महाकुंभ 2025 से पहली बार अमृत स्नान की शुरुआत हो रही है। इसे अब तक शाही स्नान के नाम से जाना जाता था। मकर संक्रांति पर्व पर अखाड़ों का अमृत स्नान करीब साढ़े नौ घंटे तक चलेगा। शिविर से निकलने और वापस आने में कुल 12 घंटे से भी अधिक लगेंगे।
त्रिवेणी तट पर पहला अमृत स्नान : हाथी-घोड़े और रथ पर निकले संत, भस्म लगाए नागाओं की फौज, गृहस्थ-कल्पवासियों ने लगाए जयकारे
Jan 14, 2025 17:40
Jan 14, 2025 17:40
अमृत स्नान की पहली बार शुरुआत
महाकुंभ 2025 से पहली बार अमृत स्नान की शुरुआत हो रही है। इसे अब तक शाही स्नान के नाम से जाना जाता था। अखाड़ों के मंतव्य और धार्मिक विद्धानों की राय रही कि मुगलकाल से प्रचलन में आया शब्द हटे और इसे सनातनी परंपरा का प्रतीक और पहचान मिले। सबकी राय के बाद अब इसे अमृत स्नान के तौर पर स्थापित किया गया है। पहला अमृत स्नान पर्व मकर संक्रांति है। श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी और श्री शम्भू पंचायती अटल अखाड़ा के संतों ने सबसे पहले अमृत स्नान किया है। इसके बाद बारी-बारी से सभी अखाड़े मेलाक्षेत्र में उतर रहे हैं और फिर वापस अपनी छावनियों में लौट रहे हैं। मकर संक्रांति पर्व पर अखाड़ों का अमृत स्नान करीब साढ़े नौ घंटे तक चलेगा। शिविर से निकलने और वापस आने में कुल 12 घंटे से भी अधिक लगेंगे।
21 शृंगार कर निकले नागा संन्यासी
सोलह शृंगार आपने सुना होगा महिलाओं के संदर्भ में। इनके अलावा नागा संन्यासी पांच और शृंगार करते हैं। नख से शिख तक भभूत लपेटे, जटाजूट की वेणी, आंखों में सूरमा, हाथों में चिमटा, होठों पर सांब सदाशिव का नाम। हाथ में डमरू, त्रिशूल और कमंडल के साथ ही अवधूत की धुन में झूमते हुए नागा संन्यासियों की सेना को त्रिवेणी के तट पर देखना अद्भुत अनुभव है।
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गंगा, महादेव और श्रीराम का उद्घोष
धर्म अध्यात्म की इस नगरी की बात ही निराली है। दुनिया और देश के कोने-कोने से लाखों भक्त प्रयागराज आए हैं। बच्चों और सामान को कंधे-सिर पर उठाए श्रद्धालु बस और रेलवे स्टेशन से 10-12 किलोमीटर तक पैदल चलकर संगम तक पहुंच रहे हैं। चारों ओर आध्यात्मिकता का प्रकाश और धर्म की गूंज है। हर तरफ गंगा, महादेव और श्रीराम का उद्घोष गूंज रहा है। आस्था का समुद्र है जिसमें शामिल व्यक्ति खुद को एक कतरे की तरह महसूस कर सकता है। यह अहसास कर सकता है कि इतने बड़े विश्व में हमारी हस्ती क्या है, तो घमंड किस बात का। संगम पर एंट्री के सभी रास्तों पर हर वक्त भक्तों की भीड़ है। वाहनों की एंट्री पूरी तरह से बंद है। पुलिस,प्रशासन, स्वास्थ्य सेवाओं और मेले से जुड़े इंतजामों के चुनिंदा वाहनों को अनुमति है लेकिन उनके रास्ते अलग हैं।
सिर पर गठरी, बगल में झोला
नागवासुकी मंदिर और संगम क्षेत्र में तड़के से ही श्रद्धालुओं का तांता लग गया। बुजुर्ग, महिलाएं और युवा, सभी अपने सिर पर गठरी लादे आस्था से भरे हुए संगम की ओर बढ़ते दिखे। स्नान के लिए श्रद्धा ऐसी थी कि लोग रात से ही गंगा के पवित्र जल में डुबकी लगाना शुरू कर चुके थे। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, सुबह साढ़े आठ बजे से पहले ही एक करोड़ लोगों ने डुबकी लगाकर पुण्य कमाया।
शब्दों में बयां करना मुश्किल
एक ओर अखाड़े के साधु अपने विशिष्ट अंदाज में स्नान कर रहे हैं। दूसरी ओर हजारों श्रद्धालु गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम में पवित्र डुबकी लगाते नजर आ रहे हैं। संगम तट पर ऐसे अनगिनत दृश्य देखने को मिले, जहां पिता अपने पुत्र को कंधे पर बिठाकर स्नान करा रहे थे। वहीं, कुछ स्थानों पर वृद्ध पिता को उनका पुत्र स्नान कराने लाया था। चहल-पहल से गूंजते संगम तट पर हर व्यक्ति आस्था को आत्मसात करने में लीन दिखा। महाकुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि एक ऐसा अलौकिक अनुभव है, जो कण-कण में दिव्यता का आभास कराता है। यह उत्सव केवल आंखों से देखा ही नहीं, बल्कि दिल से महसूस किया जाता है। भारत की असंख्य विविधताओं के बीच अद्भुत एकता दिखाई दे रही है। देश के कोने-कोने से आए श्रद्धालु अपनी परंपराओं, भाषाओं और वेशभूषाओं के साथ एक ही उद्देश्य से संगम पर पहुंचे हैं और वो है पवित्र स्नान और आध्यात्मिक अनुभव।
भगवा और तिरंगे का संगम
संगम तट पर सनातन परंपरा का प्रतिनिधित्व करते भगवा ध्वज जहां धर्म और आस्था की गहराई को दर्शाते हैं, वहीं भारत की एकता और अखंडता का परिचायक तिरंगा भी शान से लहराता नजर आया। मकर संक्रांति पर मंगलवार को तिरंगे ने कई अखाड़ों की राजसी शोभायात्रा का हिस्सा बनकर गौरव का एक नया आयाम जोड़ा। महाकुंभ के अद्वितीय आयोजन में भगवा और तिरंगे का संगम भारतीय संस्कृति और एकता का प्रतीक बन गया।
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