बांग्लादेश में चल रही बगावत का सीधा असर सहारनपुर के वुड कार्विंग उद्योग पर पड़ रहा है। सहारनपुर से प्रतिमाह 10-15 करोड़ रुपये के लकड़ी उत्पाद सीधे बांग्लादेश को निर्यात किए जाते हैं। यहां का पौने...
बांग्लादेश में अशांति से असर : सहारनपुर के निर्यातक चिंतित, लाखों लोगों को रोजगार देता है पौने दो सौ साल पुराना वुड कार्विंग उद्योग
Aug 09, 2024 16:17
Aug 09, 2024 16:17
बांग्लादेश से सीधा होता है निर्यात
सहारनपुर से 10 से 12 निर्यातक सीधे बांग्लादेश को लकड़ी के उत्पाद भेजते हैं। महीने का 10 से 15 करोड़ रुपये का सीधा निर्यात बांग्लादेश को है। इस उद्योग से सहारनपुर में लगभग एक लाख 50 हजार लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हैं। बांग्लादेश में आरक्षण को लेकर चल रहे बवाल का सीधा असर सहारनपुर के उद्यमियों और कारोबारियों पर पड़ता दिख रहा है। उत्पादन, परिवहन, निर्यात और भुगतान सब प्रभावित हो गया है।
ट्रांसपोर्टर भी परेशान
सहारनपुर से प्रतिदिन पश्चिम बंगाल के लिए 5-8 ट्रक माल जाता है। इसमें लकड़ी के उत्पादों के अलावा खाद्य सामग्री भी शामिल हैं। बांग्लादेश की स्थिति को देखते हुए उद्यमी, निर्यातक और ट्रांसपोर्टर चिंतित हैं। हालात में सुधार होने तक कई सौ करोड़ रुपये से अधिक कारोबार प्रभावित होने की संभावना है। मौजूदा समय में ही करोड़ों रुपये का भुगतान रुक गया है।
बांग्लादेश सीमा पर फंस गया माल
सहारनपुर के कारोबारियों का दावा है कि कोलकाता की पार्टियों ने भी बांग्लादेश को माल भेजना बंद कर दिया है। सहारनपुर में दर्जन भर से अधिक ऐसे उद्यमी हैं, जो सीधे कोलकाता की पार्टियों को माल भेजते हैं, जो फिर बांग्लादेश को भेजा जाता है। आर्डर रोके जाने का असर ट्रांसपोर्ट व्यवसाय पर देखने को मिल रहा है। माल लोड करने का काम बंद कर दिया गया है। उत्तर प्रदेश मोटर ट्रांसपोर्टर फेडरेशन के अध्यक्ष ब्रिज चावला ने बताया कि सहारनपुर से बांग्लादेश सीमा तक माल पहुंचाया जाता है, लेकिन वहां की हिंसा के कारण वह अटक गया है। गोदामों में करोड़ों रुपये का माल फंस गया है और आने वाले दिनों में इसको लेकर बड़ा आर्थिक संकट सामने आ सकता है।
सहारनपुर का वुड कार्विंग उद्योग
वुड कार्विंग उद्योग की नींव 1857 में मुल्तान (अब पाकिस्तान में) के गरीब बढ़ई अतर हुसैन ने डाली थी। इस काम में प्रमुख रूप से शीशम की लकड़ी का प्रयोग होता है। सहारनपुर का वुड कार्विंग उद्योग वैश्विक स्तर पर मशहूर है। यहां से उत्पन्न होने वाले वुड कार्विंग उत्पाद दुनियाभर में निर्यात किए जाते हैं। इस उद्योग से जनपद में करीब 1500 करोड़ रुपये का व्यापार होता है, जिसका अधिकांश भाग विदेशों में निर्यात किया जाता है। सहारनपुर में वुड कार्विंग उद्योग से प्रतिवर्ष लगभग एक हजार करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा अर्जित होती थी, जो अब घटकर 500 करोड़ रुपये से भी कम हो गई है। यही स्थिति आम निर्यात की भी है। वुड कार्विंग और आम निर्यात को अपेक्षित रफ्तार नहीं मिल रही है, क्योंकि संसाधनों का अभाव है। इस दिशा में सरकार पहल करे तो यहां निर्यात की अपार संभावनाएं हैं।
सहारनपुर वुड कार्विंग की विश्वभर में ब्रांडिंग
सहारनपुर की लकड़ी पर नक्काशी की विश्वभर में ब्रांडिंग हो रही है। यह उत्पाद भौगोलिक संकेतक (जीआई) में पंजीकृत है, जिससे इसकी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनी है। भौगोलिक संकेतक पंजीकरण से माल कहीं से भी खरीदा जाए, उसमें सीधा उद्यमी को लाभ पहुंचता है और कमीशन एजेंट का खेल खत्म हो जाता है। जीआई टैग मिलने से सहारनपुर की लकड़ी नक्काशी का जलवा पूरी दुनिया में हैं। सहारनपुर जनपद में वुड कार्विंग उद्योग से लगभग एक लाख 50 हजार लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हैं। इस उद्योग में करीब 400 इकाइयां हैं।
पहले भी कई झटके सहन कर चुका
उद्योग को सबसे बड़ा झटका वर्ष 2006 में डॉलर की कीमत गिरने से लगा था, जिससे निर्यातकों को 15-20 प्रतिशत तक नुकसान हुआ था। छोटे निर्यातक तो अब तक संभल नहीं सके हैं। वुड कार्विंग निर्यात पर यूक्रेन युद्ध का भी असर पड़ रहा है। कुल माल का 40 प्रतिशत अमेरिका और 60 प्रतिशत अन्य देशों में निर्यात होता है, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय मंदी का तुरंत असर दिखता है। सहारनपुर के कारोबारी उम्मीद कर रहे हैं कि बांग्लादेश में अंतरिम सरकार के गठन के बाद हालात बेहतर होंगे।
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