इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में स्पष्ट किया कि नवरात्र के त्योहार के कारण किसी दूसरे समुदाय को उसके धार्मिक आयोजन से वंचित नहीं किया जा सकता। अदालत ने बरेली के सिटी मजिस्ट्रेट...
इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला : नवरात्र के दौरान भी मना सकते हैं उर्स, कहा- दूसरे धर्म को आयोजन को रोका नहीं जा सकता
Oct 08, 2024 01:03
Oct 08, 2024 01:03
धार्मिक आयोजन का अधिकार
न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति विपिन चंद्र दीक्षित की खंडपीठ ने इस मामले में आदेश जारी करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता ने कॉलेज परिसर के 20 एकड़ की सीमा में ही उर्स मनाने का आश्वासन दिया है और यह भी स्पष्ट किया है कि किसी प्रकार का सार्वजनिक जुलूस नहीं निकाला जाएगा। कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी को त्योहार मनाने की अनुमति देना या न देना प्रशासन का अधिकार है। इसलिए प्रकरण सिटी मजिस्ट्रेट के पास भेजा जा रहा है ताकि वह याचिकाकर्ता का पक्ष सुनकर आवश्यक लिखित आश्वासन लेकर एक तर्कसंगत आदेश पारित कर सकें।
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घटना का पृष्ठभूमि और प्रशासन की भूमिका
मामले के विवरण के अनुसार बरेली में सूफी संत हजरत शाह मोहम्मद सकलैन मियां का पिछले वर्ष 20 अक्टूबर को निधन हुआ था। सूफी परंपरा के अनुसार उनके अनुयायियों द्वारा पहला उर्स इस वर्ष 8 और 9 अक्टूबर को मनाया जाना है। हालांकि सिटी मजिस्ट्रेट ने इस आयोजन के लिए अनुमति देने से मना कर दिया और तर्क दिया कि नवरात्र के दौरान ऐसा आयोजन करने से शहर में असंतोष फैल सकता है। उनका कहना था कि उर्स के दौरान जुलूस के रूप में "चादर" निकालने की प्रथा शुरू हो सकती है। जिसमें तेज संगीत के साथ भीड़ जुटने की संभावना है। यह शहर के विभिन्न दुर्गा पूजा पंडालों के बीच बाधा पैदा कर सकता है।
प्रशासन के निर्णय का आधार
प्रशासन के अनुसार पिछले महीने आला हजरत दरगाह और शराफत मियां दरगाह के अनुयायियों के बीच जुलूस मार्ग को लेकर विवाद हुआ था। जिससे धार्मिक टकराव की स्थिति पैदा हो गई थी। इसे ध्यान में रखते हुए प्रशासन ने किसी भी धार्मिक आयोजन के लिए अनुमति देने से इंकार किया था। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि सिटी मजिस्ट्रेट ने आवेदन को एक नई धार्मिक परंपरा की शुरुआत के रूप में गलत समझ लिया। कोर्ट ने कहा कि सिर्फ नवरात्र के कारण सूफियों को उर्स मनाने से वंचित करना उनके धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन है। याचिकाकर्ता की ओर से यह भरोसा भी दिया गया कि वे "चादर" के जुलूस को सार्वजनिक सड़कों पर नहीं निकालेंगे, जिससे अन्य धार्मिक आयोजनों में कोई व्यवधान उत्पन्न न हो।
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