सोनभद्र में प्रदूषण का कहर : औद्योगिक क्षेत्र के निवासियों के फेफड़े हो रहे कमजोर, स्वास्थ्य सर्वे में चौंकाने वाले परिणाम

औद्योगिक क्षेत्र के निवासियों के फेफड़े हो रहे कमजोर, स्वास्थ्य सर्वे में चौंकाने वाले परिणाम
UPT | Air pollution

Aug 01, 2024 13:41

सर्वे के अनुसार, यहां रहने वाले लोगों के फेफड़े तेजी से कमजोर हो रहे हैं। म्योरपुर के वनवासी सेवा आश्रम और दिल्ली के खतरा केंद्र द्वारा संयुक्त रूप से किए गए इस अध्ययन में पाया गया कि...

Aug 01, 2024 13:41

Short Highlights
  • यह सर्वे 11 गांवों के 400 से अधिक लोगों पर किया गया था
  • पुरुषों के फेफड़ों की क्षमता औसत भारतीय पुरुष की तुलना में कम पाई गई
  • टीबी, अस्थमा और अन्य श्वसन संबंधी बीमारियों के मामलों में वृद्धि 
Sonebhadra News : उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले के औद्योगिक क्षेत्र में एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या उभर कर सामने आई है। हाल ही में किए गए एक सर्वे के अनुसार, यहां रहने वाले लोगों के फेफड़े तेजी से कमजोर हो रहे हैं। म्योरपुर के वनवासी सेवा आश्रम और दिल्ली के खतरा केंद्र द्वारा संयुक्त रूप से किए गए इस अध्ययन में पाया गया कि इस क्षेत्र के निवासियों के फेफड़ों की कार्यक्षमता सामान्य लोगों की तुलना में 50 प्रतिशत से भी कम है।

400 लोगों पर किया गया सर्वे
यह सर्वे मई-जून 2023 में 11 गांवों के 400 से अधिक लोगों पर किया गया था। इसमें पीक फ्लो मीटर का उपयोग करके फेफड़ों की क्षमता को मापा गया। इसमें परिणाम चिंताजनक थे: पुरुषों के फेफड़ों की क्षमता औसत भारतीय पुरुष की तुलना में 51 प्रतिशत कम पाई गई। यह स्थिति पिछले 12 वर्षों में और भी बिगड़ी है, क्योंकि 2011 में यह अंतर 43 प्रतिशत था।

महिलाओं की स्थिति में सुधार
महिलाओं की स्थिति में मामूली सुधार देखा गया है। 2011 में उनके फेफड़ों की क्षमता 48 प्रतिशत कम थी, जो 2023 में 46 प्रतिशत तक पहुंच गई। हालांकि, यह सुधार नगण्य है और समग्र स्थिति अभी भी गंभीर बनी हुई है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस समस्या का मुख्य कारण क्षेत्र में व्याप्त औद्योगिक प्रदूषण है।

तापीय परियोजनाओं से निकलने वाले धुएं, राख और कोयले की धूल में मौजूद हानिकारक कण हवा के माध्यम से फेफड़ों तक पहुंच रहे हैं। ये सूक्ष्म कण फेफड़ों को गंभीर नुकसान पहुंचा रहे हैं। इस प्रारंभिक रिपोर्ट के आधार पर, शोधकर्ताओं ने वास्तविक स्थिति का और अधिक विस्तृत अध्ययन करने के लिए स्पाइरोमेट्री और अन्य जाँचों की सिफारिश की है।

किस वर्ग पर कितना असर
सर्वे में यह भी पाया गया कि फेफड़ों की कार्यक्षमता में कमी का सबसे अधिक प्रभाव 30 से 75 वर्ष की आयु वर्ग के लोगों पर पड़ रहा है। 30 से 44 वर्ष के लोगों की फेफड़ों की कार्यक्षमता 49 प्रतिशत, 45-60 वर्ष के लोगों की 48 प्रतिशत, और 60 वर्ष से अधिक आयु के लोगों की 50 प्रतिशत से भी कम पाई गई।

इस गंभीर स्थिति के परिणामस्वरूप, क्षेत्र में टीबी, अस्थमा और अन्य श्वसन संबंधी बीमारियों के मामलों में वृद्धि देखी जा रही है। लगभग 2,500 टीबी के मरीज पहचाने गए हैं, जिनमें से अधिकांश औद्योगिक क्षेत्र वाले म्योरपुर और चोपन ब्लॉक में हैं। इसके अलावा, अस्थमा और लंग कैंसर के मामले भी बढ़ रहे हैं, हालांकि स्थानीय स्तर पर स्क्रीनिंग की कमी के कारण इनका सटीक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है।

विशेषज्ञों ने दिया सुझाव
विशेषज्ञों का सुझाव है कि फेफड़ों को सुरक्षित रखने के लिए प्रदूषित क्षेत्रों में मास्क का उपयोग करना चाहिए। हालांकि, यह भी ध्यान रखना आवश्यक है कि मास्क का उपयोग सीमित रखा जाए। इसके अतिरिक्त, प्रदूषण नियंत्रण के उपाय अपनाए जाने चाहिए और आसपास के क्षेत्रों में हरियाली बढ़ाई जानी चाहिए, जिससे हवा की गुणवत्ता में सुधार हो सके।

वनवासी सेवा आश्रम म्योरपुर के संचालक डॉ. शुभा प्रेम ने इस समस्या की गंभीरता पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि क्षेत्र के वातावरण में 2.5 पीपीएम से छोटे कणों की अधिकता है, जो फेफड़ों को नुकसान पहुंचा रही है। उन्होंने वातावरण को शुद्ध बनाने के लिए तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता पर जोर दिया।

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