कुंदरकी को समाजवादी पार्टी का गढ़ माना जाता है। साल 2012 से लगातार यहां सपा ने अपना वर्चस्व कायम रखा है। ऐसे में इस सीट पर भाजपा के लिए जीत हासिल करना एक बड़ी चुनौती है...
कुंदरकी में भाजपा के लिए बड़ी चुनौती : 58 फीसदी मुस्लिम मतदाता वाली सीट पर ठाकुर बनाम हाजी, सपा के वर्चस्व को तोड़ने की लड़ाई
Oct 24, 2024 16:41
Oct 24, 2024 16:41
- कुंदरकी विधानसभा क्षेत्र उपचुनाव के लिए प्रत्याशियों की घोषणा
- सपा का गढ़ मानी जाती है कुंदरकी विधानसभा सीट
- भाजपा ने रामवीर ठाकुर फिर जताया भरोसा
भाजपा ने रामवीर ठाकुर पर एक बार फिर लगाया दांव
कुंदरकी विधानसभा क्षेत्र उपचुनाव के लिए बीजेपी ने एक बार फिर रामवीर ठाकुर पर भरोसा जताया है। ये चौथी बार है जब वो भाजपा की टिकट पर इस क्षेत्र से चुनाव लड़ने जा रहे हैं। रामवीर ठाकुर ने इससे पहले साल 2007, 2012 और 2017 में कुंदरकी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा था और तीनों ही बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा। भाजपा इस सीट पर 31 सालों से चुनाव नहीं जीत पाई है और फिर एक बार रामवीर ठाकुर को चुनाव में उतारा गया है। बता दें कि रामवीर सिंह भाजपा में रहते हुए जिला महामंत्री से लेकर प्रदेश सचिव तक के कई पद पर अपनी जिम्मेदारी निभा चुके हैं।
सपा ने हाजी रिजवान पर फिर जताया भरोसा
समाजवादी पार्ट ने कुंदरकी विधानसभा क्षेत्र उपचुनाव के लिए हाजी रिजवान को चुना है। हाजी रिजवान पहले भी कुंदरकी विधानसभा सीट से विधायक रह चुके हैं। 2017 के चुनाव में उन्होंने बीजेपी के रामवीर सिंह को हराकर जीत हासिल की थी और इससे पहले 2012 में भी उन्होंने रामवीर सिंह को हराया था। उनकी मजबूत राजनीतिक पकड़ और पिछले चुनावी अनुभव के चलते उन्हें एक प्रभावशाली उम्मीदवार के रूप में देखा जा रहा है। रिजवान तुर्क बिरादरी से हैं और कुंदरकी सीट पर तुर्क वोटरों की निर्णायक भूमिका है। पिछले तीन दशकों में कुंदरकी सीट पर केवल तुर्क नेताओं ने चुनाव जीते हैं। हाजी मोहम्मद रिजवान का राजनीतिक सफर लगभग 40 साल पहले शुरू हुआ था, जब उन्होंने 2002 में पहली बार इस सीट पर जीत दर्ज की। हालांकि, 2007 में उन्हें बसपा के हाजी अकबर के हाथों हार का सामना करना पड़ा। 2022 में सपा से नाराज होकर उन्होंने बसपा जॉइन की, लेकिन वहां भी उन्हें हार मिली। 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले, संभल के सांसद डॉ. शफीकुर्रहमान बर्क के निधन के बाद रिजवान ने फिर से सपा में वापसी की।
बसपा ने रफतउल्ला उर्फ नेता छिद्दा को दिया मौका
बहुजन समाज पार्टी ने कुंदरकी विधानसभा क्षेत्र उपचुनाव के लिए रफतउल्ला उर्फ नेता छिद्दा को चुना है। रफतउल्ला, संभल के निवासी हैं। वह एक अनुभवी बसपाई माने जाते हैं और पहले डीपी यादव के करीबी सहयोगियों में शामिल थे। नेता छिद्दा इस बार पांचवें विधानसभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। उन्होंने पहले तीन बार संभल विधानसभा सीट पर और एक बार असमोली विधानसभा सीट पर चुनाव लड़ा, लेकिन सफलता हासिल नहीं कर पाए। रफतउल्ला ने 1996 में बसपा में शामिल होकर अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी और उसी साल उन्होंने संभल सीट से पहला चुनाव लड़ा था, जिसमें उन्हें हार का सामना करना पड़ा था।
मुस्लिक बहुल्य सीट मानी जाती है कुंदरकी
कुंदरकी विधानसभा सीट पर कुल 3,83,488 मतदाता हैं। इनमें से लगभग दो लाख सवा लाख मुस्लिम मतदाता हैं, जो इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसके अलावा, सीट पर 63,000 एससी-एसटी मतदाता, 30-30 हजार क्षत्रिय और सैनी समुदाय के मतदाता हैं। यादव समुदाय के मतदाताओं की संख्या लगभग 15,000 है, जबकि अन्य समुदायों के मतदाता भी मौजूद हैं।
इसलिए खास है कुंदरकी विधानसभा सीट
कुंदरकी विधानसभा सीट का खास महत्व है क्योंकि 2022 के विधानसभा चुनाव में जियाउर रहमान बर्क ने यहां जीत हासिल की थी। जियाउर रहमान बर्क, शफीकुर्रहमान बर्क के पोते हैं, जो संभल सीट से कई बार सांसद रहे। कुछ महीने पहले शफीकुर्रहमान बर्क का निधन हो गया, जिससे इस सीट पर राजनीतिक गतिविधियों में तेजी आई है। इस बार जियाउर रहमान बर्क ने लोकसभा चुनाव में संभल की सीट से सफलता प्राप्त की , जिसके चलते उन्होंने विधानसभा से इस्तीफा दिया। इससे कुंदरकी सीट पर उपचुनाव आयोजित किया जा रहा है। कुंदरकी सीट के इसलिए भी दिलचस्प मानी जा रही है क्योंकि, 1993 के बाद से यहां कोई भी हिंदू नेता चुनाव में जीत नहीं सका।
13 नवंबर को होगा चुनाव
इस उपचुनाव का मतदान 13 नवंबर को निर्धारित किया गया है। इसके लिए नामांकन की प्रक्रिया 25 अक्टूबर तक चलेगी। नतीजे 23 नवंबर को घोषित किए जाएंगे, जो कि चुनावी प्रक्रिया में महत्वपूर्ण माने जा रहे हैं। उपचुनाव केवल कुंदरकी सीट पर नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश की नौ विधानसभा सीटों पर हो रहे हैं। इनमें फूलपुर, गाजियाबाद, मझवां, खैर, मीरापुर, सीसामऊ, कटेहरी, करहल और कुंदरकी शामिल हैं। यह चुनावी स्थिति राजनीतिक दलों के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकती है।
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