महिला दिवस विशेष : पहले पति का साथ छूटा और फिर परिवार ने छुड़ाया हाथ, फिर भी राजनीति में “नायक” बन उभरीं मेनका

पहले पति का साथ छूटा और फिर परिवार ने छुड़ाया हाथ, फिर भी राजनीति में “नायक” बन उभरीं मेनका
UPT | मेनका गांधी

Mar 08, 2024 11:27

सुल्तानपुर से भारतीय जनता पार्टी की सांसद मेनका गांधी किसी खास पहचान की मोहताज नहीं है, लेकिन उनका अबतक का सफर काफी रोचक रहा है। इसके साथ ही सबसे...

Mar 08, 2024 11:27

महिला दिवस विशेष : सुल्तानपुर से भारतीय जनता पार्टी की सांसद मेनका गांधी किसी खास पहचान की मोहताज नहीं है, लेकिन उनका अबतक का सफर काफी रोचक रहा है। इसके साथ ही सबसे खास बात ये है कि उन्होंने बीते 2 दशक से कोई चुनाव नहीं हारा है। भारत की प्रथम महिला प्रधान मंत्री इन्दिरा गांधी की बहू और उनके छोटे पुत्र दिवंगत संजय गांधी की पत्नी हैं। आपको बता दें कि विवादों व लाइमलाइट में सदा दूर रहने वाली मेनका गांधी का ज्यादातर ध्यान समाजसेवा और पशुओं की देखभाल करने में निकलता है। उनका पशुप्रेम जग जाहिर है। वहीं बता दें कि मेनका गांधी को बीजेपी के सीनियर नेताओं में से एक माना जाता है। पति के निधन के बाद उनके अपनी सास इंदिरा गांधी से बहुत मधुर संबंध नहीं रहे इसलिए वह कांग्रेस से अलग हो गईं थी।

सिख परिवार में जन्मी मेनका
मेनका गांधी का जन्म 26 अगस्त 1965 में नई दिल्ली के एक सिख परिवार में हुआ था। उनकी शिक्षा लारेंस स्कूल, सनवर तथा तदोपरान्त लेडी श्रीराम कालेज, नई दिल्ली में हुई। मेनका की पढ़ाई के दौरान ही एक कॉकटेल पार्टी में संजय गांधी से मुलाकात हुई और फिर दोनों ने शादी करने का फैसला किया। इसके साथ ही मेनका, संजय के साथ चुनाव कैंपेनिंग में जाया करती थीं और उनकी खूब मदद करती थीं। उस दौर में संजय गांधी बहुत प्रभावशाली थे और उनका अपनी मां और पूर्व पीएम इंदिरा गांधी के फैसलों में सीधा दखल रहता था। इसी बीच मेनका ने सूर्या नाम से एक मैगजीन की शुरुआत की थी। जिसमे 1977 के चुनावों में कांग्रेस की हार के बाद इसके प्रमोशन का जिम्मा उठाया था।

पति की मृत्यु के बाद राजनीति मे उतरी मेनका
उन्होने तत्कालीन प्रधान मंत्री इन्दिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी के साथ विवाह किया। एक आकस्मिक दुर्घटना में संजय गांधी का देहान्त हो गया था। जिसके बाद मेनका गांधी ने 1982 में राजनीति में प्रवेश किया और युवा सशक्तिकरण पर केंद्रित एक राजनीतिक दल की स्थापना की। वहीं बता दें कि उन्होंने अपना पहला चुनाव अमेठी संसदीय सीट से अपने ज्येठ राजीव गांधी के खिलाफ निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में लड़ा और करारी हार का सामना करना पड़ा।

इंदिरा के मार्गदर्शन से शुरू हुआ मेनका का राजनीतिक सफर
बता दें कि मेनका गांधी की राजनीतिक यात्रा उनकी सास इंदिरा गांधी के मार्गदर्शन में शुरू हुई। वे 1984 में उत्तर प्रदेश के पीलीभीत निर्वाचन क्षेत्र से भारतीय संसद के लिए चुनी गई थीं। राजनीति में उनका प्रवेश काफी हद तक सामाजिक कल्याण के प्रति उनकी प्रतिबद्धता और पर्यावरण और पशु अधिकारों के मुद्दों के प्रति उनके जुनून से निर्देशित था। मेनका गांधी के राजनीतिक जीवन को कई महत्वपूर्ण उपलब्धियों से चिह्नित किया गया है, जिसमें पर्यावरण और पशु अधिकार सक्रियता में उनके काम के साथ-साथ भारत सरकार में केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्री के रूप में उनका कार्यकाल भी शामिल है। उन्होंने व्युत्पत्ति के क्षेत्रों में कई पुस्तकें भी लिखी हैं।

सियासी सफर में मिली कामयाबी
मेनका गांधी 1988 में जनता दल में शामिल हो गयी और उन्होंने दूसरा चुनाव 1989 में पीलीभीत संसदीय सीट से लड़कर जनता दल के प्रत्याशी के रूप जीत दर्ज की लेकिन उन्हें 1991 के संसदीय चुनावों में हार का सामना करना पड़ा। 1996 में फिर पीलीभीत संसदीय सीट से जनता दल के प्रत्याशी के रूप कामयाब हुई। 1998, 1999 में भारतीय जनता पार्टी के समर्थन से वे निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में पीलीभीत संसदीय सीट से कामयाब होकर संसद पहुंचने में सफल रही। 2004 में वे भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गयीं और 2004 पीलीभीत से तो 2009 में आंवला से 2014 में फिर पीलीभीत से तो 2019 में सुल्तानपुर संसदीय सीट से भाजपा प्रत्याशी के रूप में संसद पहुंचने में कामयाब हुई।

मेनका ने क्यों छोड़ा था गांधी परिवार
अब बात आती है कि आखिर गांधी परिवार की एक बहू भारतीय जनता पार्टी की नेता बनकर कैसे काम कर रही है? आखिर क्या है इसके पीछे की वजह… जो पारिवारिक विरासत को छोड़कर मेनका गांधी को भाजपा का साथ लेना पड़ा। दरअसल गांधी परिवार में तनाव की कहानी 1980 से शुरू हुई थी जब इंदिरा गांधी फिर से प्रधानमंत्री बनी थी। उस समय ये परिवार सफदरजंग रोड स्थित प्रधानमंत्री आवास में शिफ्ट हुआ, लेकिन दिसंबर 1980 में संजय गांधी की विमान हादसे में मौत के बाद सबकुछ बदल गया। उस समय मेनका की उम्र लगभग 25 साल होंगी। संजय की विरासत राजीव के हाथों में जा रही थी। जिसे लेकर इंदिरा और मेनका छोटी-छोटी बातों पर लड़ने लगे थे। खुशवंत सिंह ने अपनी आत्‍मकथा में लिखा है कि 'अनबन इतनी बढ़ गई कि दोनों का एक छत के नीचे साथ रहना मुश्किल हो गया। 1982 में मेनका ने प्रधानमंत्री आवास छोड़ दिया।

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