महाकुंभ 2025 : प्रयागराज पहुंचे शरीर पर 45 किलो रुद्राक्ष धारण करने वाले गीतानंद गिरी महाराज, जानें उनके जीवन के खास पहलू

प्रयागराज पहुंचे शरीर पर 45 किलो रुद्राक्ष धारण करने वाले गीतानंद गिरी महाराज, जानें उनके जीवन के खास पहलू
UPT | गीतानंद गिरी महाराज

Jan 03, 2025 16:18

महाकुंभ 2025 की तैयारियों के साथ प्रयागराज का संगम तट संतों और साधुओं से भरने लगा है। देशभर से संत-समुदाय का आगमन जारी है, जो श्रद्धालुओं के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र बन रहे हैं।

Jan 03, 2025 16:18

Prayagraj News : महाकुंभ 2025 की तैयारियों के साथ प्रयागराज का संगम तट संतों और साधुओं से भरने लगा है। देशभर से संत-समुदाय का आगमन जारी है, जो श्रद्धालुओं के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र बन रहे हैं। इन्हीं संतों में से एक हैं गीतानंद गिरी महाराज, जो अपने अद्वितीय संकल्प और जीवनशैली के लिए श्रद्धालुओं के बीच चर्चा का विषय बने हुए हैं। गीतानंद गिरी महाराज ने अब तक सवा दो लाख से अधिक रुद्राक्ष धारण कर रखे हैं, जिनका वजन 45 किलोग्राम से ज्यादा है।

2019 में लिया था अद्वितीय संकल्प
हरियाणा स्थित आवाहन अखाड़ा के सचिव गीतानंद गिरी महाराज ने बताया कि उन्होंने 2019 में प्रयागराज में हुए कुंभ मेले के दौरान एक अनूठा संकल्प लिया था। यह संकल्प 12 वर्षों तक प्रतिदिन सवा लाख रुद्राक्ष धारण करने का था। संकल्प का पालन करते हुए उन्होंने अभी तक सवा दो लाख से ज्यादा रुद्राक्ष धारण किए हैं। उनका कहना है कि संकल्प को पूरा करने के लिए अभी छह साल और बाकी हैं, और इस दौरान रुद्राक्ष की संख्या और बढ़ेगी।



12 घंटे धारण करते हैं रुद्राक्ष
गीतानंद महाराज रुद्राक्ष को पूरे दिन नहीं, बल्कि 12 घंटे के लिए धारण करते हैं। वे इसे सुबह 5 बजे पहनते हैं और शाम 5 बजे उतार देते हैं। इस अवधि में वे हल्का भोजन ग्रहण करते हैं और तपस्या में लीन रहते हैं। रुद्राक्ष धारण करने के दौरान उनकी साधना और अनुशासन श्रद्धालुओं को प्रभावित करती है।

संन्यास का सफर और निजी जीवन
अपने संन्यासी जीवन के बारे में गीतानंद महाराज ने बताया कि वे एक ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनके पिता रेलवे में टीटी थे। माता-पिता को संतान न होने पर गुरुजी के आशीर्वाद से उनकी प्राप्ति हुई। इसके बाद उनके माता-पिता ने उन्हें गुरुजी को समर्पित कर दिया। पंजाब में गुरुजी के सान्निध्य में रहकर उन्होंने संन्यास का मार्ग अपनाया। संस्कृत माध्यम से हाईस्कूल तक शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे पूरी तरह से गुरुसेवा और साधना में समर्पित हो गए।

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