चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने का एलान किया गया है। उन्होंने महात्मा गांधी के नमक सत्याग्रह में सक्रिय भागीदारी की थी। किसानों के हितों की रक्षा के लिए उन्होंने अपना जीवन लगा दिया।
Bharat Ratna Chaudhary Charan Singh : महात्मा गांधी से बेहद प्रभावित थे चौधरी चरण सिंह, जाना पड़ा था जेल
Feb 09, 2024 16:59
Feb 09, 2024 16:59
- चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने का एलान
- ताऊ ने उठाया था चरण सिंह की शिक्षा का खर्च
- महात्मा गांधी से बेहद प्रभावित थे चरण सिंह
ताऊ लखपत सिंह ने उठाया पढ़ाई का खर्च
चरण सिंह ने प्रारंभिक शिक्षा भूपगढ़ी से दो किलोमीटर दूर जानी खुर्द गांव में ग्रहण की। वह प्रतिदिन पैदल स्कूल जाते थे। चरण सिंह का अगला पड़ाव मेरठ शहर का मॉरल ट्रेनिंग स्कूल था,जहां वह एक साल पढ़े और इसके बाद 1914 में मेरठ के गवर्नमेंट कॉलेज में दाखिल जो गए। नौवीं कक्षा में उन्होंने विज्ञान विषय चुना। साथ में अंग्रेजी, अर्थशास्त्र और इतिहास विषय थे। चरण सिंह ने 1919 में हाईस्कूल और 1921 में इण्टरमीडिएट की परीक्षा पास की। इसके आगे उन्हें पढ़ाना उनके पिता मीर सिंह के बूते की बात नहीं थी। ताऊ लखपत सिंह का अध्ययनशील और होनहार चरण सिंह पर विशेष स्नेह था। उन्हें पता चला कि उनके प्रिय भतीजे की पढ़ाई उसके पिता की आर्थिक तंगी के चलते बाधित हो सकती है। लिहाजा, उन्होंने वादा किया कि चरण सिंह की पढ़ाई पूरी करने तक उनकी शिक्षा का खर्च वह उठायेंगे।
पहली बार छह महीनों के लिए जेल यात्रा की
उन्होंने महात्मा गांधी के नमक सत्याग्रह में सक्रिय भागीदारी की और 5 अप्रैल 1930 को 6 माह के लिए पहली बार जेल गए। अगले साल मेरठ डिस्ट्रिक्ट बोर्ड में निर्विरोध चुने गए। बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि चौधरी चरण सिंह बतौर जनप्रतिनिधि सबसे पहले जिला परिषद के उपाध्यक्ष चुने गए थे। जहाँ 1935 तक कनिष्ठ उपाध्यक्ष और फिर अध्यक्ष रहे। यहीं से गांधी जी की सोच और आदर्शों ने उन्हें और अधिक आकर्षित किया और वह पूर्णतः उनके प्रभाव में आ गये। अहिंसक क्रांति, सामाजिक बदलाव, हरिजनों का उत्थान, सत्याग्रह, बलिदान, आत्म संयम, सादगी एवं खादी, 'सत्य ही धर्म है' के नारे को उन्होंने अपने जीवन में उतार लिया। उनके लिए दयानंद का सामाजिक परिवर्तन और कबीर का आकारहीन आकर्षण, दोनों गांधी की राजनीतिक क्रांति में सिमट गए।
वकालत, आर्य समाज और कांग्रेस साथ-साथ
चौधरी चरण सिंह ने पेशेवर, सामाजिक और राजनीतिक जीवन की एकसाथ शुरुआत की। तत्कालीन मेरठ जिले के गाजियाबाद शहर में उन्होंने दीवानी के मुकदमों से वकालत शुरू की। साथ ही साइमन कमीशन का विरोध उनका पहला राजनितिक कदम था। वह 27 वर्ष की उम्र में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य बन गए। गाज़ियाबाद शहर कांग्रेस कमेटी की स्थापना की। जिसमें 1939 तक कई पदों पर रहे। समांतर रूप से 1939 तक गाज़ियाबाद आर्य समाज समिति के अध्यक्ष और महासचिव रहे।
कैसे चरण सिंह और छपरौली एक-दूसरे के पर्याय बने
वर्ष 1937 चौधरी चरण सिंह के राजनीतिक जीवन में बड़ा बदलाव लेकर आया। कांग्रेस इण्डिया एक्ट के तहत देश में 1921 से लगातार हो रहे प्रांतीय और स्थानीय चुनावों का बहिष्कार कर रही थी। लेकिन 1937 के चुनाव में भाग लेने का ऐलान कर दिया। यूनाइटेड प्रोविंस असेम्बली के लिए कांग्रेस ने चरण सिंह को मेरठ जिले की दक्षिण-पश्चिम सीट से टिकट दे दिया। इस निर्वाचन क्षेत्र में तहसील बाग़पत और गाज़ियाबाद शामिल थीं। उन्होंने कुल मतों के 78 प्रतिशत से ज्यादा हासिल करके नेशनल पार्टी के प्रत्याशी को हरा दिया। इसी सीट का नाम आगे चलकर छपरौली हो गया। उन्होंने इस विधानसभा क्षेत्र का लगातार आठ बार 1937, 1946, 1952, 1957, 1962, 1967, 1969 और 1974 में प्रतिनिधत्व किया। आपको यहां एक जानकारी और दे दें कि चौधरी चरण सिंह के बाद उनकी और उनकी विचारधारा से बने दलों का कोई उम्मीदवार आज तक छपरौली से पराजित नहीं हुआ है। चाहे देश में कोई भी राजनीतिक लहर क्यों न आई हो।
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