भारतीय संस्कृति में नारी को हमेशा से सम्मानित स्थान प्राप्त रहा है। इतिहास में कई विदुषी नारियों का नाम लिया जा सकता है, जैसे गार्गी और मैत्रेयी, जिन्होंने वेदों की रचना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
शारदीय नवरात्र : ‘नारी शक्ति’ के जागरण का उत्सव
Oct 08, 2024 21:31
Oct 08, 2024 21:31
वैदिक साहित्य में नारी का सम्मान
यजुर्वेद में नारी को महाशक्तिमती और मातृत्व की पहचान दी गई है। एक श्लोक में उल्लेखित है-
“मंहीमूषु मातरं सुव्रतानामृतस्य पत्नीमवसे हुवेम।”
इस श्लोक का अर्थ है कि नारी सिर्फ माता नहीं, बल्कि शक्तिशाली और कर्मशील भी है। वैदिक साहित्य में नारी के लिए ऐसे कई उद्धरण मिलते हैं जो उसकी सशक्त भूमिका को दर्शाते हैं। उदाहरण स्वरूप, वेदों में कहा गया है कि कन्याएँ विदुषी होकर विवाह करें, माता-पिता अपनी कन्या को विद्या का उपहार दें, और रानी भी न्याय करने का अधिकार रखती हैं।
सशक्त नारी की पहचान
भारतीय संस्कृति में नारी को हमेशा से सम्मानित स्थान प्राप्त रहा है। इतिहास में कई विदुषी नारियों का नाम लिया जा सकता है, जैसे गार्गी और मैत्रेयी, जिन्होंने वेदों की रचना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके अलावा, वैदिक काल में लड़कियों का भी उपनयन संस्कार होता था और उन्हें शिक्षा दी जाती थी।
हालांकि, आजकल तथाकथित ‘नारीवादी आंदोलन’ के द्वारा भारतीय नारी का स्वरूप विकृत किया जा रहा है। पश्चिमी देशों में चल रहे ‘नारीवादी’ आंदोलनों की तर्ज पर, भारतीय समाज में भी कुछ बुद्धिजीवी नारी को अपमानित करने वाली बातें कर रहे हैं। ऐसे में यह समझना जरूरी है कि भारतीय संस्कृति में नारी की स्थिति हमेशा सम्मानजनक रही है।
‘नारी शक्ति’ का उत्सव
भारत में नारी शक्ति का उत्सव मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। उत्तर भारत में नवरात्रि के दौरान माँ दुर्गा की पूजा की जाती है, जहां महिलाएं विशेष महत्व रखती हैं। इस समय कोलू और बोम्माला की परंपरा दक्षिण भारत में मनाई जाती है, जहां महिलाएं खुद को मानसिक रूप से मजबूत बनाती हैं।
गुजरात में नवरात्रि के दौरान गरबा और डांडिया की परंपरा महिलाओं को घर की चारदीवारी से बाहर लाती है, जिससे उन्हें अपने आप को व्यक्त करने का अवसर मिलता है। महाराष्ट्र में भी नवरात्रि के दौरान महिलाएँ एक-दूसरे को आमंत्रित कर उत्सव मनाती हैं, जो उनके बीच की एकता को दर्शाता है।
भारतीय नारी का गौरव
भारतीय नारी को न केवल शक्ति का प्रतीक माना गया है, बल्कि उसे ज्ञान और विद्या का भी प्रतीक माना जाता है। बृहदारण्यक उपनिषद में गार्गी की विद्वता का उदाहरण दिया गया है, जो इस बात का प्रमाण है कि नारी सदैव ज्ञान की ओर अग्रसर रही है। शंकराचार्य जैसे महान विचारक भी विदुषी स्त्री उभय भारती के समक्ष नतमस्तक हुए थे, जो भारतीय नारी की विद्वता को दर्शाता है।
भारतीय संस्कृति में नारी सदैव ‘मुक्ति’ का विषय नहीं रही, बल्कि वह ‘शक्ति’ का विषय है। भारतीय नारी को अपने गौरवबोध को जानकर आगे बढ़ने की आवश्यकता है। जब भारतीय नारी अपने स्वत्व को पहचान लेगी, तो विश्व भी उसकी ‘शक्ति’ का सम्मान करेगा और ‘भारतीय नारी शक्ति वंदन’ को विवश होगा।
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