Prayagraj District
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इसलिए कहते हैं इसे प्रयागराज : धरती पर यहीं हुआ था सृष्टि का पहला यज्ञ     

धरती पर यहीं हुआ था सृष्टि का पहला यज्ञ     
UP Times | History of Prayagraj

Dec 20, 2023 16:47

प्रयागराज (इलाहाबाद) उत्तर प्रदेश के प्रमुख धार्मिक नगरों में से एक है। यह गंगा,यमुना तथा गुप्त सरस्वती नदियों के संगम पर स्थित है। संगम स्थल को त्रिवेणी कहा जाता है। प्रयाग (वर्तमान में प्रयागराज) में आर्यों की प्रारंभिक बस्तियां स्थापित हुई थी। प्रयागराज को ‘संगम नगरी’, ‘तंबूनगरी’, ‘कुम्भ नगरी’और ‘तीर्थराज’भी कहा गया है।

Dec 20, 2023 16:47

Short Highlights
  • वनवास के दौरान प्रयागराज में ही भगवान राम ने किया था पहला प्रवास
  • वेद तथा पुराणों में प्रयागराज का उल्लेख
Prayagraj News : प्रयागराज (इलाहाबाद) उत्तर प्रदेश के प्रमुख धार्मिक नगरों में से एक है। यह गंगा, यमुना तथा गुप्त सरस्वती नदियों के संगम पर स्थित है। संगम स्थल को त्रिवेणी कहा जाता है। प्रयाग (वर्तमान में प्रयागराज) में आर्यों की प्रारंभिक बस्तियां स्थापित हुई थी। प्रयागराज को ‘संगम नगरी’, ‘तंबूनगरी’, ‘कुम्भ नगरी’  और ‘तीर्थराज’ भी कहा गया है। ‘प्रयागशताध्यायी’ के अनुसार काशी, मथुरा, अयोध्या इत्यादि सप्तपुरियां तीर्थराज प्रयाग की पटरानियां हैं, जिनमें काशी को प्रधान पटरानी का दर्ज़ा प्राप्त है। प्रयागराज का वर्णन सिर्फ इतिहास में ही नहीं बल्कि वेदों, पुराणों और उपनिषदों में भी बड़ी महत्ता के साथ किया गया है। प्रयागराज सिर्फ नगर ही नहीं बल्कि पूरे भारत की आस्था का केन्द्र भी है। इस धरती पर महर्षि भारद्वाज की तपोस्थली और आश्रम भी स्थित है। यहीं पर भगवान श्री रामचन्द्र सीता और लक्ष्मण ने वन जाते हुए पहला प्रवास किया था।

प्रयागराज का इतिहास ऐतिहासिक दृष्टि से जनपद प्रयागराज का अतीत अत्यंत गौरवशाली और महिमामंडित रहा है। हिन्दू मुस्लिम सांप्रदायिक सदभाव, आध्यात्मिक, वैदिक, पौराणिक, शिक्षा, संस्कृति, संगीत, कला, सुन्दर भवन, धार्मिक, मंदिर, मस्जिद, ऐतिहासिक दुर्ग, गौरवशाली सांस्कृतिक कला की प्राचीन धरोहर को आदि काल से अब तक अपने आप में समेटे हुए प्रयागराज का विशेष इतिहास रहा है। भारतीय इतिहास में प्रयागराज ने युगों के परिवर्तन देखे हैं। बदलते हुए इतिहास के उत्थान-पतन को देखा है। प्रयागराज राष्ट्र की सामाजिक व सांस्कृतिक गरिमा का गवाह रहा है तो राजनीतिक एवं साहित्यिक गतिविधियों का केन्द्र भी रहा। परिवर्तन के शाश्वत नियम के अनेक झंझावातों के बावजूद प्रयागराज का अस्तित्व अक्षुण्ण (पूर्ण)रहा है।
 

प्रागैतिहासिक काल में प्रयागराज   


यदि प्रागैतिहासिक (लिखित इतिहास के पहले के समय का) काल को देखा जाए तो इलाहाबाद (प्रयागराज) उत्तर प्रदेश का इतिहास बेलन घाटी से सम्बंधित रहा है। प्रागैतिहासिक काल (पाषाण काल) पाषाण काल को तीन भागों में विभक्त किया जाता है, इन तीनों काल से बेलन घाटी के साक्ष्य मिले हैं।

* पुरापाषाण काल
* मध्यपाषाण काल 
* नवपाषाण काल

 

पुरापाषाण काल 


बेलन नदी घाटी के पुरास्थलों की खोज और खुदाई इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जी आर शर्मा के निर्देशन में कराया गया। बेलन घाटी के लोहदा नाला क्षेत्र नामक स्थल से पाषाण उपकरणों के साथ साथ एक अस्थि निर्मित मातृ देवी की प्रतिमा भी मिली है। इस सभ्यता के प्रायः सभी उपकरण क्वार्टजाइट पत्थरों से निर्मित है। इन स्थलों के साक्ष्य के आधार पर यह कहा जा सकता है कि इन्हें आग कृषि कार्य गृह निर्माण आदि का ज्ञान नहीं था, जबकि कुछ मात्रा में पशुपालन से परिचित होने के साक्ष्य मिलते हैं।
 

मध्यपाषाण काल 


इस काल में आग के साक्ष्य मिले हैं।
 

नवपाषाण काल 


प्रयागराज के बेलन घाटी स्थित कोल्डिहवा का संबंध धान (चावल) की खेती के प्राचीनतम साक्ष्य से है। यहां से प्राप्त मिट्टी के बर्तनों की सतहों पर चावल के दाने, भूसी व फल के अवशेष चिपके हुए मिले हैं। यहां तक कि सभी उत्तर कालीन वैदिक ग्रंथ लगभग 1000.600 ई.पू. में उत्तरी गंगा मैदान में ही रचे गए थे। 
 

पौराणिक प्रयागराज 


हिन्दू मान्यता के मुताबिक यहां सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने सृष्टि कार्य पूर्ण होने के बाद प्रथम यज्ञ किया था। इसी प्रथम यज्ञ के 'प्र' और याग अर्थात 'यज्ञ' से मिलकर प्रयाग बना और उस स्थान का नाम प्रयाग पड़ा जहां भगवान श्री ब्रह्मा जी ने सृष्टि का सबसे पहला यज्ञ सम्पन्न किया था। इस पावन नगरी के अधिष्ठाता (देखभाल करनेवाला) भगवान श्री विष्णु स्वयं हैं और वे यहां माधव रूप में विराजमान हैं। भगवान के यहां बारह स्वरूप विध्यमान हैं। जिन्हें द्वादश माधव कहा जाता है।
 

वेद तथा पुराणों में प्रयागराज का उल्लेख  
 

पवित्र गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती नदी के संगम जनपद प्रयागराज में ही हैं। वेद से लेकर पुराण तक और संस्कृति कवियों से लेकर लोक साहित्य के रचनाकारों तक ने इस संगम की महिमा का वर्णन किया है। तीर्थराज प्रयाग की विशालता व पवित्रता के संबंध में सनातन धर्म में मान्यता है कि एक बार देवताओं ने सप्तद्वीप, सप्तसमुद्र, सप्तकुलपर्वत, सप्तपुरियां, सभी तीर्थ और समस्त नदियां तराज़ू के एक पलड़े पर रखीं, दूसरी ओर मात्र ‘तीर्थराज प्रयाग’ को रखा, फिर भी प्रयागराज ही भारी रहा। वस्तुतः गोमुख से इलाहाबाद तक जहां कहीं भी कोई नदी गंगा से मिली है, उस स्थान को प्रयाग कहा गया है, जैसे- देवप्रयाग,कर्णप्रयाग,रुद्रप्रयाग आदि। केवल उस स्थान पर जहां गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम है, उसे ‘प्रयागराज’ कहा गया। 
 

वैदिक तथा बौद्ध शास्त्रों में प्रयागराज


जनपद प्रयाग सोम, वरुण तथा प्रजापति की जन्मस्थली है। जिला प्रयाग का वर्णन वैदिक तथा बौद्ध शास्त्रों के पौराणिक पात्रों के विषय में भी रहा है। यह महान ऋषि भारद्वाज, ऋषि दुर्वासा तथा ऋषि पन्ना की ज्ञानस्थली थी। ऋषि भारद्वाज ने यहां लगभग 5000 ई.पू.में निवास करते हुए 10000 से अधिक शिष्यों को पढ़ाया। वह प्राचीन विश्व के महान दार्शनिक थे।
 

त्रेता युग में प्रयागराज 


जनपद प्रयागराज तीर्थ स्थल बहुत प्राचीन काल से प्रसिद्ध है और यहां के जल से प्राचीन राजाओं का अभिषेक होता था। इस बात का उल्लेख वाल्मीकि रामायण में है। वन जाते वक़्त श्री राम प्रयाग में भारद्वाज ऋषि के आश्रम पर होते हुए गए थे।
 

रामचरितमानस और रामायण में वर्णन


प्रयाग का वर्णन तुलसीदास की रामचरित मानस और वाल्मीकि की रामायण में भी है, यही नहीं सबसे प्राचीन एवं प्रामाणिक पुराण मत्स्य पुराण के 102 अध्याय से लेकर 107 अध्याय तक में इस तीर्थ के महात्म्य का वर्णन है।
 

धार्मिक ऐतिहासिकता


भगवान पद्मप्रभु (छठवें जैन तीर्थंकर) की जन्मस्थली कौशाम्बी रही है तो भक्ति आंदोलन के प्रमुख स्तंभ रामानंद का जन्म प्रयाग में हुआ। रामायण काल का चर्चित श्रृंगवेरपुर, जहां पर केवट ने भगवान राम के चरण धोए थे, यहीं पर है। यहां गंगातट पर श्रृंगी ऋषि का आश्रम व समाधि है। भारद्वाज मुनि का प्रसिद्ध आश्रम भी यहीं आनंद भवन के पास है, जहां भगवान राम श्रृंग्वेरपुर से चित्रकूट जाते समय मुनि से आशीर्वाद लेने आए थे। अलोपी देवी के मंदिर के रूप में प्रसिद्ध सिद्धिपीठ यहीं पर है तो सीता-समाहित स्थल के रूप में प्रसिद्ध सीतामढ़ी भी यहीं पर है।

गंगा तट पर स्थित दशाश्वमेध मंदिर जहां ब्रह्मा ने सृष्टि का प्रथम अश्वमेध यज्ञ किया था वो भी प्रयागराज में ही स्थित है। धौम्य ऋषि ने अपनी तीर्थयात्रा प्रसंग में वर्णन किया है कि प्रयाग में सभी तीर्थों, देवों और ऋषि-मुनियों का सदैव से निवास रहा है तथा सोम, वरुण व प्रजापति का जन्मस्थान भी प्रयाग ही है। किसी समय प्रयाग का एक विशिष्ट अंग रहा लेकिन अब एक पृथक् जनपद के रूप में स्थित कौशाम्बी का भी अपना एक अलग इतिहास है।

विभिन्न कालों में धर्म, साहित्य, व्यापार और राजनीति का केंद्र बिंदु रहे कौशाम्बी की स्थापना उद्यिन ने की थी। यहां पांचवी सदी के बौद्ध स्तूप और भिक्षुक गृह हैं। वासवदत्ता के प्रेमी उद्यान की यह राजधानी थी। यहां की खुदाई से महाभारत काल की ऐतिहासिकता का भी पता लगता है। इलाहाबाद की ऐतिहासिकता अपने आप में अनूठी है। यह इलाहाबादी अमरूद के बिना भी अधूरी सी लगती है।

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