इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला : गर्भधारण का अधिकार महिला के पास, 15 वर्षीय पीड़िता को मिली राहत

गर्भधारण का अधिकार महिला के पास, 15 वर्षीय पीड़िता को मिली राहत
UPT | Allahabad High Court

Jul 26, 2024 13:17

न्यायमूर्ति शेखर बी. सर्राफ और न्यायमूर्ति मंजीव शुक्ला की खंडपीठ ने एक 15 वर्षीय बलात्कार पीड़िता के मामले में यह निर्णय दिया कि गर्भ जारी रखने या गर्भपात कराने का निर्णय...

Jul 26, 2024 13:17

Short Highlights
  • उच्च न्यायालय ने महिलाओं के प्रजनन अधिकारों को मजबूत किया है
  • गर्भ जारी रखने या गर्भपात कराने का निर्णय केवल महिला का है
Prayagraj News : इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसले में महिलाओं के प्रजनन अधिकारों को मजबूत किया है। दरअसल, न्यायमूर्ति शेखर बी. सर्राफ और न्यायमूर्ति मंजीव शुक्ला की खंडपीठ ने एक 15 वर्षीय बलात्कार पीड़िता के मामले में यह निर्णय दिया कि गर्भ जारी रखने या गर्भपात कराने का निर्णय केवल महिला का है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस तरह के संवेदनशील मामलों में महिला की इच्छा सर्वोपरि है और किसी अन्य व्यक्ति या संस्था को उसके निर्णय में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है।

जानें पूरा मामला
मामले के तथ्यों के अनुसार, 15 वर्षीय पीड़िता अपने रिश्तेदार के घर रह रही थी जब कथित तौर पर उसका अपहरण किया गया। बाद में, जब वह वापस लौटी, तो उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां पता चला कि वह 29 सप्ताह की गर्भवती थी। पीड़िता के मामा ने 25 जून 2024 को दुष्कर्म और पॉक्सो एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कराया। पीड़िता और उसके परिजनों ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर गर्भावस्था को चिकित्सकीय रूप से समाप्त करने की प्रार्थना की थी।

गर्भ जारी रखने की अनुमति
कोर्ट ने पीड़िता और उसकी मां से व्यक्तिगत रूप से बातचीत की। उन्हें गर्भपात से जुड़े जोखिमों के बारे में बताया गया। चिकित्सा अधिकारियों की रिपोर्ट में कहा गया था कि इस स्तर पर गर्भपात से लड़की के जीवन को खतरा हो सकता है। विचार-विमर्श के बाद, पीड़िता और उसके परिजन गर्भ जारी रखने के लिए सहमत हो गए। कोर्ट ने उनके निर्णय का सम्मान करते हुए 32 सप्ताह के गर्भ को जारी रखने की अनुमति दी।

मेरठ में होगी बच्चे की डिलीवरी
न्यायालय ने बच्चे की डिलीवरी लाला लाजपत राय मेमोरियल मेडिकल कॉलेज, मेरठ में कराने का आदेश दिया। साथ ही, राज्य सरकार को सभी चिकित्सा और सहायक खर्च वहन करने का निर्देश दिया गया। कोर्ट ने पीड़िता और उसके परिवार की गोपनीयता बनाए रखने पर भी जोर दिया। न्यायालय ने यह भी सुनिश्चित किया कि यदि बच्चे को गोद दिया जाता है, तो यह प्रक्रिया कानूनी रूप से सही तरीके से की जाए और बच्चे के सर्वोत्तम हित का ध्यान रखा जाए।

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