स्वतंत्रता संग्राम का गवाह पीपल का पेड़ : अंग्रेजों ने यहां कई क्रांतिकारियों को फांसी पर लटकाया था, आज भी मौजूद हैं निशानियां

अंग्रेजों ने यहां कई क्रांतिकारियों को फांसी पर लटकाया था, आज भी मौजूद हैं निशानियां
UPT | सांकेतिक फोटो।

Jan 20, 2025 15:20

सहारनपुर, उत्तर प्रदेश का ऐतिहासिक शहर, 1857 की क्रांति का गवाह है, जहां एक पीपल के पेड़ पर अंग्रेजों ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को फांसी दी थी। यह पेड़ शहीदों की शहादत का प्रतीक है और आज भी उनकी बहादुरी की याद दिलाता है।

Jan 20, 2025 15:20

Saharanpur News : भारत की आज़ादी की गाथा में प्रत्येक शहर और गांव ने किसी न किसी रूप में योगदान दिया है। सहारनपुर, उत्तर प्रदेश का एक ऐतिहासिक शहर है, जो अपने स्वतंत्रता संग्राम में योगदान के लिए हमेशा याद किया जाएगा। यहां पर क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष किया था और इसी धरती पर एक ऐसा पेड़ था, जिसने 1857 की क्रांति के दौरान बहुत से शहीदों की शहादत देखी थी। यह पेड़ था - पीपल का पेड़, जहां अंग्रेजों ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को फांसी दी थी। 



स्वतंत्रता संग्राम की यादें
सहारनपुर के हलवाई अट्टा के निकट पुरानी कोतवाली और लोहा बाजार के पास एक पीपल का वृक्ष हुआ करता था, जिसे 1857 के क्रांतिकारियों का प्रतीक माना जाता था। यह वही पेड़ था, जहां अंग्रेजों ने भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी दी थी। पीपल के वृक्ष की छांव में वो शहीद अपने प्राणों की आहुति देकर देश को स्वतंत्रता दिलाने की दिशा में अपना योगदान दे रहे थे। जब तक शवों से दुर्गंध न आने लगे, तब तक उन शवों को पेड़ पर लटका दिया जाता था। 

यह पेड़ न केवल एक ऐतिहासिक स्थल था, बल्कि यह भारतीय शौर्य, संघर्ष और बलिदान की निशानी भी था। हालांकि समय के साथ वह पीपल का वृक्ष गिर गया, लेकिन आज भी उस स्थान पर एक स्मारक स्थापित है, जो हमारे स्वतंत्रता संग्राम की अमूल्य धरोहर को संजोए हुए है।

क्रांतिकारियों की शहादत
1857 की क्रांति को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की पहली बड़ी कोशिश माना जाता है। इस क्रांति में भारत के विभिन्न हिस्सों के लोग, खासकर सैनिक और आम लोग, अंग्रेजों के खिलाफ उठ खड़े हुए थे। सहारनपुर में भी क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाई थी। उन वीर क्रांतिकारियों में से कई को पीपल के पेड़ पर फांसी दी गई थी। इन शहीदों ने अपनी जान की परवाह किए बिना स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया। अंग्रेजों ने इन क्रांतिकारियों को अपनी सत्ता और ताकत का प्रतीक समझते हुए फांसी पर लटका दिया, ताकि दूसरों में डर फैल सके। यह वह समय था जब ब्रिटिश साम्राज्य अपनी पूरी ताकत का प्रयोग भारतीयों को दबाने के लिए कर रहा था। लेकिन इन क्रांतिकारियों के शहादत ने एक नई चेतना को जन्म दिया और भारतीयों में संघर्ष की भावना को जीवित रखा।

शहीदी स्थल पर श्रद्धांजलि
आज इस स्मारक पर हर साल 15 अगस्त और 26 जनवरी जैसे राष्ट्रीय पर्वों पर शहीदों की याद में आयोजन किए जाते हैं। शहीदी दिवस पर लोग इकट्ठा होते हैं और उन वीर शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं जिन्होंने अपनी जान की आहुति दी थी। इस दौरान शहीदों को सलामी दी जाती है और उनकी बहादुरी को सलाम किया जाता है। यह आयोजन सहारनपुर के लोगों के लिए एक गर्व का विषय है, क्योंकि यह उनके इतिहास और संघर्ष का प्रतीक है। साहित्यकार डॉ. वीरेंद्र आज़म ने लोकल 18 से बातचीत करते हुए बताया कि यह शहीद स्मारक सहारनपुर के हलवाई अट्टा के निकट स्थित है। यहां पर वह पीपल का वृक्ष हुआ करता था, जो 1857 की क्रांति का महत्वपूर्ण प्रतीक था। इस जगह पर हर साल शहीदी दिवस पर आयोजन किए जाते हैं, जिसमें शहीदों को श्रद्धांजलि दी जाती है और उनकी वीरता को सम्मानित किया जाता है।

आजादी की प्रेरणा
सहारनपुर का यह स्थान सिर्फ एक स्मारक नहीं है, बल्कि यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक जीवित गाथा है। यह हमें यह याद दिलाता है कि आज़ादी के लिए कई लोगों ने अपनी जान दी थी और उनका बलिदान व्यर्थ नहीं गया। पीपल का वह वृक्ष अब भले ही गिर चुका हो, लेकिन उसका महत्व आज भी बरकरार है। यह स्मारक उन बहादुर क्रांतिकारियों की याद दिलाता है, जिन्होंने अपनी जान की आहुति देकर हमें आज़ादी दिलाने का मार्ग प्रशस्त किया।

अपनी जिम्मेदारी निभाएं और उन मूल्यों को जिंदा रखें जिनके लिए हमारे पूर्वजों ने संघर्ष किया
आज, जब हम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के उन वीर नायकों को याद करते हैं, तो सहारनपुर का यह स्थल हमें यह प्रेरणा देता है कि हम भी अपने देश के लिए अपनी जिम्मेदारी निभाएं और उन मूल्यों को जिंदा रखें जिनके लिए हमारे पूर्वजों ने संघर्ष किया। सहारनपुर का यह शहीद स्मारक न केवल इस शहर, बल्कि पूरे देश के लिए गर्व का विषय है। यह हमें अपने इतिहास से जोड़ता है और हमें यह याद दिलाता है कि हम जो आज़ादी में सांस ले रहे हैं, वह केवल उन शहीदों की वजह से संभव हो पाई है। आज भी उस पीपल के पेड़ की जगह पर खड़ा बड़ का वृक्ष हमें अपनी स्वतंत्रता के लिए किए गए संघर्ष की गहरी याद दिलाता है। 

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