिनमें से सात पर भाजपा गठबंधन और दो पर सपा ने जीत दर्ज की। अब मिल्कीपुर में उपचुनाव का कार्यक्रम घोषित होने के बाद ये सीट फिर चर्चा में आ गई है। अखिलेश यादव ने लखनऊ में इसे लेकर भाजपा पर कटाक्ष किया तो अवधेश प्रसाद ने दावा किया है कि सीएम योगी आदित्यनाथ जितनी बार अयोध्या का दौरा करेंगे, उतने हजार वोट भाजपा के कम होंगे।
उपचुनव के कार्यक्रम से पहले बिछ चुकी है सियासी बिसात
मिल्कीपुर विधानसभा उपचुनाव 2025 में मुकाबला सीधे तौर पर भाजपा बनाम सपा का है। भाजपा ने अभी तक यह से प्रत्याशी घोषित नहीं किया है, जबकि सपा पहले ही अवधेश प्रसाद के बेटे अजीत प्रसाद को उम्मीदवार बना चुकी है। कांग्रेस पहले ही किनारा कर चुकी है तो मायावती ने अब देश में कहीं भी उपचुनाव नहीं लड़ने की घोषणा की है। ऐसे में लड़ाई सीधे तौर पर सत्तारूढ़ दल बनाम प्रमुख विपक्षी दल के बीच में है। भाजपा ने यहां मंत्रियों की फौज पहले से ही लगाई हुई है। सीएम योगी आदित्यनाथ जहां सात बार अयोध्या का दौरा करके सियासी पारा चढ़ा चुके हैं, वहीं मंत्री सूर्य प्रताप शाही, स्वतंत्र देव सिंह, जेपीएस राठौर, डॉ. दयाशंकर सिंह दयालु, मयंकेश्वर शरण सिंह और सतीश शर्मा पहले से ही इस सीट का जिम्मा संभाल रहे हैं। दूसरी ओर सपा को उम्मीद है कि उपचुनाव में भी वह जनता का विश्वास जीतने में सफल होगी।
भाजपा बनाम सपा के मुकाबले के बीच काफी कुछ तय करेगा परिणाम
मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर 5 फरवरी को मतदान और 8 फरवरी को नतीजों की घोषणा होगी। ये सीट सपा नेता और वर्तमान सांसद अवधेश प्रसाद के लोकसभा चुनाव जीतने के बाद रिक्त हुई है। अवधेश प्रसाद ने फैजाबाद (अयोध्या) लोकसभा सीट पर भाजपा के लल्लू सिंह को हराकर बड़ी जीत दर्ज की थी। इसके बाद उन्होंने विधानसभा सदस्यता से इस्तीफा दे दिया, जिससे मिल्कीपुर सीट रिक्त हो गई। मिल्कीपुर उपचुनाव में भाजपा और सपा दोनों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। इस उपचुनाव का परिणाम दोनों दलों के लिए बेहद मायने रखने वाला साबित होगा। अगर सपा इस सीट पर अपना कब्जा बनाए रखने में सफल होती है तो वह फिर पूरे देश में इसका प्रचार करेगी। खासतौर से अयोध्या में सत्तापक्ष की हार को मुद्दा बनाएगी और सीएम योगी आदित्यनाथ को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी। वहीं अगर भाजपा यहां से जीत दर्ज करने में कामयाब होती है तो वह सपा का पूरी तरह से घेरेगी। पार्टी पहले से कहती आ रही कि संविधान बदलने से लेकर अन्य दुष्प्रचार करके सपा लोकसभा चुनाव में सीटें जीतने में सफल रही। लेकिन, अब जनता उसकी हकीकत जान गई है। मिल्कीपुर में हार से अवधेश प्रसाद का कद भी पार्टी में कमजोर होगा। पार्टी की अंदरुनी सियासत पर भी इसका असर पड़ना तय माना जा रहा है।
मिल्कीपुर सीट का इतिहास : कांग्रेस को पटखनी देकर मित्रसेन यादव ने मनवाया लोहा
मिल्कीपुर विधानसभा सीट के इतिहास पर नजर डालें तो इसका गठन 1967 में हुआ। पहले चुनाव में कांग्रेस के रामलाल मिश्रा ने जीत दर्ज की थी। इसके बाद 1969 में जनसंघ के हरिनाथ तिवारी ने कांग्रेस को हराकर सीट पर कब्जा किया। इसके बाद 1977 से 1985 के बीच भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के मित्रसेन यादव ने तीन बार लगातार इस सीट पर जीत दर्ज कर इतिहास रच दिया। उनकी गिनती राज्य के प्रभावशाली नेताओं में होती थी।
1989 से 1993 : भाजपा का उदय और बदलते समीकरण
वर्ष 1989 में कांग्रेस ने इस सीट पर वापसी की। लेकिन, 1991 में पहली बार भाजपा ने मथुरा प्रसाद तिवारी के नेतृत्व में इस सीट पर जीत दर्ज की। 1993 में भाकपा के मित्रसेन यादव ने एक बार फिर चुनाव जीतकर भाजपा को हराया।
1996 से 2007 : समाजवादी पार्टी की पकड़ मजबूत
वर्ष 1996 में मित्रसेन यादव ने सपा के टिकट पर जीत हासिल की। इसके बाद उनके बेटे आनंद सेन यादव ने भी सपा के टिकट पर जीत दर्ज की। हालांकि, बाद में आनंद सेन ने बसपा का दामन थाम लिया और बसपा की ओर से चुनाव जीतकर मंत्री भी बने।
2008 में सीट हुई आरक्षित, सपा का दबदबा जारी
2008 में परिसीमन के बाद मिल्कीपुर सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कर दी गई। इसके बाद 2012 में सपा के अवधेश प्रसाद ने इस सीट पर बड़ी जीत दर्ज की। हालांकि, 2017 में भाजपा के बाबा गोरखनाथ ने सपा को हराकर यहां से जीत दर्ज की।
वर्ष 2022 का चुनाव : सपा की वापसी, भाजपा को झटका
2022 में हुए विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने फिर से इस सीट पर कब्जा जमाया। अवधेश प्रसाद ने भाजपा के बाबा गोरखनाथ को हराकर जीत हासिल की। सपा उम्मीदवार अवधेश प्रसाद ने 47.99 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 1,03,905 वोट हासिल कर भाजपा के बाबा गोरखनाथ को बड़े अंतर से हराया। अवधेश प्रसाद ने कुल 1,03,905 वोट हासिल किए, जिसमें 714 पोस्टल वोट शामिल रहे। उन्होंने 12,338 वोटों के अंतर से भाजपा उम्मीदवार बाबा गोरखनाथ को हराकर अपनी पार्टी के लिए बड़ी जीत सुनिश्चित की।
- भाजपा उम्मीदवार बाबा गोरखनाथ ने 90,567 वोट प्राप्त किए, जिसमें 289 पोस्टल वोट शामिल थे।
- बहुजन समाज पार्टी (बसपा): उम्मीदवार मीरा देवी ने 14,427 वोट (6.66 प्रतिशत) प्राप्त किए।
- कांग्रेस प्रत्याशी ब्रजेश कुमार ने मात्र 3,166 वोट (1.46 प्रतिशत) से संतोष किया।
- आम आदमी पार्टी (आप) उम्मीदवार हर्ष वर्धन को 889 वोट (0.41 प्रतिशत) ही मिले।
- चुनाव में नोटा को 1,960 वोट मिले, जो कुल मतों का 0.91 प्रतिशत रहा।
जीत के लिए जातीय समीकरणों को साधना बेहद जरूरी
मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर जातीय समीकरणों पर नजर डालें तो इसमें अनुसूचित जाति के लोगों की सबसे अधिक संख्या है। दलित वोट हमेशा से ही यहां निर्णाय भूमिका निभाते आए हैं। इस सीट पर करीब 3.5 लाख मतदाताओं में से 1.2 लाख दलित और 55000 यादव यानी ओबीसी मतादाता हैं, जबकि अल्पसंख्यक यानी मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 30000 है। वर्गों के हिसाब से संख्या पर नजर डालें तो 60 हजार ब्राह्मण, 55 हजार पासी, 25 हजार क्षत्रिय, 25 हजार दलित, 50 हजार कोरी, चौरसिया, पाल और मौर्य समाज के लोग हैं। ऐसे में जो उम्मीदवार इन जातीय समीकरणों को साधने में सफल रहा, नतीजे उसके पक्ष में हो सकते हैं।
उपचुनाव में किसका पलड़ा भारी?
इस बार उपचुनाव में सपा और भाजपा दोनों ने जीत के लिए कमर कस ली है। सपा के अजीत प्रसाद पहली बार मैदान में हैं, जबकि भाजपा अपने संगठन और चुनावी मशीनरी पर भरोसा कर रही है। मिल्कीपुर की जनता इस बार किसे चुनती है, यह देखना दिलचस्प होगा। मिल्कीपुर केवल राजनीतिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यह क्षेत्र कई प्रभावशाली नेताओं का गढ़ रहा है, जिन्होंने राज्य और राष्ट्रीय राजनीति में अहम भूमिका निभाई।
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