बड़ी बात यह है कि ख़ुद जाट बिरादरी से ताल्लुक़ रखने और चौधरी चरण सिंह के बेहद नज़दीक रहने के बावजूद किरनपाल सिंह ने मुलायम सिंह यादव के साथ खड़ा होना मुनासिब समझा था। वह पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह और चौधरी अजित सिंह के जनता दल को छोड़कर मुलायम सिंह यादव के साथ समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए थे।
किरनपाल सिंह वेस्ट यूपी की जाट राजनीति पर रखते थे पकड़ : फिर भी अजित सिंह के ध्रुव विरोधी और मुलायम सिंह के खास रहे
Oct 21, 2024 20:14
Oct 21, 2024 20:14
मुलायम सिंह के बाद सपा छोड़ी, अजित सिंह के बाद रालोद में गए
बड़ी बात यह है कि ख़ुद जाट बिरादरी से ताल्लुक़ रखने और चौधरी चरण सिंह के बेहद नज़दीक रहने के बावजूद किरनपाल सिंह ने मुलायम सिंह यादव के साथ खड़ा होना मुनासिब समझा था। वह पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह और चौधरी अजित सिंह के जनता दल को छोड़कर मुलायम सिंह यादव के साथ समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए थे। जब तक मुलायम सिंह यादव राजनीति में सक्रिय रहे, किरण पाल सिंह लगातार उनके साथ सपा में बने रहे। मुलायम सिंह यादव की मृत्यु के बाद किरनपाल सिंह ने समाजवादी पार्टी का दामन छोड़ दिया था। वह पहले भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए। बड़ी बात यह थी कि अपने पूरे राजनीतिक जीवन में किरनपाल सिंह ने भारतीय जनता पार्टी के ख़िलाफ़ राजनीति की थी। अंततः क़रीब दो साल पहले किरनपाल सिंह ने भारतीय जनता पार्टी छोड़कर राष्ट्रीय लोकदल का दामन थाम लिया था। हालांकि, किरनपाल सिंह, चौधरी अजित सिंह के रहते राष्ट्रीय लोकदल में नहीं गए थे। उन्हें जयंत चौधरी ने राष्ट्रीय लोकदल में शामिल किया था।
किरनपाल सिंह ने छात्र जीवन से राजनीति की शुरुआत की
किरनपाल सिंह बुलंदशहर के नज़दीक धमैडा कीरत गांव के निवासी थे। वह बुलंदशहर के डीएवी डिग्री कॉलेज के छात्र थे। ख़ास बात यह है कि उस वक़्त जय प्रकाश नारायण का छात्र आंदोलन चरम पर था। किरनपाल सिंह जेपी मूवमेंट से प्रभावित होकर राजनीति में कूद गए थे। कुछ समय के लिए किरनपाल सिंह ने अध्यापन का भी काम किया। इसी वजह से उन्हें प्रोफ़ेसर कहकर लोग संबोधित करते थे।
अगोता विधानसभा सीट से पांच बार विधायक रहे
किरनपाल सिंह के विधायी जीवन की शुरुआत 1980 के चुनाव में हुई। उन्होंने जनता पार्टी सेकुलर के टिकट पर बुलंदशहर की अगोता विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और शानदार जीत दर्ज की थी। इसके बाद किरनपाल सिंह ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। इसी दौरान किसान नेता चौधरी चरण सिंह का कांग्रेस से मोहभंग हो चुका था और उन्होंने लोकदल का गठन कर लिया था। लिहाज़ा, किरनपाल सिंह, चौधरी चरण सिंह से प्रभावित होकर लोकदल में शामिल हो गए। उन्होंने वर्ष 1985 का चुनाव लोकदल के टिकट पर जीता था। इसी बीच 29 मई 1987 को चौधरी चरण सिंह का निधन हो गया। इसके साथ ही लोकदल का विघटन हो गया। नए राजनीतिक संगठन जनता दल का उद्भव हुआ। लिहाज़ा, किरनपाल सिंह जनता दल में शामिल हो गए। उन्होंने वर्ष 1989 का चुनाव जनता दल से लड़ा था।
जाट लीडर अजित सिंह की बजाय यादव नेता मुलायम सिंह को चुना
जब जनता दल का विघटन चौधरी अजित सिंह और मुलायम सिंह के बीच हुआ तो किरनपाल सिंह ने मुलायम सिंह यादव का दामन थाम लिया। वर्ष 1993 के चुनाव में किरनपाल सिंह को सजातीय उम्मीदवार विरेंद्र सिंह सिरोही से कड़ी टक्कर मिली और उन्हें हार का सामना करना पड़ा। तब तक राम मंदिर आंदोलन उत्तर प्रदेश में चरम पर पहुंच चुका था। भारतीय जनता पार्टी ने अपनी जड़ें मज़बूत कर ली थीं। विरेंद्र सिंह सिरोही भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार थे। वर्ष 2002 के चुनाव में किरनपाल सिंह ने एक बार फिर वापसी की। किरनपाल सिंह ने वीरेंद्र सिंह सिरोही को हराया। राज्य में बहुजन समाज पार्टी की सरकार बनी। जिसे भारतीय जनता पार्टी समर्थन दे रही थी, लेकिन क़रीब दो साल बाद भाजपा-बसपा गठबंधन की सरकार गिर गई और मुलायम सिंह यादव ने उत्तर प्रदेश में सरकार का गठन किया।
मुलायम सिंह यादव ने वफादारी का तोहफा दिया, मंत्री बनाया
जैसा मुलायम सिंह यादव के बारे में कहा जाता है, वह अपने वफादारों का ख़ास ख्याल रखते थे। लिहाज़ा, मुलायम सिंह यादव ने किरनपाल सिंह को कैबिनेट मिनिस्टर बनाया और उन्हें बेसिक शिक्षा विभाग का पोर्टफोलियो दिया। किरनपाल सिंह ने मंत्री रहते शानदार काम किया, लेकिन इसी दौरान चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय की प्रोफ़ेसर कविता चौधरी की हत्या हो गई। उसके सेक्स स्कैंडल ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया।
कविता कांड ने किरनपाल सिंह को बड़ा नुकसान पहुंचाया
कविता कांड में उत्तर प्रदेश के कई मंत्रियों के नाम सामने आए। जिनमें किरनपाल सिंह पर कविता की हत्या करने वाले रविंद्र प्रधान को संरक्षण देने का आरोप लगा। ठीक विधानसभा चुनाव से पहले इस बड़े कांड ने किरनपाल सिंह की छवि को बर्बाद कर दिया। जिसका खामियाजा उन्हें वर्ष 2007 में हुए विधानसभा चुनाव में उठाना पड़ा और वह बुरी तरह चुनाव हार गए। एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी और पूर्व मंत्री वीरेंद्र सिंह सिरोही ने किरनपाल सिंह को करारी शिकस्त दी थी। इसके बाद किरनपाल सिंह राजनीति में कोई ख़ास करिश्मा नहीं कर पाए। दूसरा बड़ा झटका उन्हें तब लगा, जब वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले उनकी परम्परागत विधानसभा सीट अगोता को डीलिमिटेशन कमीशन ने ख़त्म कर दिया। तब से लेकर अब तक क़रीब 12 वर्ष किरनपाल सिंह अपनी खोई हुई राजनीतिक ज़मीन को तलाशने में लगे रहे। इसी दौरान उन्हें कैंसर ने घेर लिया और अंततः सोमवार की सुबह किरनपाल सिंह का निधन हो गया।
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