ये सब कवायद सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने की है। उनके निर्देशों पर न्याय की देवी में बदलाव कर दिया गया है। ऐसी ही स्टैच्यू सुप्रीम कोर्ट में जजों की लाइब्रेरी में लगाई गई है। हालांकि, फिलहाल यह साफ नहीं है कि ऐसी और मूर्तियां लगाई जाएंगी या नहीं।
तो अब कानून 'अंधा' नहीं : न्याय की देवी का नया स्वरूप, मूर्ति में आंखों से पट्टी हटी, हाथ में तलवार की जगह संविधान
Oct 16, 2024 21:12
Oct 16, 2024 21:12
- CJI चंद्रचूड़ की कवायद पर न्याय की देवी की आंखों से हटी पट्टी
- सुप्रीम कोर्ट में जजों की लाइब्रेरी में लगाई गई यह मूर्ति
CJI चंद्रचूड़ की कवायद पर न्याय की देवी की आंखों से हटी पट्टी
जानकारी के मुताबिक ये सब कवायद सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने की है। उनके निर्देशों पर न्याय की देवी में बदलाव कर दिया गया है। ऐसी ही स्टैच्यू सुप्रीम कोर्ट में जजों की लाइब्रेरी में लगाई गई है। हालांकि, फिलहाल यह साफ नहीं है कि ऐसी और मूर्तियां लगाई जाएंगी या नहीं। जो पहले न्याय की देवी की मूर्ति होती थी, उसमें उनकी दोनों आंखों पर पट्टी बंधी होती थी। साथ ही एक हाथ में तराजू जबकि दूसरे में सजा देने की प्रतीक तलवार होती थी। इसे औपनिवेशिक विरासत को पीछे छोड़ने की कोशिश के तौर पर भी देखा जा रहा है। ठीक वैसे ही जैसे भारतीय दंड संहिता जैसे औपनिवेशिक कानूनों की जगह भारतीय न्याय संहिता लाकर किया गया है।
नई मूर्ति साफ संदेश दे रही है कि न्याय अंधा नहीं है
सांकेतिक रूप से देखा जाए तो कुछ महीने पहले लगी न्याय की देवी की नई मूर्ति साफ संदेश दे रही है कि न्याय अंधा नहीं है, वह संविधान के आधार पर काम करता है। सूत्रों के मुताबिक जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ का मानना है कि भारत को ब्रिटिश विरासत से आगे बढ़ना चाहिए और कानून कभी अंधा नहीं होता, यह सभी को समान रूप से देखता है। इसलिए, चीफ जस्टिस ने कहा कि लेडी जस्टिस का स्वरूप बदला जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि प्रतिमा के एक हाथ में संविधान होना चाहिए, तलवार नहीं। ताकि देश को संदेश जाए कि वह संविधान के हिसाब से न्याय करती है. तलवार हिंसा का प्रतीक है, लेकिन अदालतें संवैधानिक कानूनों के हिसाब से न्याय करती हैं।
न्याय की देवी की मूर्ति को नए सिरे से बनवाया
सूत्रों के मुताबिक, सीजेआई चंद्रचूड़ के निर्देशों पर न्याय की देवी की मूर्ति को नए सिरे से बनवाया गया। सबसे पहले एक बड़ी मूर्ति जजेज लाइब्रेरी में स्थापित की गई है। यहां न्याय की देवी की आंखें खुली हैं और कोई पट्टी नहीं है, जबकि बाएं हाथ में तलवार की जगह संविधान है। दाएं हाथ में पहले की तरह तराजू ही है।
भारत में कहां से आई न्याय की देवी की मूर्ति
न्याय की देवी की वास्तव में यूनान की प्राचीन देवी हैं, जिन्हें न्याय का प्रतीक कहा जाता है। इनका नाम जस्टीशिया है। इनके नाम से जस्टिस शब्द बना था। इनकी आंखों पर जो पट्टी बंधी रहती है, उसका भी गहरा मतलब है। आंखों पर पट्टी बंधे होने का मतलब है कि न्याय की देवी हमेशा निष्पक्ष होकर न्याय करेंगी। किसी को देखकर न्याय करना एक पक्ष में जा सकता है। इसलिए इन्होंने आंखों पर पट्टी बांधी थी।
ये मूर्ति अंग्रेज अफसर भारत लेकर आया था
यूनान से ये मूर्ति ब्रिटिश पहुंची। 17वीं शताब्दी में पहली बार इसे एक अंग्रेज अफसर भारत लेकर आए थे। ये अंग्रेज अफसर एक न्यायालय अधिकारी थे। ब्रिटिश काल में 18वीं शताब्दी के दौरान न्याय की देवी की मूर्ति का सार्वजनिक इस्तेमाल किया गया। बाद में जब देश आजाद हुआ, तो हमने भी न्याय की देवी को स्वीकार किया।
रोमन माइथोलॉजी की न्याय की देवी जस्टीशिया हैं 'लेडी ऑफ जस्टिस'
लेडी ऑफ जस्टिस रोमन माइथोलॉजी की न्याय की देवी 'जस्टीशिया' हैं। रोम के सम्राट ऑगस्टस न्याय को प्रमुख गुणों में से एक मानते थे। उनके बाद सम्राट टिबेरियस ने रोम में जस्टीशिया का एक मंदिर बनवाया था। जस्टीशिया न्याय के उस गुण का प्रतीक बन गई, जिसके साथ हर सम्राट अपने शासन को जोड़ना चाहता था। सम्राट वेस्पासियन ने उनकी छवि के साथ सिक्के बनाए, जहां वह एक सिंहासन पर बैठी थीं जिसे 'जस्टीशिया ऑगस्टा' कहा जाता था। उनके बाद कई सम्राटों ने खुद को न्याय का संरक्षक घोषित करने के लिए इस देवी की छवि का उपयोग किया। दुनिया के कई देशों में न्याय की देवी की यह मूर्ति कोर्ट्स, कानूनी ऑफिस और शैक्षिक संस्थानों में देखी जा सकती है।
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