सुल्तानपुर से भाजपा की उम्मीदवार मेनका गांधी चुनाव हार गई हैं। उन्हें सपा के रामभुआल निषाद ने शिकस्त दी है। पूर्व महिला एवं बाल विकास मंत्री ने 2019 में अपने बेटे वरुण गांधी के साथ सीटों की अदला-बदली करके यह सीट जीती थी।
Lok Sabha Chunav Result 2024 : कांग्रेस की छवि सुधारने के लिए बनी थीं पत्रकार, मेनका गांधी को इसलिए छोड़ना पड़ा था पीएम हाउस
Jun 04, 2024 19:24
Jun 04, 2024 19:24
17 साल की उम्र में मिला था मॉडलिंग में पहला मौका
उनका जन्म 26 अगस्त 1956 को मेनका आनंद के रूप में नई दिल्ली में अमरदीप कौर आनंद और लेफ्टिनेंट कर्नल तरलोचन सिंह आनंद के घर हुआ था। उनके माता-पिता सिख धर्म का पालन करते थे। उन्होंने लॉरेंस स्कूल, सनावर से अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की और दिल्ली के लेडी श्री राम कॉलेज से उच्च शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से जर्मन भाषा का भी अध्ययन किया। अपने कॉलेज के दिनों में, उन्होंने कई सौंदर्य प्रतियोगिताएं जीतीं। मेनका को मॉडलिंग में पहला मौका 17 साल की उम्र में मिला और उन्होंने सबसे पहले बॉम्बे डाइंग में काम किया।
संजय गांधी से पहली मुलाकात कॉकटेल पार्टी में हुई थी
मेनका की पहली मुलाकात तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी से 14 दिसंबर 1973 को उनके चाचा मेजर जनरल कपूर द्वारा आयोजित कॉकटेल पार्टी में हुई थी। शादी से पहले संजय गांधी को हर्निया का ऑपरेशन करवाना पड़ा था। सुबह कॉलेज जाने के बाद मेनका दोपहर और शाम अपने मंगेतर के साथ एम्स के प्राइवेट वार्ड में बिताती थीं। एक साल बाद,उन्होंने शादी कर ली। गांधी परिवार की छोटी बहू मेनका गांधी और संजय गांधी के उम्र में 10 साल का अंतर था। 1980 में जब संजय गांधी की विमान दुर्घटना में मृत्यु हो गई, तब मेनका केवल 23 वर्ष की थीं और वरुण मात्र 100 दिन के थे।
सूर्या पत्रिका के जरिए जनता के बीच कांग्रेस की छवि बनाई
मेनका सूर्या पत्रिका की संस्थापक संपादक थीं, जिसने जनता के बीच कांग्रेस की छवि को फिर से बनाने में मदद की। इस पत्रिका में संजय गांधी और इंदिरा गांधी के नियमित साक्षात्कार छपते थे। लेकिन संजय गांधी की मौत के बाद इंदिरा गांधी और मेनका गांधी के बीच रिश्ते खराब हो गए। लेखक खुशवंत सिंह के मुताबिक, जब संजय गांधी जिंदा थे, तब भी इंदिरा गांधी मेनका गांधी की जगह सोनिया गांधी को तरजीह देती थीं। इंदिरा और मेनका के बीच मतभेद सार्वजनिक रूप से तब सामने आया जब 1983 में मेनका को प्रधानमंत्री आवास छोड़ने के लिए कहा गया।
अमेठी से राजीव गांधी के खिलाफ लड़ा था चुनाव
जब यह पता चला कि सफदरजंग रोड नंबर 1 में मेनका के दिन अब गिने-चुने रह गए हैं, तो उन्होंने आजमगढ़ के राजनेता अकबर अहमद के साथ मिलकर संजय विचार मंच की शुरुआत की। उस साल पार्टी ने आंध्र प्रदेश में चार सीटें जीतीं। बाद में उन्होंने पार्टी का जनता दल में विलय कर दिया। उन्होंने 1984 में अमेठी से राजीव गांधी के खिलाफ एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में अपना पहला लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन असफल रहीं। 1988 में वह वीपी सिंह की जनता दल पार्टी में शामिल हो गईं और महासचिव बनीं। 1989 में वह पीलीभीत से लोकसभा के लिए जनता दल के टिकट पर चुनी गईं, एक सीट जिसका उन्होंने छह बार प्रतिनिधित्व किया।
2004 में भाजपा में शामिल हुईं, वाजपेयी सरकार में बनीं मंत्री
मेनका गांधी 2004 में औपचारिक रूप से भाजपा में शामिल हुईं। उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री के रूप में कार्य किया। इसके बाद 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा ने चुनावों में जीत हासिल की तो मेनका ने महिला और बाल विकास मंत्री के रूप में शपथ ली। उन्होंने 2019 में सुल्तानपुर सीट से लोकसभा चुनाव जीता, लेकिन उन्हें कोई मंत्रालय नहीं दिया गया। मेनका गांधी एक कुशल लेखिका, स्तंभकार और पशु अधिकार कार्यकर्ता भी हैं। उन्होंने व्युत्पत्ति विज्ञान (Etymology), कानून और पशु कल्याण के क्षेत्रों में कई किताबें लिखी हैं।
चार सरकारों में केंद्रीय मंत्री रहीं
राजनीतिज्ञ, पशु अधिकार कार्यकर्ता और पर्यावरणविद मेनका गांधी यूपी के सुल्तानपुर निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा की सदस्य हैं। उनकी शादी पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और फिरोज गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी से हुई थी, जिनकी 1980 में विमान दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। संजय की मृत्यु के कुछ साल बाद मेनका सक्रिय राजनीति में उतरीं। अपने दशकों लंबे राजनीतिक करियर में, उन्होंने चार सरकारों में केंद्रीय मंत्री के रूप में काम किया है।
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