KGMU : हादसे में घायलों के खून का रिसाव और थक्के की जांच में अल्ट्रासाउंड कारगर, समय पर इलाज से बच सकती है जान

हादसे में घायलों के खून का रिसाव और थक्के की जांच में अल्ट्रासाउंड कारगर, समय पर इलाज से बच सकती है जान
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Nov 08, 2024 21:05

डॉ. संदीप तिवारी ने इस बात पर जोर दिया कि सीटी स्कैन और अन्य जांच में काफी समय लग सकता है, जबकि अल्ट्रासाउंड जांच की मदद से चोट की गंभीरता तुरंत पता की जा सकती है। इस जांच से शरीर में किसी भी प्रकार के आंतरिक रक्तस्राव या खून के थक्के की पहचान की जा सकती है, जिससे त्वरित उपचार संभव होता है और मरीज की जान बचाई जा सकती है।

Nov 08, 2024 21:05

Lucknow News : अल्ट्रासाउंड जांच हादसे में घायलों की चोट की गंभीरता पता लगाने में बेहद मददगार साबित हो सकती है। पेट समेत शरीर के दूसरे अंगों में खून का रिसाव और थक्का बनने की स्थिति का इससे सुविधाजनक तरीके से पता लगाया जा सकता है। किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) के ट्रॉमा सर्जरी विभाग के अध्यक्ष डॉ. संदीप तिवारी ने यह बात शुक्रवार को अटल बिहारी वाजपेयी साइंटिफिक कन्वेंशन सेंटर में आयोजित ट्रॉमा सम्मेलन 2024 में कही।

सीटी स्कैन की तुलना में तेजी
डॉ. संदीप तिवारी ने इस बात पर जोर दिया कि सीटी स्कैन और अन्य जांच में काफी समय लग सकता है, जबकि अल्ट्रासाउंड जांच की मदद से चोट की गंभीरता तुरंत पता की जा सकती है। इस जांच से शरीर में किसी भी प्रकार के आंतरिक रक्तस्राव या खून के थक्के की पहचान की जा सकती है, जिससे त्वरित उपचार संभव होता है और मरीज की जान बचाई जा सकती है।



एम्स के विशेषज्ञ का समर्थन
दिल्ली एम्स के डॉ. अमित गुप्ता ने भी समय पर इलाज के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि ट्रॉमा मरीजों की कूल्हे, छाती और अन्य अंगों का एक्सरे, पेट का अल्ट्रासाउंड और सिर का सीटी स्कैन जैसी जरूरी जांचें तत्काल होनी चाहिए। इन जांचों के आधार पर मरीज का उपचार किया जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि रक्तस्राव होने की स्थिति में तुरंत उसे रोकने की व्यवस्था की जानी चाहिए।

बेड पर जांच की सुविधा का प्रस्ताव
डॉ. तिवारी ने बताया कि ट्रॉमा सेंटर में आने वाले मरीजों को बेहतर इलाज उपलब्ध कराने के लिए बेड पर अल्ट्रासाउंड जांच की सुविधा शुरू करने की योजना है। इसके लिए ट्रॉमा सर्जरी विभाग ने प्वाइंट ऑफ केयर अल्ट्रासाउंड मशीन का प्रस्ताव भेजा है। इस मशीन की सहायता से घायल की जांच बेड पर ही की जा सकेगी, जिससे समय की बचत होगी और उपचार तेजी से किया जा सकेगा।

विशेषज्ञों की उपस्थिति
इस सम्मेलन में ट्रॉमा विशेषज्ञ प्रो. समीर मिश्रा, डॉ. यादवेंद्र धीर और डॉ. वैभव जायसवाल ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। उन्होंने ट्रॉमा उपचार के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की और भविष्य की तकनीकों के इस्तेमाल पर विचार-विमर्श किया।

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