वायरल चिठ्ठियों से बड़े संकेत ! कैबिनेट मंत्री नंदगोपाल गुप्ता नंदी के दो पत्रों से भूचाल, सियासी गलियारे से अफसरशाही तक सब हैरान, जानें क्या लिखा है

कैबिनेट मंत्री नंदगोपाल गुप्ता नंदी के दो पत्रों से भूचाल, सियासी गलियारे से अफसरशाही तक सब हैरान, जानें क्या लिखा है
UPT | औद्योगिक विकास मंत्री नंद गोपाल गुप्ता 'नंदी'

Feb 07, 2024 13:44

इनमें से एक चिट्ठी नंदी ने उत्तर प्रदेश के अवस्थापना एवं औद्योगिक विकास आयुक्त मनोज कुमार सिंह को लिखी है। जिसमें राज्य के औद्योगिक विकास प्राधिकरणों में इंडस्ट्रियल लैंड की अलॉटमेंट पॉलिसी पर सवाल खड़ा किया गया है...

Feb 07, 2024 13:44

Noida News : योगी आदित्यनाथ कैबिनेट में औद्योगिक विकास मंत्री नंद गोपाल गुप्ता 'नंदी' लैटर बम दागने के लिए खासे मशहूर हो चले हैं। मंगलवार की सुबह से नंदी की दो चिट्ठियां सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं। इनमें से एक चिट्ठी नंदी ने उत्तर प्रदेश के अवस्थापना एवं औद्योगिक विकास आयुक्त मनोज कुमार सिंह को लिखी है। जिसमें राज्य के औद्योगिक विकास प्राधिकरणों में इंडस्ट्रियल लैंड की अलॉटमेंट पॉलिसी पर सवाल खड़ा किया गया है। दूसरी चिट्ठी मंत्री के कार्यालय की पत्रावली का हिस्सा है, जो गोपनीय रहना चाहिए। लेकिन पत्रावली का यह हिस्सा भी सोशल मीडिया पर आ गया है। आपको बता दें कि यह पहला मौका नहीं है जब नंद गोपाल गुप्ता 'नंदी' ने इस तरह का पत्र लिखा है। इससे साफ ज़ाहिर हो रहा है कि उत्तर प्रदेश को विकास के पथ पर दौड़ाने वाले इस महकमे में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। नंदी की चिट्ठी की भाषा जता रही है कि उनके और महकमे के शीर्ष अफसरों के बीच सामंजस्य नहीं है। नंदी की ताजा चिट्ठी के कारण ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी की औद्योगिक भूखंड आवंटन योजना को रद्द करना पड़ा है।

आखिर नंदी ने चिट्ठी में क्या लिखा?
औद्योगिक विकास मंत्री नंद गोपाल गुप्ता 'नंदी' ने आईआईडीसी मनोज कुमार सिंह को लिखी ताजा चिट्ठी में कहा है, "मेरे कार्यालय की टिप्पणी दिनांक 17 जुलाई 2023 का संदर्भ लें। जिसमें औद्योगिक भूखंडों के आवंटन की प्रक्रिया को पारदर्शी और ऑब्जेक्टिव बनाने के बारे में टिप्पणी की थी। मैंने तत्काल पत्र भेजा था। इतनी महत्वपूर्ण नीति परक पत्रावली पर माननीय मुख्यमंत्री का मार्गदर्शन या आदेश प्राप्त करना चाहिए था। तभी अग्रिम प्रक्रिया पूरी की जानी चाहिए थी। परंतु आपके स्तर से आवंटन की प्रक्रिया शुरू कर गई दी है। जिसके संबंध में मुझे औद्योगिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने मिलकर शिकायत की है। उनके अनुसार प्रक्रिया पूर्णतः पारदर्शी नहीं है। इस प्रक्रिया में सुधार की आवश्यकता है।" नंदी ने अपने पत्र में आगे लिखा है, "कृपया तत्काल इस संबंध में टिप्पणी प्रस्तुत करें। अभी हाल में प्राधिकरणों ने इस प्रक्रिया में कितने भूखंड किस-किस औद्योगिक संस्था को दिए हैं और यह आवंटन किस आधार पर किया गया है। उपरोक्त की प्रगति तथा प्रक्रिया व सुझावों के साथ एक टिप्पणी माननीय मुख्यमंत्री जी के निर्देश या मार्गदर्शन के लिए प्रस्तुत की जानी है। इसी क्रम में या निर्देशित किया जाता है कि माननीय मुख्यमंत्री जी के मार्गदर्शन प्राप्त किए जाने तक औद्योगिक भूखंडों का आवंटन ई-ऑक्शन के स्थान पर किसी अन्य पद्धति से न करें।"

जीएम के खिलाफ मंत्री ने लिखा था लेटर
औद्योगिक विकास मंत्री नंद गोपाल गुप्ता का यह लेटर बम कोई नया नहीं है। इससे पहले भी मंत्री की ओर से विकास प्राधिकरणों के अफसरों के ख़िलाफ प्रमुख सचिव या अपर मुख्य सचिव को पत्र लिखे गए, जो सार्वजनिक होते रहे हैं। नंद गोपाल गुप्ता ने 5 अगस्त 2022 को ग्रेटर नोएडा के तत्कालीन उप महाप्रबंधक के ख़िलाफ चिट्ठी तत्कालीन प्रमुख सचिव को भेजी थी। जिसमें जीएम पर बेहद गंभीर आरोप लगाए गए थे। उस चिट्ठी में मंत्री ने कई शिकायतों का हवाला दिया था। मंत्री ने जीएम के शैक्षणिक दस्तावेज तक फर्ज़ी और जाली करार दिए थे। जिनकी तीन दिनों में जांच करने का आदेश तत्कालीन मुख्य कार्यपालक अधिकारी को दिया था। इतना ही नहीं, मंत्री ने तत्कालीन अपर मुख्य कार्यपालक अधिकारी अमनदीप दुली पर घोर लापरवाही बरतने की बात पत्र में लिखी थी। मंत्री ने अपर मुख्य कार्यपालक अधिकारी की चरित्र पंजिका में प्रतिकूल प्रविष्टि दर्ज करने का आदेश दिया था। वह पत्र भी सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ था। जिसके बाद जीएम का तबादला ग्रेटर नोएडा से कानपुर यूपीसीडा के मुख्यालय में कर दिया गया था।

जीएम की वापसी से मंत्री पर सवाल उठे
जीएम वाले मामले में नंदी की किरकिरी हुई थी। इस पत्र के बाद वाली पूरी कार्रवाई को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था। मंत्री के पत्र पर क्या कार्रवाई की गई? क्या जांच हुई? इस बारे में कभी कोई जानकारी नहीं दी गई। इतना ही नहीं कुछ महीने बाद ही डीजीएम को कानपुर से वापस यमुना एक्सप्रेसवे इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी भेज दिया गया था। जब जीएम को यमुना प्राधिकरण भेजा गया था उस वक़्त तबादले नहीं किए जा सकते थे। मिड सेशन तबादला करने के लिए मुख्यमंत्री के अनुमोदन की आवश्यकता थी। लिहाजा, चोर रास्ता निकालते हुए जीएम को यमुना प्राधिकरण में अटैच किया गया था। उस वक़्त औद्योगिक विकास मंत्री ने मुख्यमंत्री के आदेशों और राज्य स्थानांतरण नीति की मर्यादा याद नहीं की थी। जीएम को यमुना अथॉरिटी से वापस कानपुर भेजा गया। फिर नोएडा अथॉरिटी में ट्रांसफर किया गया। अब करीब दो महीने पहले उस डीजीएम को दोबारा यूपीसीडा भेजा गया है। इस मामले ने मंत्री की छवि को भारी धक्का लगाया है।

तबादला नीति का किया बड़ा दुरुपयोग 
इस मामले के अलावा नोएडा, ग्रेटर नोएडा, यमुना अथॉरिटी और यूपीसीडा में भारी पैमाने पर हुए तबादलों में गड़बड़ियों के आरोप लगे हैं। ग्रेटर नोएडा में रहने वाली एक महिला के घर के बाहर प्राधिकरणों में तैनात अफसरों की लाइनें लगीं। तबादले करवाने और रुकवाने के लिए मोटे पैसे बतौर रिश्वत वसूले गए। उस महिला को बहन बताया जा रहा था। जब यह मामला सतह पर आया तो उस महिला ने ग्रेटर नोएडा से किराये का मकान खाली कर दिया था। कुल मिलाकर राज्य के महत्वपूर्ण औद्योगिक विकास प्राधिकरणों में केंद्रीयकृत तबादला नीति का जमकर दुरुपयोग किया गया। योगी आदित्यनाथ सरकार आने के बाद विकास प्राधिकरणों में केंद्रीयकृत नियुक्ति और तबादला नीति अफसरों का भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए बनाई गई थी। उलटे यह पॉलिसी प्राधिकरणों में नुकसान की वजह बन गई। जिसके चलते नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना अथॉरिटी जैसे महत्वपूर्ण निकाय अफसरों की भारी तंगी से जूझ रहे हैं। दूसरी तरफ बड़ी संख्या में उप महाप्रबंधक, महाप्रबंधक, मुख्य महाप्रबंधक, और प्रधान महाप्रबंधक जैसे बड़े-बड़े अफसर यूपीसीडा के कानपुर मुख्यालय में समय काट रहे हैं। युवा, काबिल और ईमानदार अफसरों को जानबूझकर तबादला नीति के सहारे निशाना बनाया गया है। खुलेआम आरोप लग रहे हैं कि तबादला होने के बाद वसूली की गई। जिससे दागी अफसर वापस लौट आए और अच्छे गरीब अफसर कानपुर में बर्बाद हो रहे हैं।

सपा-बसपा के नाम पर हो गया बड़ा खेल
समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की सरकारों के दौरान नोएडा, ग्रेटर नोएडा व यमुना अथॉरिटी में भारी पैमाने पर गड़बड़ियां हुई हैं। यह बात सीएजी की ऑडिट रिपोर्ट में सामने आ चुकी है। इन तीनों विकास प्राधिकरणों में सपा और बसपा के नाम पर बड़ा खेल खेला गया है। अच्छे अफसरों को ठिकाने लगाने के लिए उनका नाम समाजवादी पार्टी या बहुजन समाज पार्टी से जोड़ दिया गया। जबकि, पिछली सरकारों में भ्रष्टाचार में शामिल रहे और मलाई काटने वाले तमाम अफसर आज भी इन प्राधिकरणों में जमे हुए हैं। जिनके तबादले हो गए थे, वह येन-केन-प्रकारेण वापसी कर चुके हैं। दूसरी तरफ कुछ ऐसे अफसर हैं, जिन्होंने नोएडा और ग्रेटर नोएडा के लिए शिद्दत से काम किया। लेकिन वह अधिकारी राजनीति का शिकार हो गए हैं। नोएडा में तैनात रहे एक प्रधान महाप्रबंधक को समाजवादी पार्टी का हितैषी करार दे दिया गया। असर यह हुआ कि बीच बैठक में अफसर की इंटिग्रिटी पर टिप्पणी हुई। जिसके चलते उनको नोएडा से उठाकर कानपुर फेंक दिया गया। खास बात यह है कि जिस दिन तबादला कानपुर किया गया, उस दिन वह दिल्ली में भारत सरकार से नोएडा को चमकाने के लिए अवार्ड ले रहे थे। उस अफसर का भाई भारतीय जनता पार्टी का दो बार से विधायक है। यह कोई एक मामला नहीं है। नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना अथॉरिटी में तैनात रहे तमाम अफसरों ने अच्छे काम किए हैं, लेकिन उनका भयादोहन करने की कोशिश हुई।

प्राधिकरणों की परफॉर्मेंस पर बुरा असर
उत्तर प्रदेश को निवेश, नौकरियां और मजबूत आधारभूत ढांचा देने की ज़िम्मेदारी औद्योगिक विकास विभाग की है। इसी विभाग के जरिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ यूपी को 'वन बिलियन अमेरिकन डॉलर इकोनॉमी' बनाना चाहते हैं। इसी महकमे की बदौलत 'उत्तर प्रदेश ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट' का आयोजन किया गया है। इसी विभाग को करीब 35 लाख करोड़ रुपये के निवेश प्रस्तावों को धरातल पर उतारना है। दूसरी ओर नोएडा जैसा प्रीमियर इंस्टीट्यूशन अव्यवस्थाओं से जूझ रहा है। शहर के तमाम बड़े इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट अटके पड़े हैं। शहर में दो एलिवेटेड रोड, खुद प्राधिकरण का हेडक्वार्टर, इंटरनेशनल गोल्फ कोर्स, मेट्रो प्रोजेक्ट, हेलीपोर्ट और कई अंडरपास परवान नहीं चढ़ रहे हैं। नोएडा के सामने स्वछता सर्वेक्षण में शानदार रैंकिंग हासिल करने की चुनौती खड़ी है। अथॉरिटी में अच्छे अफसर नहीं हैं। अकेले सीईओ के लिए नैया पार लगाना मुश्किल है।

प्राधिकरण पर पांच हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज
अगर ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी की बात करें तो वहां कर्ज का अंबार लगा है। प्राधिकरण पांच हजार करोड़ रुपये से ज्यादा बड़े कर्ज में डूबा है। पिछले कई वर्षों से हाउसिंग स्कीम नहीं आई है। इंस्टीट्यूशनल स्कीम के नाम पर इक्का-दुक्का भूखंड आवंटन हुए हैं। औद्योगिक भूखंड आवंटन के लिए छोटी-छोटी योजनाएं लॉन्च की गई हैं। यह सब कुछ 'ऊंट के मुंह में जीरा' जैसी हालत है। पिछले दस वर्षों के दौरान ग्रेटर नोएडा का आधारभूत ढांचा बुरी तरह चरमराया है। अंतरराष्ट्रीय छवि वाले शहर की मुख्य सड़कों में गड्ढे हैं। आवासीय सेक्टरों में मौलिक सुविधाओं की तंगी से निवासी जूझ रहे हैं। शहर की ख़ूबसूरती तबाह हो रही है। पिछले कई वर्षों से ग्रेटर नोएडा में महाप्रबंधक और उप महाप्रबंधक स्तर के अफसरों की भारी कमी है। जिसके चलते काम ठप पड़े हैं।

यीडा में महाप्रबंधक और उप महाप्रबंधक स्तर के अधिकारियों का टोटा
यमुना प्राधिकरण की बात करें तो वहां भी हाल अच्छा नहीं है। यमुना अथॉरिटी तेजी से उभर रही है, लेकिन काम की रफ़्तार बेहद धीमी है। अब जब ज़ेवर में नोएडा इंटरनेशनल एयरपोर्ट शुरू हो जाएगा तो इस शहर को तेज़ी से शक्ल देने की आवश्यकता होगी। यमुना प्राधिकरण की मौजूदा वर्क फोर्स यह काम करने में नाकाम है। यमुना प्राधिकरण में भी महाप्रबंधक और उप महाप्रबंधक स्तर के अधिकारियों का टोटा है। अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि इतने महत्वपूर्ण निकाय में महप्रबन्धक जैसे पद पर सेवा विस्तार देकर काम चलाना पड़ रहा है। दूसरी तरफ यूपी सीडा के कानपुर मुख्यालय में सीनियर अफसरों को शंटिंग करके रखा गया है। कुल मिलाकर यूपी के जिस महकमे के कंधों पर बड़ी जिम्मेदारी है, उसके मंत्री का लैटर बम चिंता पैदा करता है। इससे साफ जाहिर होता है कि मंत्री और शीर्ष अफसरों के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है।

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