अमिताभ यश ने एनकाउंटर में जाति देखकर गिरफ्तारी और मारने के आरोपों पर कहा कि अपराध किसी के भी खिलाफ हो सकता है। दो आरपीएफ के कॉन्सटेबल की हत्या हुई थी। उनका नाम जावेद खान और प्रमोद कुमार था। एसटीएफ ने इस अपराध को वर्कआउट किया और वर्कआउट करने से पहले यह बिल्कुल नहीं देखा गया कि मृतक कॉन्सटेबल किस बिरादरी के हैं।
Sultanpur Encounter : डीके शाही इसलिए चप्पल में आए नजर, UP STF चीफ अमिताभ यश ने आउट ऑफ टर्न प्रमोशन पर दिया ये जवाब
Sep 25, 2024 16:44
Sep 25, 2024 16:44
कीचड़ में सन गए थे डीके शाही के जूते
अमिताभ यश ने मीडिया में दिए बयान में कहा कि एनकाउंटर के दौरान अधिकारी की चप्पल पहने तस्वीर सोशल मीडिया में दिखाई गईं और इसे पर सवाल उठाए गए। जब इस बारे में उनसे बात की गई तो उन्होंने स्पष्ट किया कि मुठभेड़ के दौरान जूता कीचड़ में सन जाने के कारण उन्होंने बाद में चप्पल पहन ली थी। यह मुठभेड़ सुबह 3:30 बजे हुई थी और जो तस्वीरें दिखाई जा रही हैं, वे मुठभेड़ के तीन घंटे बाद की हैं। अमिताभ यश ने कहा कि एसटीएफ जब भी कोई काम करती है तो परिस्थितियों के मुताबिक खुद को ढालती है। जब जंगलों में खुफिया कार्रवाई होती थी या इंटेलिजेंस गैदरिंग के लिए एसटीएफ की टीम जाती थी, तब वह लूंगी और गंजी पहनकर जाते थे।
पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सामने आता है सच
एसटीएफ पर मंगेश यादव को सटाकर गोली मारना और मुठभेड़ के पांच दिन पहले उठाकर ले जाने के आरोपों पर अमिताभ यश ने कहा कि यह बिल्कुल गलत है। अगर किसी व्यक्ति को हथियार से सटाकर गोली मार दी जाती है तो उसका पोस्टमार्टम अलग होता है। पोस्टमार्टम में इसके चिह्न मिल जाते हैं। वहीं अगर कुछ दूरी से गोली मारी जाती है तो वह चिह्न नहीं आते हैं। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सब बातें स्पष्ट हो जाती हैं। इस तरह के आरोप पूरी तरह निराधार हैं। उन्होंने कहा कि वहीं मंगेश यादव की गिरफ्तारी या गिरफ्तारी के प्रयास से लेकर हर बात पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज है।
अपराधियों की होती है एक बिरादरी
अमिताभ यश ने एनकाउंटर में जाति देखकर गिरफ्तारी और मारने के आरोपों पर कहा कि अपराध किसी के भी खिलाफ हो सकता है। दो आरपीएफ के कॉन्सटेबल की हत्या हुई थी। उनका नाम जावेद खान और प्रमोद कुमार था। एसटीएफ ने इस अपराध को वर्कआउट किया और वर्कआउट करने से पहले यह बिल्कुल नहीं देखा गया कि मृतक कॉन्सटेबल किस बिरादरी के हैं। वर्दी की एक ही बिरादरी होती है, अपराधियों की भी एक ही बिरादरी होती है, वह सिर्फ अपराधी होते हैं। जब भी अपराधी के खिलाफ कार्रवाई होगी तो उनकी गिरफ्तार के प्रयास किए जाएंगे। उनके खिलाफ और भी जो कदम होंगे, उठाए जाएंगे। जब अपराधी पुलिस पर हमला करता है तो स्वयं को बचाने के लिए पुलिस भी फायरिंग करती है, यह प्रक्रिया कोई आज की नहीं है।
एसटीएफ से मुठभेड़ में इसलिए होती है फायरिंग
अमिताभ यश ने कहा कि एसटीएफ को गठित हुए 25 साल से ज्यादा हो चुके हैं। पुलिस भी अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई करती है। हालांकि एसटीएफ बड़े अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई करती है। इसलिए उस पर फायरिंग होने की संभावना ज्यादा होती है। दो आरपीएफ कॉन्सटेबल के मर्डर की बात करें तो उनको इतने नृशंस तरीके से मारा गया था कि उनकी डेड बॉडी की तस्वीर भी शेयर नहीं की जा सकती थी। इस तरह दुर्दांत अपराधी से हमें उम्मीद भी नहीं करनी चाहिए कि वह बहुत आसानी से पुलिस के सामने सरेंडर कर देगा या पुलिस के साथ दूसरी तरह का व्यवहार करेगा। इस बार गाजीपुर पुलिस और यूपी एसटीएफ ने ज्वाइंट ऑपरेशन किया था। दोनों ने मिलकर अपराधी को गिरफ्तार करने की कोशिश की पर वह एनकाउंटर में मारा गया।
आठ वर्षों से आउट ऑफ टर्न प्रमोशन का नियम नहीं
अमिताभ यश अपराधियों को मारकर आउट ऑफ टर्न प्रमोशन हासिल करने पर भी स्थिति स्पष्ट की। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में पिछले आठ वर्षों से आउट ऑफ टर्न प्रमोशन का कोई नियम नहीं है। एनकाउंटर में शामिल अधिकारियों को प्रमोशन या अवॉर्ड तभी मिलते हैं, जब जांच पूरी हो जाती है। उन्होंने कहा कि अपराधी को गिरफ्तार करने या एनकाउंटर में मारने पर अवॉर्ड मिलता है, लेकिन प्रमोशन के लिए कोई विशेष नियम लागू नहीं होता। वास्तव में अवॉर्ड और रिवॉर्ड अपराधी को गिरफ्तार करने या मुठभेड़ में मारे जाने पर समान ही मिलता है। गिरफ्तार करने पर अवॉर्ड आसानी से मिल जाता है, जबकि अपराधी के मरने पर जांच के पूरे होने के बाद अवार्ड दिया जाता है।
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