बड़ा सवाल : महाकुंभ के बाद कहां गायब हो जाते हैं नागा साधु, महानिर्वाणी अखाड़े के महंत रवींद्र पुरी ने बताई सच्चाई

महाकुंभ के बाद कहां गायब हो जाते हैं नागा साधु, महानिर्वाणी अखाड़े के महंत रवींद्र पुरी ने बताई सच्चाई
UPT | Symbolic Photo

Jan 18, 2025 17:19

एक सवाल जो अक्सर लोगों के मन में आता है कि कुंभ में दिखने वाले हजारों नागा संन्यासी कुंभ के बाद कहां चले जाते हैं? इस पर महानिर्वाणी अखाड़े के महंत रवींद्र पुरी ने बड़ा खुलासा किया है।

Jan 18, 2025 17:19

Prayagraj News : प्रयागराज महाकुंभ मेला 13 जनवरी 2025 से शुरू हो चुका है और हर दिन लाखों श्रद्धालु मां गंगा में डुबकी लगा रहे हैं। इस बार मेले में दो सबसे बड़े नागा अखाड़े- महापरिनिर्वाणी अखाड़ा और पंचदशनाम जूना अखाड़ा हिस्सा ले रहे हैं। लेकिन एक सवाल जो अक्सर लोगों के मन में आता है कि कुंभ में दिखने वाले हजारों नागा संन्यासी कुंभ के बाद कहां चले जाते हैं? इस पर महानिर्वाणी अखाड़े के महंत रवींद्र पुरी ने बड़ा खुलासा किया है।

महंत रवींद्र पुरी ने बताई सच्चाई
महानिर्वाणी अखाड़े के महंत रवींद्र पुरी ने बताया कि नागा साधु विशेष रूप से अपनी साधना और धार्मिक कर्तव्यों में मग्न रहते हैं। ये साधु समाज में जाते समय लोक मर्यादाओं का पालन करते हुए उपवस्त्र पहनते हैं, लेकिन साधना के समय वे नग्न (दिगंबर) रहते हैं। इन साधुओं का प्रमुख उद्देश्य ध्यान और तपस्या के द्वारा समाज और देश का कल्याण करना होता है। वे मंदिरों, मठों और आश्रमों का प्रबंधन भी करते हैं।

महाकुंभ के बाद कहां जाते है नागा साधु 
महाकुंभ के बाद नागा साधु अपने-अपने आखाड़ों में लौट जाते हैं, जो भारत के विभिन्न हिस्सों में स्थित होते हैं। यहां वे साधना, ध्यान और धार्मिक शिक्षाओं का अभ्यास करते हैं। कुछ साधु प्रमुख तीर्थ स्थलों जैसे काशी, हरिद्वार, ऋषिकेश, उज्जैन और प्रयागराज में रहते हैं। नागा साधुओं को दीक्षा प्राप्त करने के लिए प्रयागराज, नासिक, हरिद्वार और उज्जैन के कुंभ मेले में भाग लेना होता है। हर स्थान पर दीक्षा लेने वाले साधुओं का नामकरण अलग-अलग होता है। जैसे प्रयागराज में दीक्षा लेने वाले नागा साधु को 'राजराजेश्वर' कहा जाता है, वहीं उज्जैन में दीक्षा लेने वाले को 'खुनी नागा' और हरिद्वार में 'बर्फानी नागा' कहा जाता है।

कैसे बनते हैं नागा साधु
नागा साधु बनने की प्रक्रिया बेहद कठिन होती है। इसके लिए व्यक्ति को अखाड़ा समिति द्वारा चयनित किया जाता है और इसके बाद उसे कई कठिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है। इस प्रक्रिया में आमतौर पर छह महीने से एक साल का समय लगता है। साधक को पंच देव शिव, विष्णु, शक्ति, सूर्य और गणेश से दीक्षा प्राप्त करनी होती है। इसके बाद उसे सांसारिक जीवन का त्याग करना पड़ता है और वह भिक्षा में प्राप्त भोजन ही ग्रहण करता है। यदि किसी दिन उसे भोजन नहीं मिलता, तो वह बिना खाए रह जाता है। नागा साधु शरीर पर कभी वस्त्र नहीं पहनते, बल्कि वे केवल भस्म लगाते हैं। वे समाज के सामने सिर नहीं झुकाते और जीवन में कभी भी किसी की निंदा नहीं करते। उनके लिए अहंकार और निंदा का कोई स्थान नहीं होता। इसके अलावा नागा साधु कभी भी वाहन का प्रयोग नहीं करते, क्योंकि उनका मानना होता है कि साधना और जीवन के उद्देश्य के प्रति पूर्ण समर्पण से ही मुक्ति प्राप्त की जा सकती है।

Also Read

गुलशन यादव की अवैध संपत्ति जब्त, थानेदारों को मिली चेतावनी

18 Jan 2025 10:50 PM

प्रतापगढ़ प्रतापगढ़ एसपी ने गुंडा माफिया पर की कड़ी कार्रवाई : गुलशन यादव की अवैध संपत्ति जब्त, थानेदारों को मिली चेतावनी

जिले के एसपी डॉ. अनिल कुमार ने गुंडा और माफिया तत्वों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करते हुए अवैध संपत्ति जब्तीकरण के लिए एक अहम फरमान जारी किया है... और पढ़ें