उच्च न्यायालय ने गौ हत्या के एक मामले में आरोपी को अग्रिम जमानत दी। कोर्ट ने कहा कि तर्कहीन और अंधाधुंध गिरफ्तारियां मानवाधिकारों का उल्लंघन हैं। अदालतों ने बार-बार कहा है कि पुलिस के लिए गिरफ्तारी अंतिम...
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने लगाई फटकार : गौ हत्या मामले में आरोपी को राहत, कहा- पुलिस के लिए गिरफ्तारी अंतिम विकल्प होना चाहिए
Jun 20, 2024 17:19
Jun 20, 2024 17:19
- गौ हत्या के एक मामले में आरोपी को अग्रिम जमानत दी गई है
- पुलिस के लिए गिरफ्तारी अंतिम विकल्प होना चाहिए
- मनमाने ढंग से की जाने वाली गिरफ्तारियां संविधान के अनुच्छेद 21 में प्राप्त मौलिक अधिकार का हनन हैं
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, यह मामला वाराणसी का है, जहां लंका थाना में तबिश राजा पर गोवध अधिनियम और पशु क्रूरता निवारण अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया है। आरोपी ने कोर्ट में अग्रिम जमानत के लिए हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। आरोपित मोहम्मद ताबिश राजा के अधिवक्ता ने कहा कि गौ हत्या अधिनियम और पशु क्रूरता अधिनियम के मामले में उसे फंसाया गया है। वहीं, अपर शासकीय अधिवक्ता ने अग्रिम जमानत की प्रार्थना का विरोध किया। अग्रिम जमानत की प्रार्थना का विरोध इसलिए किया गया, क्योंकि आरोपित के खिलाफ लगाए गए आरोप गंभीर थे। ऐसे में ये कहते हुए याचिका का विरोध किया गया कि सिर्फ काल्पनिक भय के आधार पर अग्रिम जमानत नहीं दी जा सकती।
मौलिक अधिकार का हनन
जस्टिस सिद्धार्थ की सिंगल बेंच ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि एफआईआर दर्ज होने के बाद पुलिस अपनी इच्छानुसार आरोपी को गिरफ्तार कर सकती है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि भले ही आवेदक के खिलाफ मामला दर्ज है लेकिन यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है कि पुलिस उसे कब गिरफ्तार कर सकती है। कोर्ट ने कहा कि मुकदमा दर्ज होते ही मनमाने ढंग से की जाने वाली गिरफ्तारियां संविधान के अनुच्छेद 21 में प्राप्त मौलिक अधिकार का हनन है।
इस केस का दिया हवाला
जस्टिस सिद्धार्थ ने 1994 के जोगिंदर कुमार बनाम उत्तर प्रदेश के राज्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय पुलिस आयोग की तीसरी रिपोर्ट का जिक्र किया गया है। इसमें ये कहा गया था कि भारत में पुलिस की ओर से की गई गिरफ्तारियां भ्रष्टाचार का मुख्य स्रोत हैं। रिपोर्ट में ये भी कहा गया था कि पुलिस के द्वारा की जाने वाली लगभग 60 प्रतिशत गिरफ्तारियां या तो गैर-जरूरी या अनुचित होती हैं। अदालत ने कहा कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता बहुत ही कीमती मौलिक अधिकार है। जब अनिवार्य हो तभी उसे कम किया जाना चाहिए। निजी स्वतंत्रता एक बहुमूल्य मौलिक अधिकार है और बहुत ही अपरिहार्य होने पर ही इसमें कटौती होनी चाहिए।
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