MONDAY UPT SPECIAL : वेस्ट यूपी तय करेगा 2024 में लोकसभा की दशा-दिशा, जानिए क्यों यहीं से बनेगी नई सरकार के पक्ष में हवा

वेस्ट यूपी तय करेगा 2024 में लोकसभा की दशा-दिशा, जानिए क्यों यहीं से बनेगी नई सरकार के पक्ष में हवा
UPT | Lok Sabha election

Mar 04, 2024 10:24

पश्चिम यूपी की राजनीति समुदायों और जातियों के समीकरणों की पगडंडियों पर टिकी हुई है। किसी पार्टी को अगर प्रदेश में या देश में सरकार बनानी है तो सभी को पश्चिम यूपी की पगडंडी का संतुलन और उसे मजबूत रखने की कवायद लगातार करनी पड़ती है। पश्चिम यूपी की राजनीतिक तासीर...

Mar 04, 2024 10:24

Short Highlights
  • दिल्ली के मुहाने पर बसा पश्चिम यूपी देश की राजनीति में निभाता रहा है अहम भूमिका
  • किसान आंदोलन हो या कवाल कांड सभी की आंच में ध्वस्त होते रहे दलों के आंकड़े
  •  इस बार भाजपा और रालोद का गठबंधन खिलाएगा कुछ अलग गुल, सपा और कांग्रेस भी कमतर नहीं
Meerut (केपी त्रिपाठी) :  दिल्ली के मुहाने पर बसा पश्चिम यूपी। पश्चिम यूपी के राजनीतिक तासीर पूरे देश पर असर करती है। पिछले लोकसभा चुनावों की बात करें तो 2009 से लेकर 2019 तक पश्चिम यूपी के मतदाताओं ने भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने में अहम भूमिका निभाई है। यहीं कारण रहा है कि चुनाव चाहे लोकसभा हो या विधानसभा का भाजपा, कांग्रेस, सपा और बसपा ने अपने चुनावी प्रचार का श्रीगणेश पश्चिम यूपी की धरती से ही किया। 

समुदाय और जातियों के समीकरण की पग​डंडियों पर टिका पश्चिम की राजनीति 
पश्चिम यूपी की राजनीति समुदायों और जातियों के समीकरणों की पगडंडियों पर टिकी हुई है। किसी पार्टी को अगर प्रदेश में या देश में सरकार बनानी है तो सभी को पश्चिम यूपी की पगडंडी का संतुलन और उसे मजबूत रखने की कवायद लगातार करनी पड़ती है। पश्चिम यूपी की राजनीतिक तासीर का हाल कुछ ऐसा ही है। यहां से निकली आवाज दिल्ली तक गूंजती है। जिसका असर पूरे देश पर की राजनीति पर पड़ता है। यहीं कारण है कि 1990 में जब जनता दल की सरकार बनी तो पश्चिम यूपी का इसमें बड़ा योगदान रहा था। 1989 में हुए आम चुनाव में जनता दल को देश भर में 144 सीटें मिले थी। जिसमें पश्चिम यूपी की 10 सीट गठबंधन के खाते में गई थी। जिसने वीपी सिंह की सरकार बनाने में बड़ी अहम भूमिका निभाई थी। आम चुनाव में पश्चिमी यूपी की दिशा तय करते हैं जाट और किसान। इस इलाके में कहा जाता है, जिसके जाट, उसके ठाठ। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के खेतों की मिट्टी जितनी उपजाऊ है, जाटों और किसानों के वोटो भी उतनी ही अहमियत भारतीय राजनीति में वैसी ही नजर आती है। यूं तो पूरे यूपी में जाट समुदाय की आबादी 4 से 6 प्रतिशत के बीच है लेकिन पश्चिमी यूपी के कुल वोटों में इनकी हिस्सेदारी 17 फीसदी तक है।  

71 में 20 से ज्यादा सीटों पर जाटों का प्रभाव
जाट न सिर्फ पश्चिमी यूपी की 71 में से 20 से अधिक सीटों पर असर रखते हैं बल्कि दर्जनों ऐसी सीट हैं। जहां की राजनीतिक दशा और दिशा तय करते हैं। पश्चिम यूपी की 18 लोकसभा सीट भी ऐसी हैं, जहां जाट वोट बहुत मायने रखता है। इनमें मथुरा, मेरठ, बुलंदशहर, अलीगढ़, आगरा, मुजफ्फरनगर, मुरादाबाद, बिजनौर, सहारनपुर, बागपत, सहारनपुर, शामली, बरेली और बदायूं ऐसे जिले हैं, जहां जाटों का अच्छा खासा प्रभाव है। 

इसके अलावा सहारनपुर, कैराना, मुजफ्फरनगर, मेरठ, बागपत, शामली, बिजनौर, गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर, मुरादाबाद, संभल, अमरोहा, बुलंदशहर, हाथरस, अलीगढ़ और फिरोजाबाद जिले में जाट वोट बैंक चुनावी नतीजों पर पूरा प्रभाव रखते हैं। 
यही कारण है कि भाजप से लेकर सपा और कांग्रेस तक जाटों और किसानों को अपने पाले में करने के लिए हर तिकड़म लगाते हैं। जहां सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया है। वहीं देश के गृह मंत्री अमित शाह ने रालोद के जयंत चौधरी के साथ मिलकर गठबंधन की गांठ को मजबूत किया है। इसके अलावा लुटियंस दिल्ली में पिछले माह हुई पंचायत में जाटों के साथ मुलाकात कर गिले-शिकवे दूर करने की कोशिश भी केंद्रीय गृहमंत्री ने की। 

2022 के विस में भाजपा को हुआ नुकसान 
2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने पश्चिमी यूपी की 17 सीटों पर जाट प्रत्याशी खड़ा किया तो आरएलडी ने नौ जाट और सपा ने अपने खाते से तीन जाट प्रत्याशियों पर दांव चला। इसके अलावा बसपा ने 10 जाट उम्मीदवारों को टिकट दिया था। हालांकि कांग्रेस ने जाट पर अधिक बड़ा राजनीतिक दांव नहीं चला। फिलहाल भाजपा के तीन जाट सांसद हैं और विधानसभा में 14 विधायक जाट हैं। 2017 के चुनाव में सपा, कांग्रेस और बसपा से एक भी जाट विधानसभा नहीं पहुंच पाया था। जबकि रालोद से जीते विधायक ने भाजपा जॉइन कर ली थी। 

इस बार लोकसभा की दशा दिशा तय करेगी पश्चिम यूपी
इस बार भाजपा पश्चिम यूपी में जहां अपना दस साल पुरान प्रदर्शन दोहराने की तैयारी में है वहीं दूसरी ओर सपा और कांग्रेस गठबंधन पश्चिम में भाजपा और रालोद को घेरने की तैयारी में है। माना जा रहा है कि भाजपा के साथ रालोद के आने से पश्चिम में भाजपा की स्थिति मजबूत लग रही है। 2019 के लोकसभा चुनाव का श्रीगणेश पीएम नरेंद्र मोदी ने मेरठ में चुनावी रैली से किया था। इसी तरह से 2014 में भी पीएम मोदी ने अपनी पहली चुनावी रैली पश्चिम यूपी में करके भाजपा के प्रचार अभियान की शुरूआत की थी। जिससे पूरे देश में माहौल बनता चला गया। कुछ ऐसा ही करने के प्रयास में भाजपा इस बार भी है। 

चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने से किसान आंदोलन और जाटों की नाराजगी ठंडे बस्ते में 
केंद्र सरकार ने लोकसभा चुनाव से पहले चौधरी चरण सिंह केा भारत रत्न देकर किसान आंदोलन और जाटों की नाराजगी को कम करने का प्रयास किया। चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने की घोषणा से जाटों के मन में भाजपा के प्रति बदलाव आया है। माना जा रहा है कि ये बदलाव भाजपा के मतदाता के रूप में भी बदल सकता है। रालोद के भाजपा के साथ आने से पश्चिम यूपी के जाट और किसान अंदर ही अंदर काफी खुश हैं। यह कहना है जाट राजनीति से ताल्लुक रखने वाले एक जाट नेता का। 

रालोद और सपा का साथ नहीं आ रहा था रास
पश्चिम यूपी की राजनीति पर बारीक नजर रखने वाले प्रमोद पांडे कहते हैं कि रालोद और सपा का साथ पश्चिम यूपी के जाट मतदाता नहीं पचा पा रहे थे। पश्चिम यूपी के जाटों में कहीं ना कहीं आज भी कवाल कांड का घाव हैं जो कि भरा नहीं है। हालांकि 2022 में रालोद और सपा गठबंधन ने इसमें मरहम का काम जरूर किया। लेकिन उसके परिणाम भले ही रालोद के पक्ष में लाभदायक रहे हो लेकिन इससे जाट मतदाता कहीं ना कहीं अपने को उपेक्षित महसूस करता रहा। यहीं कारण है कि रालोद के चौधरी जयंत ने ऐन मौके पर पाला बदल लिया। 

कांग्रेस और सपा के पास ये है विकल्प 
2022 में सपा और रालोद मिलकर चुनाव लड़े। जिसका नुकसान भाजपा को उठाना पड़ा था। लेकिन अब 2024 के लोकसभा चुनाव में रालोद ने सपा का दामन छोड़ दिया और वो भाजपा के साथ है। जिससे सपा के पास कांग्रेस को साथ लेकर चलने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है। पश्चिम यूपी में जाट कभी सपा का परंपरागत वोट बैंक नहीं रहा। पश्चिम में सपा मुस्लिम वोटों के भरोसे ही जीत दर्ज करती रही है। हिंदू और मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण सपा के लिए मुफीद रहा है। लेकिन मुजफ्फरनगर कवाल कांड के बाद से सपा के पश्चिम कैंडर वोटर मुस्लिम भी बसपा और कांग्रेस के खाते में चले गए हैं। 

दिलचस्प मुकाबले में पहले चरण का मतदान तय करेगा देश की दशा दिशा
बता दें लोकसभा चुनाव हो या फिर विधानसभा चुनाव। पश्चिम यूपी से ही चुनाव की शुरूआत होती है। पश्चिम यूपी में हुआ मतदान हीं यूपी और देश में राजनैतिक दलों की दिशा और दशा दोनों तय करता है। 2009, 2014 और 2019 का लोकसभा चुनाव इसका उदाहरण है। जिसने भाजपा के पक्ष में माहौल बनाया और पूरे देश में बनता चलता गया।  
 

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