संतों की सरकार भंग : प्रयागराज महाकुंभ में बड़ा ऐलान, अखाड़ों में पंचायती व्यवस्था लागू, आगे अब ये होगा...

प्रयागराज महाकुंभ में बड़ा ऐलान, अखाड़ों में पंचायती व्यवस्था लागू, आगे अब ये होगा...
UPT | kumbh katha

Jan 16, 2025 11:40

संन्यासी परंपरा के सात अखाड़ों में नागा संन्यासी और महामंडलेश्वर सहित हजारों सदस्य शामिल हैं। अखाड़ों के संचालन के लिए अष्टकौशल नामक एक व्यवस्था है, जिसमें आठ महंत और आठ उप महंत होते हैं।

Jan 16, 2025 11:40

Mahakumbh Nagar News : महाकुंभ शुरू होते ही अखाड़ों ने बड़ा ऐलान कर दिया है। संतों की सरकार भंग हो गई है और पंचायती सिस्टम लागू हो गया है, जो महाकुंभ पूरा होने तक जारी रहेगा। आइए आपको बताते हैं कि अखाड़ों की सरकार कैसे चलती है...

अष्टकौशल है अखाड़ों की सरकार
संन्यासी परंपरा के सात अखाड़ों में नागा संन्यासी और महामंडलेश्वर सहित हजारों सदस्य शामिल हैं। इन अखाड़ों के संचालन के लिए अष्टकौशल नामक एक व्यवस्था है, जिसमें आठ महंत और आठ उप महंत होते हैं। यह सोलह सदस्यीय समिति सचिव और अन्य पदाधिकारियों का चयन करती है। अष्टकौशल की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है। आठों महंत अखाड़ों के समस्त कार्यों का संचालन करते हैं और वित्तीय मामलों का पूरा हिसाब-किताब भी रखते हैं।

सरकार भंग होने पर कैसे चलेगा कामकाज
अखाड़ों में पंचायती व्यवस्था का विशेष महत्व है। यही कारण है कि कई अखाड़ों के नाम में 'पंचायती' शब्द जुड़ा हुआ है, जैसे पंचायती अखाड़ा, महानिर्वाणी अखाड़ा, श्रीशंभू पंचायती अटल अखाड़ा, तपोनिधि पंचायती श्रीनिरंजनी अखाड़ा, और पंचायती अखाड़ा आनंद। अब कुंभ समाप्ति यानी 26 फरवरी तक अखाड़े का कामकाज इसी रीति से चलेगा। इसके बाद अखाड़े अपनी नई सरकार का चुनाव करेंगे।

'चेहरा-मोहरा' से होंगे फैसले
महाकुंभ के दौरान व्यवस्था संभालने के लिए हर अखाड़े में 'चेहरा-मोहरा' की स्थापना की गई है, जो धर्म ध्वजा के पास स्थित है। कुंभ मेले की संपूर्ण व्यवस्था अब 'चेहरा-मोहरा' के माध्यम से संचालित की जाएगी। इसमें सभी महंत एकत्र होकर आवश्यक निर्णय लेते हैं। महाकुंभ के समापन से पूर्व नए अष्टकौशल का गठन किया जाएगा, जिनका कार्यकाल अगले छह वर्षों के लिए निर्धारित होगा। 

कार्यकारिणी भंग, अब सामूहिक राय जरूरी
जूना अखाड़े के महंत रमेश गिरि के अनुसार, छावनी में प्रवेश करते ही पुरानी कार्यकारिणी का कार्यकाल समाप्त कर हो गया है। निरंजनी अखाड़े के महंत शिव वन के अनुसार, अखाड़ों में सभी निर्णय पारदर्शी तरीके से और आम सहमति से लिए जाते हैं। किसी संन्यासी के विरुद्ध कार्रवाई की आवश्यकता होने पर वह भी पंचायत के माध्यम से ही की जाती है। 

कैसे-कैसे अखाड़े 
माना जाता है कि 8वीं सदी में आदि शंकराचार्य ने अखाड़ों की स्थापना की थी। पहले इसे साधुओं के जत्थे के रूप में जाना जाता था। माना जाता है कि अखाड़ा शब्द मुगलकाल से चलन में आया। अखाड़ा शब्द की उत्पत्ति अलख से मानी जाती है। इन अखाड़ों का उद्देश्य धर्म की रक्षा के साथ-साथ समाज में एकता और सहिष्णुता बनाए रखना था। महाकुंभ में कुल 13 अखाड़े शामिल होते हैं, जिनमें शैव, वैष्णव और उदासीन संप्रदाय के अखाड़े शामिल हैं। इसके अलावा नागनाथ अखाड़ा, किन्नर अखाड़ा और परी अखाड़ा जैसे नए अखाड़े भी हैं, हालांकि इनकी मान्यता को लेकर चर्चाएं होती रहती हैं।

मान्यता प्राप्त अखाड़ों को तीन प्रमुख संप्रदायों में बांटा गया है :

शैव संप्रदाय के अखाड़े:
श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी, श्री पंच अटल अखाड़ा, श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी, श्री तपोनिधि आनंद अखाड़ा, श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा, श्री पंचदशनाम आवाहन अखाड़ा, श्री पंचदशनाम पंच अग्नि अखाड़ा

वैष्णव संप्रदाय के अखाड़े: श्री दिगम्बर अणि अखाड़ा, श्री निर्वानी अनि अखाड़ा, श्री पंच निर्मोही अनि अखाड़ा

उदासीन संप्रदाय के अखाड़े: श्री पंचायती बड़ा उदासीन अखाड़ा, श्री पंचायती अखाड़ा नया उदासीन, श्री निर्मल पंचायती अखाड़ा

परंपराओं और मान्यताओं में थोड़ा अंतर
इन अखाड़ों की परंपराएं और मान्यताएं भी भिन्न-भिन्न होती हैं। जैसे अटल अखाड़े में केवल ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य जाति के साधु दीक्षा ले सकते हैं। अवाहन अखाड़े में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। निरंजनी अखाड़े को सबसे शिक्षित माना जाता है। यहां के संतों में कई विद्वान शामिल हैं। अग्नि अखाड़े में  केवल ब्रह्मचारी ब्राह्मण साधु दीक्षा ले सकते हैं। महानिर्वाणी अखाड़े को महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की पूजा का अधिकार प्राप्त है। निर्मल अखाड़े में धूम्रपान की सख्त मनाही है।

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