पश्चिमी यूपी में 4000 साल पुरानी सभ्यता का नया रहस्य : बागपत के आला टीले पर खुदाई में मिले महाभारत कालीन सभ्यता के बर्तन

बागपत के आला टीले पर खुदाई में मिले महाभारत कालीन सभ्यता के बर्तन
UPT | खुदाई में मिले बर्तन।

Jan 15, 2025 12:55

पश्चिमी यूपी के बागपत जिले के तिलवाड़ा गांव में महाभारत कालीन सभ्यता के प्रमाण मिले हैं। खुदाई में 4000 साल पुराने मृदभांड, शवाधान स्थल और जानवरों की हड्डियां पाई गईं, जिनकी बनावट सिनौली साइट से मेल खाती है।

Jan 15, 2025 12:55

Baghpat News : पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के तिलवाड़ा गांव में एक बार फिर महाभारत कालीन सभ्यता के संकेत मिले हैं। यहां खुदाई के दौरान 4000 साल पुराने मृदभांड (मिट्टी के बर्तन) और अन्य पुरातात्विक वस्तुएं पाई गई हैं। इन वस्तुओं की बनावट सिनौली साइट पर मिले अवशेषों से मेल खाती है। सिनौली, जहां 106 मानव कंकाल और अन्य ऐतिहासिक वस्तुएं मिली थीं, तिलवाड़ा से केवल 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।



महाभारत कालीन सभ्यता के प्रमाण: मृदभांड और शवाधान स्थल की खोज
तिलवाड़ा गांव के आला टीले पर खुदाई के दौरान जो मृदभांड मिले हैं, वे लगभग 4000 साल पुराने माने जा रहे हैं। खुदाई में एक बड़े मिट्टी के बर्तन का पता चला, जिसका उपयोग शवाधान (अंतिम संस्कार) के लिए किया जाता था। इसके अलावा, कुछ जानवरों की हड्डियां भी मिली हैं, जो इस क्षेत्र के प्राचीन रीति-रिवाजों और जीवनशैली की झलक देती हैं।

ASI (आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया) के अनुसार, तिलवाड़ा का यह क्षेत्र महाभारत कालीन है। यहां खुदाई का कार्य अगले दो महीने तक चलेगा और इससे जुड़े कई नए रहस्य उजागर हो सकते हैं।

यमुना किनारे पर स्थित खुदाई स्थल: ऐतिहासिक धरोहरों का खजाना
दिल्ली से 82 किलोमीटर दूर, तिलवाड़ा गांव यमुना नदी के किनारे स्थित है। यह क्षेत्र हरियाणा के पानीपत जिले की सीमा से सटा हुआ है। यहां एक गन्ने के खेत में खुदाई की जा रही है, जो अन्य खेतों से करीब पांच-छह फीट ऊंचाई पर स्थित है। इस खेत में खुदाई के दौरान पिछले एक महीने में बड़ी संख्या में मृदभांड पाए गए हैं।

स्थानीय निवासियों ने पहले भी इस क्षेत्र में पुरानी वस्तुएं खोजी थीं और उन्हें ASI को सौंप दिया था। इसके बाद ASI ने 11 दिसंबर 2024 से खुदाई शुरू की। खुदाई में आठ सदस्यीय टीम और कुछ शोधकर्ता शामिल हैं, जो मजदूरों के साथ दिन-रात काम कर रहे हैं।

सुरक्षित खुदाई: फोटो और वीडियो पर रोक
ASI की टीम ने खुदाई स्थल को बांस और बल्लियों से कवर किया है, ताकि किसी बाहरी व्यक्ति की पहुंच न हो। मीडिया या किसी अन्य व्यक्ति को यहां की तस्वीरें और वीडियो लेने की अनुमति नहीं है। खुदाई स्थल पर मिली वस्तुओं को सावधानीपूर्वक प्लास्टिक कंटेनरों में रखा जा रहा है और जांच के लिए भेजा जा रहा है।

सिनौली साइट से समानता: 4000 साल पुराने अवशेषों का पुनः साक्षात्कार
सिनौली साइट, जो तिलवाड़ा से मात्र 10 किलोमीटर दूर है, 2005 से 2018 तक चली खुदाई के लिए प्रसिद्ध है। वहां से 106 मानव कंकाल, तांबे की तलवारें, रथ और अन्य वस्तुएं मिली थीं, जिनकी उम्र करीब 4000 साल मानी गई थी। तिलवाड़ा की खुदाई में जो मृदभांड मिले हैं, वे सिनौली के अवशेषों से काफी मिलते-जुलते हैं।

सिनौली की तरह, तिलवाड़ा को भी महाभारत कालीन शवाधान स्थल माना जा रहा है। संभावना है कि यहां आगे खुदाई में मानव कंकाल भी मिल सकते हैं, जो प्राचीन जीवन शैली और रीति-रिवाजों को समझने में मदद करेंगे।

महाभारत कालीन स्थान: हस्तिनापुर और कुरुक्षेत्र के बीच का क्षेत्र
तिलवाड़ा गांव महाभारत कालीन क्षेत्र का हिस्सा माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, बागपत उन पांच गांवों में से एक था, जिन्हें पांडवों ने युद्ध से पहले कौरवों से मांगा था। यहां हिंडन और कृष्णा नदी के बीच बरनावा गांव में बड़े टीले पर एक गुफा भी स्थित है। यह वही गुफा है, जहां से पांडवों ने लाक्षागृह की आग से बचने के बाद अपनी जान बचाई थी।

ग्रामीणों की उम्मीदें: ऐतिहासिक धरोहरों की खोज का सपना
तिलवाड़ा गांव के किसान इस खुदाई से बहुत उम्मीदें लगा रहे हैं। उनका मानना है कि इस स्थल से और भी ऐतिहासिक और पौराणिक वस्तुएं मिल सकती हैं। स्थानीय निवासी बताते हैं कि पहले भी बारिश के बाद खेतों में मिट्टी के नीचे से सिक्के और अन्य वस्तुएं मिलती थीं। इन वस्तुओं को उन्होंने कुम्हारों और अन्य लोगों को देते हुए देखा है।

खुदाई की प्रक्रिया: कार्बन डेटिंग और मृदभांडों की जांच
तिलवाड़ा की खुदाई के दौरान मिले मृदभांडों की कार्बन डेटिंग संभव नहीं है, क्योंकि इनमें कार्बन नहीं होता। इसलिए, उनकी उम्र का अनुमान उनकी बनावट और संरचना के आधार पर लगाया जाएगा। अभी तक खुदाई में दो ट्रेंच बनाई गई हैं और तीसरे ट्रेंच की तैयारी की जा रही है। अगर इस स्थल पर महत्वपूर्ण वस्तुएं मिलती हैं, तो खुदाई की अवधि बढ़ाई जा सकती है।

नए रहस्यों की उम्मीद: महाभारत कालीन इतिहास की नई कड़ियां
तिलवाड़ा की खुदाई महाभारत काल के इतिहास को समझने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इस क्षेत्र से मिले अवशेषों की जांच से उस काल की सभ्यता, रीति-रिवाज, और जीवनशैली के बारे में नई जानकारियां मिल सकती हैं। ASI के अधिकारी और शोधकर्ता इसे भारतीय इतिहास के लिए एक बड़ी खोज मान रहे हैं।

महाभारत काल के रहस्यों का पुनः जागरण
तिलवाड़ा की खोज ने महाभारत कालीन सभ्यता के प्रति नए सिरे से उत्सुकता जगाई है। ग्रामीणों और शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि इस खुदाई से भारतीय इतिहास के उन पन्नों को उजागर किया जाएगा, जो आज भी रहस्यमयी हैं।

खुदाई में जानवरों की हड्डियां मिलीं: पौराणिक संकेत या दफनाने की परंपरा?
तिलवाड़ा गांव की खुदाई में जहां महाभारत कालीन मृदभांड मिले, वहीं कुछ हड्डियां भी पाई गईं। ASI अधिकारियों ने शुरुआत में इन्हें मानव अवशेष समझा, लेकिन जांच में ये जानवरों की हड्डियां निकलीं। ऐसा प्रतीत होता है कि इन जानवरों को किसी विशेष अनुष्ठान या मृत्यु के बाद दफनाया गया होगा।

ट्रेंच की दीवारों में इन हड्डियों के टुकड़े अब भी फंसे हुए हैं। ASI की टीम इन्हें बेहद सावधानी से बाहर निकाल रही है। इन हड्डियों की उम्र का निर्धारण बनावट और संरचना के आधार पर किया जाएगा।

खुदाई का विस्तार: तीसरी ट्रेंच बनाने की तैयारी
तिलवाड़ा के तीन बीघा खेत में खुदाई का कार्य जोर-शोर से चल रहा है। अभी तक दो ट्रेंच बनाई गई हैं, और अब तीसरी ट्रेंच बनाने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। ASI अधिकारी के अनुसार, किसी भी खुदाई स्थल पर यह प्रक्रिया तीन महीने तक चलती है। अगर महत्वपूर्ण अवशेष मिलते हैं, तो यह अवधि और बढ़ाई जा सकती है।

खुदाई में मिले सभी बर्तनों को अलग-अलग प्लास्टिक कंटेनरों में संरक्षित किया जा रहा है। चूंकि मृदभांडों में कार्बन नहीं होता, इसलिए उनकी कार्बन डेटिंग संभव नहीं है। उनकी उम्र बनावट और डिजाइन के आधार पर अनुमानित की जाएगी।

सिनौली साइट: 4000 साल पुरानी सभ्यता के प्रमाण
तिलवाड़ा से मात्र 10 किलोमीटर दूर सिनौली साइट पर 2005 में ASI ने पहली बार खुदाई की थी। यहां से 106 मानव कंकाल, तांबे की तलवारें, रथ और अन्य वस्तुएं मिलीं थीं।

2017-18 की खुदाई में शाही कब्रगाह, खाट जैसे ताबूत और शवों के साथ दफन किए गए रथ पाए गए। इनकी उम्र कार्बन डेटिंग के आधार पर 2300-1950 ईसा पूर्व के बीच मानी गई। इससे यह क्षेत्र महाभारत कालीन सभ्यता का महत्वपूर्ण हिस्सा सिद्ध हुआ।

तिलवाड़ा की खुदाई से जुड़ी संभावनाएं: इतिहास के नए पन्ने
तिलवाड़ा की खुदाई में जानवरों की हड्डियों और प्राचीन मृदभांडों का मिलना, इस क्षेत्र के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को और बढ़ाता है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह स्थल महाभारत कालीन शवाधान स्थलों में से एक हो सकता है। यहां मानव कंकाल मिलने की भी संभावना है, जो इस क्षेत्र की पौराणिक कड़ियों को मजबूत कर सकते हैं।

ग्रामीणों की उम्मीदें: पौराणिक धरोहरों की खोज
तिलवाड़ा के ग्रामीण इस खुदाई को लेकर बेहद उत्साहित हैं। किसान वीरेंद्र सिंह का कहना है, "हमारे पूर्वजों ने बताया था कि खेतों में काम करते समय सिक्के और प्राचीन धरोहरें मिलती थीं। अब ASI की खुदाई से हमें इन चीजों को देखने और समझने का अवसर मिलेगा।"

किसान सुनील खोखर ने बताया कि उनके दादा के समय में भी खेतों में चिक्के और सिक्के मिलते थे। एक कुम्हार ने सिक्कों को अपनी टोपी में सजाकर रखा था, जो आज भी गांव की कहानी का हिस्सा है।

पौराणिक संदर्भ: बागपत और महाभारत का गहरा संबंध
बागपत महाभारत काल में पांडवों द्वारा मांगे गए पांच गांवों में से एक माना जाता है। यहां बरनावा गांव में स्थित एक बड़ा टीला और गुफा महाभारत कालीन इतिहास को प्रमाणित करते हैं। कहा जाता है कि यह वही गुफा है, जहां से पांडव लाक्षागृह की आग से बचकर निकले थे।

खुदाई की प्रक्रिया और चुनौतियां
ASI टीम द्वारा खुदाई स्थल को बांस और बल्लियों से सुरक्षित किया गया है। किसी भी बाहरी व्यक्ति को यहां प्रवेश की अनुमति नहीं है। मीडिया और अन्य लोगों के लिए फोटो और वीडियो लेने पर सख्त पाबंदी है। खुदाई में मिले अवशेषों को पॉलीपैक में पैक करके जांच के लिए भेजा जा रहा है।

महाभारत कालीन सभ्यता के नए संकेत
तिलवाड़ा की खुदाई महाभारत काल की सभ्यता के बारे में और अधिक जानकारी दे सकती है। जानवरों की हड्डियों और प्राचीन मृदभांडों का मिलना इस क्षेत्र के इतिहास को गहराई से समझने में मदद करेगा। विशेषज्ञों का मानना है कि यह स्थल प्राचीन रीति-रिवाजों और जीवनशैली की झलक प्रदान कर सकता है।

निष्कर्ष: भारतीय इतिहास की अमूल्य खोज
तिलवाड़ा की खुदाई भारतीय इतिहास के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। यहां मिले अवशेष महाभारत कालीन सभ्यता और उस समय के रीति-रिवाजों को समझने में मदद कर सकते हैं। ग्रामीणों और शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि यह खुदाई भारतीय इतिहास की कई नई कहानियों को उजागर करेगी। 

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