उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले में एक नई क्रांति की शुरुआत हो रही है, जिसकी अगुवाई कर रही हैं महिला किसान हितेश चौधरी। गांव चक छावी की रहने वाली हितेश ने प्राकृतिक खेती के माध्यम से न केवल अपने जीवन...
बदलते यूपी की नायिकाएं : पढ़िए अमरोहा की हितेश चौधरी की सफलता की कहानी, सालाना कमाती है इतने रुपये
Jul 29, 2024 18:28
Jul 29, 2024 18:28
यात्रा की शुरूआत
हितेश की यात्रा 2002 में पतंजलि से जुड़ने के साथ शुरू हुई। लेकिन उनके जीवन में वास्तविक परिवर्तन 2018 में आया, जब उन्होंने प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के तहत किसानों को प्राकृतिक खेती का प्रशिक्षण देना शुरू किया। ग्रेजुएशन के बाद डबल एमए और योग में पीजी डिप्लोमा ने उन्हें इस क्षेत्र में एक विशेषज्ञ बना दिया।2020 में, हितेश ने एक कदम और आगे बढ़ाया। उन्होंने ओजस्विनी महिला स्वयं सहायता समूह की स्थापना की और गन्ने की खेती में प्राकृतिक तकनीकों का उपयोग करना शुरू किया। यह पहल इतनी सफल रही कि आज 200 से अधिक किसान पूरी तरह से प्राकृतिक खेती कर रहे हैं। हितेश का मानना है कि यह बदलाव न केवल किसानों के लिए लाभदायक है, बल्कि समाज के लिए भी महत्वपूर्ण है। वे कहती हैं, "आज हर चीज में मिलावट हो रही है, जिससे लोग बीमार हो रहे हैं। कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां बढ़ रही हैं। प्राकृतिक खेती इन समस्याओं का समाधान हो सकती है।"
लेमनग्रास के उत्पाद
हितेश की सबसे बड़ी उपलब्धि 16 अप्रैल 2021 को आई, जब उन्होंने एक किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) की स्थापना की। आज इस संगठन से 517 किसान जुड़े हैं, जिनमें लगभग 200 महिला किसान भी शामिल हैं। यह संगठन, जिसका नाम प्रखण्ड बायो एनर्जी किसान प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड है, विभिन्न प्राकृतिक उत्पादों का निर्माण और विपणन करता है। इन उत्पादों में शामिल हैं विभिन्न प्रकार के अचार, जैसे आम, कटहल, करौंदा और नींबू के अचार। इसके अलावा, वे मिलेट्स से बने कई प्राकृतिक उत्पाद भी तैयार करते हैं। इनमें मल्टीग्रेन आटा, हल्दी, रागी का आटा, ज्वार और बाजरा के आटे से बने नमकीन और बिस्कुट शामिल हैं। हितेश बताती हैं कि इन उत्पादों की मांग न केवल उत्तर प्रदेश में, बल्कि अन्य राज्यों से भी आती है। लेकिन हितेश यहीं नहीं रुकीं। उन्होंने अपने उत्पाद की श्रृंखला को और विस्तारित किया है। अब वे लेमनग्रास से बनी चाय, फिनाइल और सैनिटाइजर भी बना रही हैं। यह न केवल उनके व्यवसाय को विविधता प्रदान करता है, बल्कि स्थानीय संसाधनों का अधिकतम उपयोग भी सुनिश्चित करता है।
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सफलता का कारण उनका टीम वर्क है
हितेश की सफलता का एक बड़ा कारण उनका टीम वर्क है। वे 12 महिलाओं के साथ मिलकर उत्पादों के निर्माण से लेकर पैकेजिंग और मार्केटिंग तक का सारा काम खुद संभालती हैं। यह न केवल उत्पादों की गुणवत्ता सुनिश्चित करता है, बल्कि स्थानीय महिलाओं को रोजगार भी प्रदान करता है। आर्थिक दृष्टि से भी हितेश की यह पहल बहुत सफल रही है। उनके एफपीओ का वार्षिक कारोबार 10 लाख रुपये है, जबकि ओजस्विनी महिला स्वयं सहायता समूह का टर्नओवर 5 लाख रुपये है। यह न केवल हितेश के लिए, बल्कि उनसे जुड़े सभी किसानों के लिए एक बड़ी उपलब्धि है।
प्रशिक्षण और आत्मविश्वास
हितेश का मानना है कि प्राकृतिक खेती ने उनके जीवन और आजीविका में सकारात्मक बदलाव लाया है। वे कहती हैं, "हमारा खर्च कम हो गया है क्योंकि हमें बाजार से कुछ भी नहीं खरीदना पड़ता। हम 'देसी' गाय के मूत्र और गोबर का उपयोग करके खेत में ही सभी इनपुट बनाते हैं।" इसके अलावा, वे गाय के गोबर से वर्मी कम्पोस्ट खाद भी तैयार करती हैं, जो न केवल पर्यावरण के अनुकूल है बल्कि फसलों के लिए भी बेहद लाभदायक है।
सफलता में प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना की भी भूमिका रही
हितेश की इस सफलता में प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इस योजना के तहत मिले प्रशिक्षण और एक्सपोजर विजिट ने उन्हें न केवल ज्ञान दिया, बल्कि आत्मविश्वास भी बढ़ाया। यह उनके व्यक्तिगत विकास का एक महत्वपूर्ण पहलू रहा है।
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