भाजपा के वरिष्ठ नेता मुख्तार अब्बास नकवी की प्रतिक्रिया सामने आई है। उन्होंने लिखा है कि आस्था का सम्मान होना चाहिए, लेकिन अस्पृश्यता का संरक्षण नहीं होना चाहिए।
नकवी की नसीहत : कांवड़ यात्रा में पुलिस आदेश पर बोले- आस्था का सम्मान हो लेकिन अस्पृश्यता का संरक्षण नहीं
Jul 18, 2024 22:27
Jul 18, 2024 22:27
दोहा भी साझा किया
भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने इस मुद्दे पर अपनी राय व्यक्त करते हुए कहा कि आस्था का सम्मान होना चाहिए, लेकिन अस्पृश्यता का संरक्षण नहीं होना चाहिए। उन्होंने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में लिखा, "कुछ अति-उत्साही अधिकारियों के आदेश हड़बड़ी में गडबड़ी वाली, अस्पृश्यता की बीमारी को बढ़ावा दे सकते हैं।" नकवी ने इस संदर्भ में एक दोहा भी साझा किया। लिखा-
जनम जात मत पूछिए, का जात अरु पात।
रैदास पूत सब प्रभु के,कोए नहिं जात कुजात।
गीतकार जावेद अख्तर ने सवाल उठाया
प्रसिद्ध गीतकार और पटकथा लेखक जावेद अख्तर ने भी इस मुद्दे पर अपनी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर एक पोस्ट साझा करते हुए लिखा, "मुजफ्फरनगर यूपी पुलिस ने निर्देश दिया है कि निकट भविष्य में किसी विशेष धार्मिक जुलूस के मार्ग पर सभी दुकानों, रेस्तरां और यहां तक कि वाहनों पर मालिक का नाम प्रमुखता से और स्पष्ट रूप से दर्शाया जाना चाहिए। आखिर क्यों?" अख्तर के इस सवाल ने इस विवादास्पद आदेश के पीछे के कारणों पर सवाल उठाया है।
सियासत भी गरमाई
विपक्षी दलों ने इस आदेश की कड़ी आलोचना की है। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इसे सामाजिक सौहार्द को बिगाड़ने वाला कदम बताया और न्यायालय से स्वतः संज्ञान लेने की मांग की। बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने भी इसे गलत परंपरा करार देते हुए सरकार से इसे वापस लेने की अपील की। ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने इसे संविधान के अनुच्छेद 17 का उल्लंघन बताया और आरोप लगाया कि यह मुसलमानों के साथ स्पष्ट भेदभाव है।
यह है विवाद का कारण
उत्तर प्रदेश में आगामी कांवड़ यात्रा को लेकर एक नया विवाद खड़ा हो गया है। मुजफ्फरनगर, शामली और सहारनपुर जिलों की पुलिस ने यात्रा मार्ग पर स्थित दुकानों, ढाबों और ठेलों पर मालिकों के नाम बड़े अक्षरों में प्रदर्शित करने का निर्देश दिया है। मामला गरमाते ही मुजफ्फरनगर पुलिस ने स्पष्टीकरण देते हुए कहा है कि दुकानों पर नाम लिखना स्वैच्छिक है और यह आदेश अनिवार्य नहीं है। हालांकि यह विवाद कांवड़ यात्रा के दौरान सांप्रदायिक सौहार्द और सामाजिक समरसता के मुद्दों पर गंभीर चर्चा को जन्म दे रहा है।
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