एसजीपीजीआई के नेफ्रोलॉजी विभाग के अध्यक्ष प्रो. नारायण प्रसाद का कहना है कि प्रत्यारोपण के तुरंत बाद गर्भधारण करना जटिलताओं को बढ़ा सकता है। उन्होंने सलाह दी कि प्रत्यारोपण के कम से कम दो साल बाद गर्भधारण करना चाहिए, ताकि महिला का शरीर पूरी तरह से स्थिर हो सके और शिशु स्वस्थ रूप से विकसित हो।
किडनी प्रत्यारोपण के बाद मातृत्व सुख : SGPGI में 11 महिलाओं ने दिया स्वस्थ बच्चों को जन्म, जानें- गर्भधारण पर विशेषज्ञों की सलाह
Dec 16, 2024 14:10
Dec 16, 2024 14:10
गर्भधारण और मातृत्व के आंकड़े
रिपोर्ट के मुताबिक, इस अवधि में 245 महिलाओं ने किडनी प्रत्यारोपण कराया। इनमें से 13 महिलाओं ने प्रत्यारोपण के बाद गर्भधारण किया। हालांकि, शुरुआती तीन महीनों में दो महिलाओं को गर्भपात कराना पड़ा। लेकिन, शेष 11 महिलाओं ने स्वस्थ शिशुओं को जन्म दिया। प्रत्यारोपण के समय इन महिलाओं की औसत आयु 25.8 वर्ष थी और गर्भधारण के समय यह बढ़कर 28.6 वर्ष हो गई। उनके शरीर में क्रेटनाइन का स्तर 8 मिलीग्राम के आसपास था। यह रिपोर्ट तैयार करने में एसजीपीजीआई के नेफ्रोलॉजी विभाग के डॉक्टरों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिनमें डॉ. आकाश राय, डॉ. अनुपमा कौल, डॉ. नारायण प्रसाद जैसे विशेषज्ञ शामिल हैं।
गर्भधारण के लिए सही समय का चयन, पिता बने सबसे बड़े किडनी दाता
एसजीपीजीआई के नेफ्रोलॉजी विभाग के अध्यक्ष प्रो. नारायण प्रसाद का कहना है कि प्रत्यारोपण के तुरंत बाद गर्भधारण करना जटिलताओं को बढ़ा सकता है। उन्होंने सलाह दी कि प्रत्यारोपण के कम से कम दो साल बाद गर्भधारण करना चाहिए, ताकि महिला का शरीर पूरी तरह से स्थिर हो सके और शिशु स्वस्थ रूप से विकसित हो। अध्ययन में यह भी पाया गया कि प्रत्यारोपण कराने वाली 11 महिलाओं में से आठ महिलाओं को उनके पिता ने किडनी दान दी। शेष तीन महिलाओं में से एक को पति, दूसरी को मां और तीसरी को ब्रेनडेड व्यक्ति से किडनी प्राप्त हुई।
महिलाओं में बढ़ती किडनी बीमारियां
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की रिपोर्ट के अनुसार, महिलाओं में किडनी की बीमारियां पुरुषों की तुलना में अधिक होती हैं। जहां पुरुषों में इसका प्रतिशत 12 प्रतिशत है, वहीं महिलाओं में यह आंकड़ा 14 प्रतिशत तक पहुंच चुका है। गुजरात के अडानी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज द्वारा तैयार की गई और किडनी वीक 2024 में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, पिछले तीन दशकों में महिलाओं में किडनी रोगों का खतरा तीन गुना बढ़ा है। यह बीमारी 2.10 प्रतिशत की वार्षिक दर से बढ़ रही है और मृत्यु दर 3.39 प्रतिशत है। मुख्य कारण डायबिटीज और उच्च रक्तचाप (BP) बताए गए हैं।
किडनी रोग क्या है और इसके प्रमुख कारण
किडनी हमारे शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग है, जो रक्त को शुद्ध करता है और विषाक्त पदार्थों को शरीर से बाहर निकालता है। जब किडनी सही तरीके से काम नहीं करती, तो इसे किडनी रोग कहा जाता है। यह रोग धीरे-धीरे विकसित होता है और कई बार गंभीर स्थिति में पहुंचने पर ही इसका पता चलता है।
किडनी की बीमारियों के कारण
डायबिटीज (मधुमेह) : लंबे समय तक रक्त में शुगर का उच्च स्तर किडनी को नुकसान पहुंचा सकता है।
उच्च रक्तचाप (BP) : लगातार हाई ब्लड प्रेशर किडनी की नसों और टिश्यूज को प्रभावित करता है।
ग्लोमेरुलोनेफ्राइटिस : किडनी के फिल्टरिंग यूनिट (ग्लोमेरुली) की सूजन इस बीमारी का मुख्य कारण है।
मूत्र मार्ग में संक्रमण : लंबे समय तक अनदेखा किया गया संक्रमण किडनी तक फैल सकता है।
पॉलीसिस्टिक किडनी रोग (PKD) : यह अनुवांशिक बीमारी किडनी में सिस्ट बनने का कारण बनती है।
ड्रग्स और जहरीले पदार्थ : पेनकिलर्स और अन्य दवाओं का लंबे समय तक अत्यधिक सेवन किडनी को नुकसान पहुंचा सकता है।
किडनी रोग के सामान्य लक्षण
किडनी की समस्या के लक्षण कई बार बहुत मामूली होते हैं और लोग इन्हें नजरअंदाज कर देते हैं। लेकिन, समय पर इन लक्षणों की पहचान करना जरूरी है-
- पेशाब में खून आना
- आंखों, पैरों और टखनों में सूजन
- मांसपेशियों में ऐंठन और दर्द
- भूख न लगना और वजन कम होना
- बार-बार पेशाब आना (खासकर रात में)
- त्वचा में खुजली और रूखापन
- थकान और कमजोरी
- सांस लेने में परेशानी
- किडनी रोगों से बचाव के उपाय
- हर छह महीने में ब्लड शुगर और ब्लड प्रेशर की जांच करवाएं।
- किडनी फंक्शन टेस्ट (KFT) जैसे क्रेटनाइन और यूरिया स्तर की जांच समय-समय पर करवाएं।
- नमक का सेवन कम करें।
- अधिक फाइबर युक्त भोजन करें, जैसे फल, सब्जियां और साबुत अनाज।
- अधिक पानी पीने की आदत डालें।
- मोटापा किडनी पर अधिक दबाव डालता है, इसलिए नियमित व्यायाम करें।
- बॉडी मास इंडेक्स (BMI) को 18.5-24.9 के बीच बनाए रखें।
- बिना डॉक्टर की सलाह के कोई भी दवा न लें।
- पेनकिलर्स और एंटीबायोटिक्स का लंबे समय तक सेवन करने से बचें।
- धूम्रपान और शराब किडनी की कार्यक्षमता को कमजोर करते हैं।
- नियमित योग और ध्यान के जरिए मानसिक तनाव को कम करें।
- कुछ लोगों में किडनी की बीमारियों का खतरा ज्यादा होता है। इन जोखिम कारकों पर ध्यान देना जरूरी है:
- जिनके परिवार में किसी को किडनी की समस्या है, उन्हें सावधान रहना चाहिए।
- 60 वर्ष से अधिक आयु के लोग किडनी रोग के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं।
- हृदय रोग, मोटापा, और मधुमेह जैसी बीमारियां किडनी को प्रभावित कर सकती हैं।
- दवाइयां और जीवनशैली में बदलाव : शुरुआती चरणों में, डॉक्टर दवाइयों और जीवनशैली में बदलाव के जरिए किडनी रोग का इलाज करते हैं।
- डायलिसिस : किडनी फेलियर के गंभीर मामलों में डायलिसिस के जरिए शरीर से विषाक्त पदार्थों को निकाला जाता है।
- किडनी प्रत्यारोपण : जब किडनी पूरी तरह से काम करना बंद कर देती है, तो प्रत्यारोपण ही एकमात्र विकल्प रह जाता है।
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