जब रंग खेलते बच्चों ने किया था राक्षसी का वध : होलिका-प्रह्लाद की कहानी से अलग, ऐसे मनाई गई थी पहली बार होली

होलिका-प्रह्लाद की कहानी से अलग, ऐसे मनाई गई थी पहली बार होली
UPT | जब रंग खेलते बच्चों ने किया था राक्षसी का वध

Mar 25, 2024 07:00

होली का त्योहार पूरे देश में हर्षोल्लास से मनाया जाता है। लेकिन क्या आपको पता है कि इसकी शुरुआत कब और कैसे हुई। अगर नहीं, तो आज हम आपको इसी बारे में बताने जा रहे हैं।

Mar 25, 2024 07:00

Short Highlights
  • बच्चों ने किया था राक्षसी का वध
  • रंग उड़ाकर मनाया था उत्सव
  • प्रह्लाद और होलिका की कहानी सबसे प्रचलित
New Delhi : पूरा देश 25 मार्च को होली का त्योहार मना रहा है। होली हमारे देश का वह त्योहार है, जिसे मनाने के लिए विदेशों से भी बड़ी संख्या में सैलानी भारत आते हैं। मथुरा, पुष्कर, जयपुर समेत कई जगहों की होली काफी प्रसिद्ध है। लेकिन क्या आपको मालूम है कि आखिर होली की शुरुआत हुई कैसे? अगर नहीं, तो आज हम आपको इसी बारे में बताने जा रहे हैं।

शिव ने दिया था राक्षसी को वरदान
इस कहानी का जिक्र भविष्य पुराण में मिलता है। इसके मुताबिक जब युधिष्ठिर श्रीकृष्ण से पूछते हैं कि होली के उत्सव की शुरुआत किस वजह से हुई, तो इसका जवाब कृष्ण ने दिया। इसके मुताबिक, ढोंढा राक्षसी ने भगवान शिव को कठोर तपस्या से प्रसन्न कर लिया। इसके बाद उसने वरदान मांगा कि मुझे कोई देवता या इंसान मार न सके, मैं किसी अस्त्र-शस्त्र से न मरूं। मेरी मृत्यु ठंड, गर्मी और वर्षा ऋतु में न हो। इसके बाद शिव ने राक्षसी को मनचाहा वरदान तो दे दिया, लेकिन उससे कहा कि तुम्हें खेलते हुए और उत्सव मनाते हुए बच्चों से सावधान रहना होगा। इनकी वजह से तुम्हारी मृत्यु होगी।

वरदान के बाद उत्पात मचाने लगी राक्षसी
शिव से वरदान मिलने के बाद राक्षसी काफी ताकतवर हो गई। देवी-देवता तक उसे नहीं मार सकते थे। शिव की चेतावनी के कारण वह बच्चों को देखते ही खा जाती थी। राजा रघु को जब इस बात की जानकारी हुई, तो उन्होंने अपने पुरोहित से इसका उपाय पूछा। पुरोहित ने बताया कि राक्षसी शिव के वरदान के बाद भले ही ताकतवर हो गई है, लेकिन उसे उत्सव मना रहे बच्चों की मदद से मारा जा सकता है। फाल्गुन पूर्णिमा पर न गर्मी होती है, न ठंड और न ही वर्षा ऋतु होती है। इसी तिथि पर बच्चों की मदद से ढोंढा राक्षसी को मारेंगे।

रंग खेलते हुए बच्चों ने किया वध
राजा रघु ने पुरोहित के निर्देश पर फाल्गुन पूर्णिमा के दिन अपने राज्य के बच्चों को एकत्रित किया औऱ उन्हें खेलने के लिए रंग-गुलाल दिया। जब सभी बच्चे एक साथ आकर त्योहार मनाने लगे, तो राजा के सेवकों ने बच्चों को सूखी घास और लकड़ी दी। बच्चों ने घास और लकड़ी के ढेरो इकठ्ठा कर आग लगा दी। बच्चे आग के चारों ओर परिक्रमा करते हुए उत्सव मचाने लगे। जब राक्षसी वहां पहुंची, तो बच्चों की आवाज से उसकी ताकत खत्म हो गई और फिर सभी ने मिलकर उसे मार दिया। राक्षसी के मरने के बाद लोगों ने रंग और गुलाल उड़ाकर खुशियां मनाई। तभी से होली का त्योहार मनाया जाने लगा।

होलिका-प्रह्लाद की कहानी काफी प्रचलित
होली को लेकर सबसे प्रचलित कहानी होलिका और प्रह्लाद की है। राक्षसों के राजा हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रह्लाद का वध करने के लिए अपनी बहन होलिका को आग में बैठने का आदेश दिया। होलिका को वरदान था कि वह आग में नहीं जलेगी। जब वह प्रह्लाद को लेकर आग में बैठी, तब भगवान विष्णु की कृपा से होलिका जल गई और प्रह्लाद सुरक्षित बच गए। बाद में विष्णु ने नरसिंह अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का वध कर दिया।

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