नोएडा पावर कंपनी ने अपटेल ट्रिब्यूनल से विवाद खड़ा कर दिया। प्रदेश सरकार नोएडा पावर कंपनी के लाइसेंस को समाप्त करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा लड़ रही है। ऐसे में एक तरफ टेकओवर दूसरी तरफ दो ऊर्जा निगमों के हैंडओवर से विरोधाभास की स्थिति है।
UPPCL Privatisation : निजी घरानों को मिलती रहेगी 9061 करोड़ की सब्सिडी, नहीं हो सकेगा सीएजी ऑडिट
Dec 12, 2024 19:35
Dec 12, 2024 19:35
सब्सिडी बरकार रखने पर उठे सवाल
प्रदेश में वर्तमान में निजी क्षेत्र का पहला प्रयोग 1993 में नोएडा पावर कंपनी को दिया गया था। ये वर्तमान में ग्रेटर नोएडा क्षेत्र में चल रहा है। इसमें कोई भी राजकीय सब्सिडी उत्तर प्रदेश सरकार नहीं दी देती है। सरकार की ओर से लगातार तर्क दिया जाता रहा है कि निजी घराने को आखिर वह सब्सिडी क्यों देगी। इस बार किसानों की फ्री बिजली में एनपीसीएल को एक दो करोड़ देने की बात हो रही है। इस बीच वर्तमान, में जो पांच नई बिजली कंपनियां बनाने की तैयारी एनर्जी टास्क फोर्स की मंजूरी से की जा रही है, उसमें पूर्वांचल को यानी नए निजी घराने को सरकार 4535 करोड़ की सब्सिडी जारी रखेगी। वहीं दक्षिणांचल को 4526 करोड़ की सब्सिडी भी देती रहेगी। ये निजी हाथों में जाने के बाद होगा। इस तरह दोनों कंपनियों को मिलने वाली 9061 करोड़ की सब्सिडी देश के संभावित निजी घरानों को मिलेगी। इन पांच नई कंपनियों के नाम आगरा मथुरा विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, काशी विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, गोरखपुर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, झांसी कानपुर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड होगी और प्रयागराज विद्युत वितरण निगम लिमिटेड अभी से फाइनल किए जा चुके हैं।
दक्षिणांचल को 761 करोड़ और पूर्वांचल को मिल रहे 753 करोड़
दूसरी तरफ शर्त रखी गई कि जो भी नया निजी घराना आएगा, वह साल में कम से कम 500 करोड़ रुपये खर्च करेगा। वहीं वर्तमान में मिलने वाले लाभांश यानी रिटर्न ऑफ इक्विटी की बात करें तो दक्षिणांचल बिजली कंपनी को ये लगभग 761 करोड़ मिल रहा है। इसी प्रकार पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम को 753 करोड़ की धनराशि मिल रही है। इससे साफ है कि नए निजी घराने काम शुरू करते ही जैसे ही उन्हें नया टैरिफ मिलेगा, उनको लाभांश भी 51 प्रतिशत मिल जाएगा।
51 प्रतिशत शेयर के कारण निजी कंपनियां खुलकर करेंगी खेल
उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के मुताबिक सबसे अहम बात है कि कि निजी कंपनियों की हिस्सेदारी 51 प्रतिशत होने के कारण देश की सबसे बड़ी एजेंसी नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) भी इनकी जांच नहीं कर पाएगी। यानी देश के निजी घराने जैसा चाहेंगे अपने ऑडिटर रख कर अपनी बैलेंस शीट बनवा लेंगे। उन पर कोई दखल नहीं रहेगा। उदाहरण के तौर पर वह 100 करोड़ खर्च करेंगे और उसे 500 करोड़ का भी बताएंगे तो उसे देखने वाला कोई नहीं है। इस पूरे प्रयोग में निजी घरानों को केवल फायदा देने की राजनीति की जा रही है।
लाइसेंस को लेकर हो चुका है विवाद, सुप्रीम कोर्ट में मामले के बाद भी नहीं लिया सबक
संगठन के अध्यक्ष व राज्य सलाहकार समिति के सदस्य अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि उत्तर प्रदेश की पहली निजी कंपनी नोएडा पावर कंपनी के लाइसेंस को लेकर वर्ष 2023 में विवाद हो चुका है। पुराने एग्रीमेंट के तहत नोएडा पावर कंपनी का लाइसेंस 2023 में खत्म हो गया। लेकिन, उसने पेंच फंसाकर अपीलेट ट्रिब्यूनल फॉर इलेक्ट्रिसिटी (अपटेल) ट्रिब्यूनल से विवाद खड़ा कर दिया। अब सबसे बड़ा चौंकाने वाला मामला यह है कि वर्तमान में उत्तर प्रदेश सरकार नोएडा पावर कंपनी के लाइसेंस को समाप्त करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा लड़ रही है।
यूपीपीसीएल के दस्तावेज में निजीकरण पर हामी
उपभोक्ता परिषद का कहना है कि इस तरह देखा जाए तो एक तरफ उत्तर प्रदेश सरकार देश के निजी घराने को टेकओवर करने की बात कर रही है और वहीं एनर्जी टास्क फोर्स की बैठक में नोएडा पावर कंपनी के गुणगान गाए जा रहे हैं। दक्षिणांचल व पूर्वांचल सरकारी कंपनी को निजी क्षेत्र में देने की बात की जा रही है। यह सरकार की कैसी नीति है एक तरफ टेकओवर दूसरी तरफ हैंडओवर की लड़ाई। अवधेश वर्मा ने कहा कि मामला यहीं नहीं रुक रहा है। पावर कारपोरेशन बड़ी-बड़ी बातें करता रहा है कि यह पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल निजीकरण नहीं है। जबकि एनर्जी टास्क फोर्स की बैठक में क्लॉज नंबर पांच निवेश के आकर्षण में में स्वत: लिखा गया कि निजीकरण से बिजली वितरण क्षेत्र में पर्याप्त घरेलू और विदेशी निवेश आकर्षित हो सकता है। यानी कि एनर्जी टास्क फोर्स ने स्वत: मान लिया कि यह निजीकरण ही है।
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