मीरापुर में दो महिलाओं के बीच कड़ा मुकाबला : बीजेपी ने रालोद को दिया मौका, सुम्बुल राणा बनाम मिथलेश पाल में कांटे की टक्कर

बीजेपी ने रालोद को दिया मौका, सुम्बुल राणा बनाम मिथलेश पाल में कांटे की टक्कर
UPT | मीरापुर विधानसभा उपचुनाव

Oct 24, 2024 20:55

मुजफ्फरनगर की मीरापुर विधानसभा से रालोद ने अपने प्रत्याशी की घोषणा की है। जबकि भाजपा ने अन्य क्षेत्रों में प्रत्याशियों की घोषणा कर दी थी...

Oct 24, 2024 20:55

Short Highlights
  • मीरापुर विधानसभा उपचुनाव के लिए उम्मीदवारों की घोषणा
  • रालोद ने मिथलेश पाल को बनाया उम्मीदवार
  • सपा ने सुम्बुल राणा पर जताया भरोसा
Muzaffarnagar News : उत्तर प्रदेश में मीरापुर विधानसभा उपचुनाव के लिए सभी राजनीतिक दलों ने अपने उम्मीदवारों के नाम की घोषणा कर दी है, जिससे सियासी गतिविधियां तेज हो गई हैं। यह सीट विशेष महत्व रखती है, क्योंकि भारतीय जनता पार्टी ने इसे राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) को सौंपने का निर्णय लिया है। हाल ही में, मुजफ्फरनगर की मीरापुर विधानसभा से रालोद ने अपने प्रत्याशी की घोषणा की है। जबकि भाजपा ने अन्य क्षेत्रों में प्रत्याशियों की घोषणा कर दी थी। इस बार मीरापुर सीट पर दो महिला उम्मीदवारों के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा देखने को मिल रही है, जो चुनावी मैदान को और रोचक बना रही है।

रालोद ने मिथलेश पाल पर लगाया दांव
राष्ट्रीय लोकदल ने मीरापुर विधानसभा उपचुनाव के लिए मोरना (मीरापुर) से पूर्व विधायक मिथलेश पाल को अपना प्रत्याशी घोषित किया है। इससे चुनावी मुकाबला और दिलचस्प हो गया है।  मिथलेश पाल ने 2009 में हुए उपचुनाव में राष्ट्रीय लोकदल के तहत विधायक का पद प्राप्त किया था। उनका राजनीतिक सफर 1995 में जिला पंचायत चुनाव जीतने से शुरू हुआ, जिसके बाद उन्होंने 2009 में मोरना (मीरापुर) से विधायक बनकर अपनी पहचान बनाई। 2024 के उपचुनाव में भी उन्हें पार्टी ने उम्मीदवार के रूप में चुना है। मिथलेश पाल एक पिछड़े समाज की महिला नेता हैं, जो मीरापुर विधानसभा क्षेत्र में पिछड़ी जातियों के साथ-साथ अन्य समुदायों में भी अपनी अच्छी पकड़ रखती हैं।



सपा ने सुम्बुल राणा पर जताया भरोसा
मीरापुर उपचुनाव के लिए समाजवादी पार्टी ने सुम्बुल राणा को अपना प्रत्याशी बनाया है। उन्होंने आज अपना नामांकन पत्र दाखिल कर दिया। इस मौके पर पूर्व जिलाध्यक्ष प्रमोद त्यागी और जिलाध्यक्ष जिया चौधरी एडवोकेट उनके साथ मौजूद थे। समाजवादी पार्टी ने पूर्व सांसद कादिर राणा की बहू को टिकट दिया है। सुम्बुल राणा बसपा नेता मुनकाद अली की बेटी हैं। लखनऊ में टिकट के लिए 25 दावेदारों ने पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से अपनी दावेदारी पेश की थी। कादिर राणा अपने बेटे शाह मोहम्मद को टिकट दिलाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन अंतिम समय में उनकी पत्नी सुम्बुल राणा को प्रत्याशी बनाया गया।

बसपा ने शाहनजर को दिया मौका
बहुजन समाज पार्टी ने मीरापुर विधानसभा क्षेत्र उपचुनाव के लिए शाहनजर को चुना है। बता दें कि बसपा पहली बार उपचुनाव में भाग ले रही है। बसपा ने मीरापुर की चुनावी रणनीति में कोई बदलाव नहीं किया है। पार्टी ने मुस्लिम-दलित गठजोड़ पर भरोसा जताते हुए शाह नजर को अपना उम्मीदवार घोषित किया है। इसके अलावा, बसपा ने दो महीने पहले कम्हेड़ा के एक किसान परिवार से आने वाले शाह नजर को विधानसभा का प्रभारी नियुक्त किया था।

मीरापुर सीट का जातीय समीकरण
मीरापुर सीट, जो 2012 में अस्तित्व में आई, पर अब तक तीन बार चुनाव हो चुके हैं। इसमें बसपा, भाजपा और रालोद ने एक-एक बार जीत हासिल की है। इससे पहले यह क्षेत्र मोरना विधानसभा का हिस्सा था। प्रशासन ने इस चुनाव के लिए सभी आवश्यक तैयारियां पूरी कर ली हैं। मीरापुर में लगभग 1.25 लाख मुस्लिम मतदाता हैं, जबकि अनुसूचित वर्ग के करीब 50 हजार मतदाता हैं। जाट बिरादरी के मतदाता 35 हजार, पाल समाज के 20 हजार, गुर्जर के 18 हजार और सैनी के 20 हजार बताए जाते हैं। 2013 में कवाल गांव में हुई सांप्रदायिक हिंसा के बाद सभी राजनीतिक दलों के नेता इस बार के चुनाव में प्रत्याशियों के चयन में काफी सावधानी बरत रहे हैं।

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मीरापुर में इतने मतदाता 
मीरापुर विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव के लिए कुल मतदाताओं की संख्या 3,23,830 है, जिसमें पुरुषों की संख्या 1,71,560 और महिलाओं की संख्या 1,52,255 है। इसके अलावा, थर्ड जेंडर के मतदाताओं की संख्या 15 है।

25  नवंबर तक भरे जाएंगे नामांकन
मीरापुर विधानसभा क्षेत्र का उपचुनाव 13 नवंबर को आयोजित किया जाएगा। इसके लिए नामांकन की प्रक्रिया 25 अक्टूबर तक चलेगी। नतीजे 23 नवंबर को घोषित किए जाएंगे, जो कि चुनावी प्रक्रिया में महत्वपूर्ण माने जा रहे हैं। उपचुनाव केवल मीरापुर सीट पर नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश की नौ विधानसभा सीटों पर हो रहे हैं। इनमें फूलपुर, गाजियाबाद, मझवां, खैर, मीरापुर, सीसामऊ, कटेहरी, करहल और कुंदरकी शामिल हैं। यह चुनावी स्थिति राजनीतिक दलों के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकती है।

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