कोहरे का कहर पूरे उत्तर भारत पर बरपा है। रेलवे भी इससे अछूता नहीं है। हर रोज कई ट्रेनें कोहरे की वजह से या तो रद्द हो रही हैं या फिर कई घंटों की देरी से चल रही हैं। लेकिन अब तक इसका उपाय ढूंढा नहीं जा सका है।
ठंड के आगे लाचार रेलवे : कोहरे ने थामी ट्रेनों की रफ्तार, अब तक कोई समाधान क्यों न ढूंढ पाई सरकार?
Jan 17, 2024 18:57
Jan 17, 2024 18:57
- कोहरे की वजह से लेट हो रही कई ट्रेनें
- फ़ॉग सेफ़्टी डिवाइस भी नहीं असरदार
- विकसित देश अपनाते हैं आधुनिक सिग्लनिंग सिस्टम
ठंड में रद्द क्यों होती है ट्रेनें?
आपने खबरों में अक्सर पढ़ा होगा कि कोहरे के कारण कई ट्रेनों को रद्द कर दिया गया। दरअसल कोहरे के असर के कारण रेलवे कम डिमांड वाली ट्रेनों को रद्द करके महत्वपूर्ण ट्रेनों को समय पर चलाने की कोशिश करता है। इसके अलावा कई बार ट्रेनों के फेरे कम कर दिए जाते हैं या फिर कुछ ट्रेनों को कम दूरी तक ही चलाने का फैसला किया जाता है।
कोहरे के आगे क्यों थम जाती है ट्रेनों की रफ्तार?
आमतौर पर लोग सोचते हैं कि जब ट्रेनों को पटरी पर ही चलना होता है, तो कोहरे से क्या ही फर्क पड़ना चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं होता है। वास्तव में ट्रेनों को पटरी के किनारे मौजूद सिग्नल के मुताबिक चलना होता है। कोहरे में विजिबिलिटी कम होने के कारण लोको पायलट इस सिग्नलों को नहीं देख पाते। ऐसे में अगर ट्रेन की स्पीड ज्याादा हुई तो पायलट सिग्नल के करीब पहुंचकर ही उसे देख पाएगा, जिससे ब्रेक देर से लगेगी और दुर्घटना होने का खतरा बना रहेगा। इस कारण कोहरे में ट्रेनों की अधिकतम रफ्तार को बिल्कुल कम कर दिया जाता है।
फ़ॉग सेफ़्टी डिवाइस कितना कारगर?
भारतीय रेलवे ने पिछले कुछ सालों से कोहरे में ट्रेनों की रफ्तार बनाए रखने के लिए फ़ॉग सेफ़्टी डिवाइस का इस्तेमाल शुरू किया है। यह डिवाइस लोको पायलट को बताती है कि कितने दूर पर सिग्नल स्थित है। उस आधार पर पायलट ट्रेन की गति निर्धारित कर सकता है। जानकारी के मुताबिक, इस साल रेलवे में लगभग 20 हजार फ़ॉग सेफ़्टी डिवाइस का इस्तेमाल हो रहा है। लेकिन बावजूद इसके, ट्रेनें कई घंटों की देरी से चल रही हैं।
सीएबी सिग्नलिंग सिस्टम से निकलेगा समाधान?
रेलवे के पूर्व अधिकारी ने एक समाचार एजेंसी से बातचीत में बताया कि कोहरे में सीएबी सिग्नलिंग सिस्टम एक अच्छा विकल्प हो सकता है। इसमें लोको पायलट को ट्रैक के किनारे लगे सिग्नल नहीं देखने होते हैं, बल्कि यह मशीन ही लोको पायलट को रूट के सिग्नल और ट्रैक की जानकारी दे देती है। हालांकि इसकी भी अपनी एक सीमा है। दरअसल रेलवे के रूटों पर केवल सिग्नल देखना ही एकमात्र कार्य नहीं है। बल्कि कई जगहों पर पटरी के किनारे लिखित रूप भी गति सीमा की सूचना दी जाती है। इसका पीछे के कारण ट्रैक मेंटेनेंस, पटरी के आस-पास निर्माण कार्य चलना, जमीन का किसी कारण से कमजोर होना आदि होते हैं। एक उदाहरण के तौर पर, रेलवे फाटक के पहले कई बार सी। फा। लिखा होता है, जिसका मतलब है कि आगे सीटी फाटक है इसलिए लोको पायलट को ट्रेन की सीटी बजानी है। यही वजह है कि सीएबी सिग्नलिंग सिस्टम भी कारगर साबित नहीं होते।
दुनिया भर में कैसे दौड़ती हैं कोहरे में ट्रेनें?
कोहरे की समस्या केवल अकेले भारत की नहीं है। लेकिन विकसित देशों में इससे निपटने के लिए अत्याधुनिक सिग्लनिंग सिस्टम मौजूद है। इसमें एक मशीन ट्रैक पर लगे सिग्नल के पास मौजूद होती है, जबकि दूसरी इंजन में। यह मशीन जीपीएस के जरिए सिग्नल की रियल टाइम जानकारी देती है। इसे एक तरह का ट्रेन प्रोटेक्शन वॉर्निंग सिस्टम कह सकते हैं। इसमें मशीन ही यह जानकारी दे देती है कि आगे का सिग्नल लाल, हरा है या पीला।
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