रालोद के साथ होने का भरपूर फायदा समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने उठाया था। वेस्ट यूपी की 14 में 3 सीट समाजवादी पार्टी ने जीती थीं। जबकि, बसपा चार सीट जीत गई थी। मतलब, साफ है कि...
चरण सिंह को भारत रत्न और रालोद-भाजपा गठबंधन : आखिर क्यों भाजपा नरम पड़ी, जयंत की क्या रही मजबूरी
Feb 09, 2024 18:55
Feb 09, 2024 18:55
- पिछले लोकसभा चुनाव की बात करें तो 2019 में भाजपा को पूरे उत्तर प्रदेश में 18 सीटों पर मात खानी पड़ी थी।
- पहले साल 2014 और फिर 2019 के लोकसभा चुनाव में रालोद खाता नहीं खोल पाई थी।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सीटों पर भाजपा की नजर
पिछले लोकसभा चुनाव की बात करें तो 2019 में भाजपा को पूरे उत्तर प्रदेश में 18 सीटों पर मात खानी पड़ी थी। जिसमें से 7 सीट सिर्फ पश्चिमी उत्तर प्रदेश की थीं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 14 लोकसभा सीट हैं और भाजपा आधी हार गई थी। यानी भाजपा किसी भी हालत में पिछले चुनाव के परिणाम को दोहराना नहीं चाहती है। बल्कि भाजपा का लक्ष्य ज्यादा से ज्यादा सीट जीतना है। इसी कारण येन-केन-प्रकारेण रालोद को अपने पाले में लाया गया है। भाजपा का लक्ष्य रालोद के बहाने जाट समुदाय को अपनी तरफ करना है। क्योंकि, भाजपा की तमाम कोशिशों के बावजूद वेस्ट यूपी का अधिकांश जाट वोटर रालोद के पाले में खड़ा है।
अजित और जयंत मामूली अंतर से हारे
पहले साल 2014 और फिर 2019 के लोकसभा चुनाव में रालोद खाता नहीं खोल पाई थी। 2014 के लोकसभा चुनाव में जयंत मथुरा से हेमा मालिनी के सामने हार गए थे। अजित सिंह तो अपने गढ़ बागपत में हारे थे। अगर 2019 की बात करें तो छोटे चौधरी और जयंत ने सीट बदल लीं। अजित मुजफ्फरनगर चले गए और जयंत मथुरा छोड़कर बागपत गए थे। फिर भी दोनों को हार का सामना करना पड़ा था। मुजफ्फरनगर से खुद अजित सिंह मामूली 6,526 वोटों के अंतर से चुनाव हार गए थे। बागपत से जयंत चौधरी 23,502 वोट से चुनाव हार गए थे।
सपा-बसपा ने भरपूर फायदा उठाया
रालोद के साथ होने का भरपूर फायदा समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने उठाया था। वेस्ट यूपी की 14 में 3 सीट समाजवादी पार्टी ने जीती थीं। जबकि, बसपा चार सीट जीत गई थी। मतलब, साफ है कि गठबंधन का फायदा रालोद को भले नहीं मिला लेकिन सपा और बसपा की चांदी हो गई थी। वहीं, भाजपा को वेस्ट यूपी में करारा झटका लगा था। यही वजह है कि अखिलेश यादव किसी भी कीमत पर जयंत को साथ रखना चाहते थे। इसी की भरपाई करने के लिए सपा ने जयंत को राज्यसभा भेजा था। अब मोदी सरकार ने चरण सिंह को भारत रत्न देकर बाजी पलट दी है। जयंत के लिए भाजपा की तरफ आने वाला रास्ता प्रसस्त कर दिया है।
भाजपा की जीत का मार्जिन गिरा
रालोद के समाजवादी पार्टी से हाथ मिलाने का भाजपा को दूसरा बड़ा नुकसान विनिंग मार्जिन गिरना था। ऐसे में अब जब पिछले तीन साल से वेस्ट यूपी के किसान नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं तो जाट वोटरों का भाजपा के खिलाफ जाना लाजिमी था। इस गुस्से को काम करने और जाट वोटरों के लिए भाजपा छोड़कर रालोद के साथ जाने का विकल्प खत्म हो गया है। भाजपा ने वेस्ट यूपी में सात हारी हुई सीटों पर जीत का रास्ता पुख्ता कर लिया है।
रालोद, भाजपा दोनों को जीत का भरोसा
रालोद के साथ जाकर भाजपा 7 हारी हुई सीट पर अपनी जीत पक्की कर रही है तो दूसरी तरफ जयंत चौधरी भी भाजपा के लहर पर सवार होकर अपनी नैया पार लगाने की कोशिश में हैं। रालोद को ऐसा भरोसा है कि वो मोदी के साथ रहकर 2024 के चुनाव को आसानी से साध सकती है।
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