आजम खान का ड्रीम प्रोजेक्ट थी जौहर यूनिवर्सिटी : लेकिन क्या थी वह एक गलती, जिससे यह बन गई शत्रु संपत्ति?

लेकिन क्या थी वह एक गलती, जिससे यह बन गई शत्रु संपत्ति?
UPT | आजम खान का ड्रीम प्रोजेक्ट थी जौहर यूनिवर्सिटी

Jul 26, 2024 17:44

समाजवादी पार्टी के दिग्गज नेता आजम खान के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट जौहर यूनिवर्सिटी पर गंभीर संकट मंडरा रहा है। गृह मंत्रालय के शत्रु संपत्ति विभाग ने गुरुवार को यूनिवर्सिटी की 13.08 हेक्टेयर जमीन को चिन्हित कर उस पर कब्जा लेने की कार्रवाई शुरू कर दी है।

Jul 26, 2024 17:44

Short Highlights
  • मुलायम सरकार में रखी गई थी नींव
  • उद्घाटन में पहुंची थी पूरी कैबिनेट
  • शत्रु संपत्ति का उजागर हुआ मामला
Rampur News : समाजवादी पार्टी के दिग्गज नेता आजम खान के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट जौहर यूनिवर्सिटी पर गंभीर संकट मंडरा रहा है। गृह मंत्रालय के शत्रु संपत्ति विभाग ने गुरुवार को यूनिवर्सिटी की 13.08 हेक्टेयर जमीन को चिन्हित कर उस पर कब्जा लेने की कार्रवाई शुरू कर दी है। यह कार्रवाई शुक्रवार को भी जारी रहेगी। लेकिन इस मामले के बाद सवाल उठने लगे हैं कि आखिर शत्रु संपत्ति क्या होती है और जौहर यूनिवर्सिटी इस फेर में कैसे फंसी।

मुलायम सरकार में रखी गई थी नींव
विवाद की जड़ में यह आरोप है कि आजम खान ने यूनिवर्सिटी के निर्माण के दौरान कस्टोडियन की संपत्ति को अवैध रूप से शामिल कर लिया। यह जमीन सींगनखेड़ा गांव में स्थित है और पाकिस्तान में रहने वाले ताहिर हुसैन की है, जिसे सरकारी दस्तावेजों में शत्रु संपत्ति के रूप में दर्ज किया गया है। इस मामले में अजीमनगर थाने में एक मुकदमा भी दर्ज किया गया था। जौहर यूनिवर्सिटी का इतिहास समाजवादी पार्टी के शासनकाल से जुड़ा हुआ है। मौलाना मोहम्मद अली जौहर ट्रस्ट का पंजीकरण 1995 में कराया गया था। इसके तहत मोहम्मद अली जौहर यूनिवर्सिटी की नींव मुलायम सिंह यादव की सरकार में 18 सितंबर, 2005 को रखी गई थी। उस समय मुलायम सिंह यादव अपनी पूरी कैबिनेट के साथ रामपुर आए थे और उनका ऐतिहासिक स्वागत किया गया था।

उद्घाटन में पहुंची थी पूरी कैबिनेट
समाजवादी पार्टी के शासनकाल में यूनिवर्सिटी का निर्माण तेजी से हुआ। हालांकि, बसपा सरकार के दौरान निर्माण कार्य धीमा पड़ गया। फिर 2012 में जब समाजवादी पार्टी की सरकार बनी, तो 18 सितंबर को तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपनी पूरी कैबिनेट के साथ यूनिवर्सिटी का उद्घाटन किया। इसके बाद यूनिवर्सिटी का और विस्तार किया गया। 1500 बीघा जमीन पर फैली इस यूनिवर्सिटी में कई विशाल भवन हैं। यहां 25 पाठ्यक्रमों की पढ़ाई होती है, जिनमें बीए, बीएससी, बीटेक, बीफार्मा, एमबीए, एलएलबी जैसे कोर्स शामिल हैं। 2015 में यूनिवर्सिटी के भवनों की कीमत दो हजार करोड़ रुपये आंकी गई थी, हालांकि बाद में यह घटकर 147.20 करोड़ रुपये रह गई।

भाजपा सरकार में बढ़ने लगी मुश्किल
भाजपा सरकार के आने के बाद यूनिवर्सिटी कानूनी जटिलताओं में फंस गई। आजम खान पर कई मुकदमे दर्ज हैं, जिनमें से अधिकांश इसी यूनिवर्सिटी से संबंधित हैं। 26 मुकदमे तो किसानों ने जमीन कब्जाने के आरोप में दर्ज कराए हैं। कुल मिलाकर, आजम खान और उनके परिवार पर 192 मुकदमे दर्ज हैं। खुद आजम पर 84 मुकदमे हैं, जिनमें से तीन में उन्हें सजा भी हो चुकी है। वह सवा दो साल जेल में भी रह चुके हैं। उनकी पत्नी तजीन फात्मा पर 34, बेटे अब्दुल्ला आजम पर 43, और बड़े बेटे अदीब आजम पर 31 मुकदमे दर्ज हैं।

शत्रु संपत्ति का उजागर हुआ मामला
आरोप है कि आजम खान ने यूनिवर्सिटी के निर्माण के दौरान कस्टोडियन की संपत्ति को अवैध रूप से शामिल कर लिया। यह जमीन सींगनखेड़ा गांव में स्थित है और पाकिस्तान में रहने वाले ताहिर हुसैन की है, जिसे सरकारी दस्तावेजों में शत्रु संपत्ति के रूप में दर्ज किया गया है। यूनिवर्सिटी के निर्माण में श्रम कानूनों के उल्लंघन का भी मामला सामने आया था। 2015 में श्रम विभाग ने लेबर सेस जमा न करने पर यूनिवर्सिटी को नोटिस जारी किया था। बाद में यूनिवर्सिटी की इमारतें कुर्क कर ली गईं थीं। यह मामला हाईकोर्ट तक पहुंचा, जहां यूनिवर्सिटी ने सेस की रकम जमा कर दी। रामपुर के विधायक आकाश सक्सेना, जो जौहर यूनिवर्सिटी में घोटाले की शिकायत करने वालों में से एक हैं, का कहना है कि जांच में सच्चाई सामने आएगी। उनका आरोप है कि विभिन्न स्रोतों से धन लेकर यूनिवर्सिटी का निर्माण कराया गया है और इस प्रक्रिया में रामपुर की गरीब जनता का शोषण भी किया गया है।

क्या होती है कस्टोडियन या शत्रु संपत्ति?
शत्रु संपत्ति एक ऐसी संपत्ति है जो 1947 के देश विभाजन या बाद के युद्धों के दौरान शत्रु देशों में चले गए लोगों की थी। इसके प्रबंधन के लिए भारत सरकार ने गृह मंत्रालय के अधीन एक विशेष विभाग स्थापित किया है, जिसे कस्टोडियन ऑफ एनेमी प्रॉपर्टी कहा जाता है। स्थानीय स्तर पर, जिला मजिस्ट्रेट (डीएम) इन संपत्तियों के अभिरक्षक होते हैं। यह मुद्दा अक्सर विवादों का केंद्र रहा है, क्योंकि इसमें कानूनी, राजनीतिक और सामाजिक पहलू शामिल हैं। सरकार समय-समय पर इन संपत्तियों की समीक्षा करती है और उनके उचित उपयोग या निपटान के लिए कदम उठाती है, लेकिन यह प्रक्रिया अक्सर जटिल और लंबी होती है।

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