नोएडा में कोलकाता की मिट्टी से गढ़ी जा रहीं मूर्तियां : मूर्तिकार बोले-कोठे की मिट्टी के बिना मां दुर्गा का स्वरूप नहीं लेतीं प्रतिमाएं

मूर्तिकार बोले-कोठे की मिट्टी के बिना मां दुर्गा का स्वरूप नहीं लेतीं प्रतिमाएं
UPT | मां दुर्गा की मूर्ति को तैयार करता मूर्तिकार।

Sep 24, 2024 21:02

शारदीय नवरात्रि को शुरू होने में अब कुछ ही दिन बचे हैं। इसे लेकर पूरे भारत में पंडाल व मूर्तियां तैयार की जा रही हैं। दुर्गा प्रतिमाओं को गढ़ने में कोलकाता की मिट्टी का प्रयोग किया जा रहा है...

Sep 24, 2024 21:02

Noida News : शारदीय नवरात्रि को शुरू होने में अब कुछ ही दिन बचे हैं। इसे लेकर पूरे भारत में पंडाल व मूर्तियां तैयार की जा रही हैं। नवरात्रि में जहां मां दुर्गा की कृपा भक्तों पर बरसती है तो वहीं दूसरी ओर पंडालों में स्थापित मां का स्वरूप सदियों पुरानी परंपरा को जीवंत करता है। नोएडा में बंगाली समाज द्वारा जिन पंडालों में मां की स्थापना होती है। उन प्रतिमाओं को आज भी पुरानी परंपराओं के अनुसार ही तैयार किया जाता है। पंडालों में मां का स्वरूप स्त्री सम्मान और सद्भावनाओं का भी संदेश देता है।

कोठे की मिट्टी बिना मां का स्वरूप नहीं लेती प्रतिमा
नोएडा में कोलकाता से आए कारीगरों ने बताया कि दुर्गा प्रतिमाओं को गढ़ने में कोलकाता की मिट्टी का प्रयोग किया जा रहा है। कारीगरों का कहना हैं कि बिना कोठे की मिट्टी के यह प्रतिमाएं सही रूप में मां दुर्गा के स्वरूप का आकार नहीं लेती हैं।  इस त्योहार के लिए नोएडा शहर में भी कोलकाता की मिट्टी से कोलकाता के कारीगर मां दुर्गा की मनमोहक प्रतिमाएं गढ़ रहे हैं। मूर्तिकार दिन रात एक कर इन प्रतिमाओं को बनाने का काम कर रहे हैं। ताकि वे समय से पहले मूर्ति को पंडाल में स्थापित करने के लिए दे सकें। 

सोनागाछी की मिट्टी के बिना नहीं बनती प्रतिमाएं
मूलरूप से कोलकाता व वर्तमान में नोएडा निवासी मूर्तिकार विपुल सरकार कहते हैं कि वह दो माह से दुर्गा प्रतिमाओं को बनाने में जुटे हुए हैं। इसके लिए कोलकाता से मिट्टी मंगाई गई है। ताकि प्रतिमाओं को सुंदर और आकर्षण बनाने के साथ-साथ परंपराओं को भी निभाया जा सके। वह कहते हैं कि दुर्गा पूजा पंडालों में स्थापित मां के स्वरूप के निर्माण के लिए जिस काली मिट्टी का इस्तेमाल किया जाता है वह मिट्टी गंगा की काली मिट्टी होती है। पवित्र गंगा की काली मिट्टी में जब तक कोलकाता के सोनागाछी की मिट्टी को नहीं मिलाया जाता तब तक मां की प्रतिमा का निर्माण नहीं हो पाता है। 

कोठे की चौखट से लाई जाती है मिट्टी
मूर्तिकार संजीव महत्तो कहते हैं कि गंगा की काली मिट्टी और पुआल से प्रतिमा निर्माण होता है सोनागाछी से मिट्टी लाकर मिलाई जाती है। बंगाली समाज सोनागाछी की मिट्टी से बनी प्रतिमा की ही पूजा करते हैं। ऐसे में मां दुर्गा की प्रतिमाओं का  निर्माण वहां की मिट्टी के बगैर नहीं होता है। कोठे की चौखट से मिट्टी लाई जाती है। सदियों पुरानी परंपरा का निर्वहन वर्तमान समय में भी होता है। इसके पीछे एक वजह यह भी है कि मां दुर्गा में आज भी लोगों की उतनी ही आस्था जो सदियों पहले थी। 

कालीबाड़ी में कोलकाता की मिट्टी की प्रतिमा होगी स्थापित
दुर्गा पुजा के लिए सेक्टर-26 स्थित कालीबाड़ी मंदिर समिति पश्चिम बंगाल के विष्णुपुर मंदिर जैसा पंडाल बनाएगी। समिति के उपाध्यक्ष अनुपम बनर्जी ने बताया कि पंडाल में स्थापित मां दुर्गा की प्रतिमा को कोलकाता की मिट्टी और कोलकाता के कारीगरों द्वारा तैयार किया जा रहा है। मूर्ति बनाने के लिए महीनों पहले ही ऑडर दिया जाता है। ताकि मां दुर्गा की प्रतिमां सुंदर होने के साथ समय से मिल सके। उन्होंने बताया  कि कोलकाता की मिट्टी से बनी प्रतिमाओं का स्वरूप अलग होता है। 

इको फ्रेंडली बनाई जा रही प्रतिमाएं
शहर के सेक्टर-26, सेक्टर-31, शशि चौक आदि स्थानों पर कारीगर मां दुर्गा की प्रतिमाएं बना रहे हैं। कारीगरों द्वारा इन प्रतिमाओं को इको फ्रेंडली बनाया जा रहा है। ताकि आस्था भी बनी रहे और पर्यावरण को भी कोई नुकसान न पहुंचे। कारीगर प्रतिमाओं को सजाने के लिए प्राकृतिक रंगों का प्रयोग कर रहे हैं। इसके साथ ही इन प्रतिमाओं में आम, जामुन, नीम, आंवला आदि पौधों के बीच भी डाले जा रहे हैं। ताकि विसर्जन के बाद प्रतिमाएं पौधों का स्वरूप ले सकें। 

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