उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले का एक गांव डेहरी इन दिनों खबरों में है। यह गांव जिला मुख्यालय से लगभग 35 किलोमीटर दूर स्थित केराकत तहसील में आता है। यहां के कई मुस्लिम समुदाय के लोग अब अपने नाम में हिंदू टाइटल जोड़ने लगे हैं...
मुस्लिम परिवार ने अपनाया हिंदू उपनाम : जानें नाम के पीछे दुबे लगाने वाले नौशाद अहमद की कहानी, कतर से किया MA... बच्चों को भी खूब पढ़ाया
Dec 10, 2024 19:20
Dec 10, 2024 19:20
मुस्लिम लोगों ने पूर्वजों को बताया हिंदू
जौनपुर जिले के एक गांव में रहने वाले कई मुस्लिम लोग अब अपने नाम में हिंदू सरनेम जोड़ने लगे हैं। इसके अलावा, वे गायों की सेवा भी करने लगे हैं। इन लोगों का दावा है कि उनके पूर्वज हिंदू थे और अब वे अपने गोत्र की खोज में जुट गए हैं। उनका कहना है कि उनका असली सरनेम ब्राह्मण था और इसलिए उन्होंने ब्राह्मण सरनेम अपनाया है। वे यह भी मानते हैं कि शेख, पठान, मिर्जा और सैयद जैसे टाइटल भारतीय नहीं हैं, बल्कि ये विदेशी शासकों ने दिए थे। अब, वे अपनी मूल भारतीय संस्कृति और सभ्यता की ओर लौटने का प्रयास कर रहे हैं।
'असली संस्कृति हिंदू सभ्यता से जुड़ी'
डेहरी गांव में गांव की कुल मुस्लिम आबादी 7 हजार के लगभग है, जबकि हिंदू समुदाय की संख्या करीब 5,000 है। अब इस गांव के कई मुस्लिम लोग जैसे नौशाद अहमद, जो अब खुद को नौशाद अहमद दुबे कहने लगे हैं, अपने पूर्वजों से जुड़ी हिंदू पहचान को अपनाने का प्रयास कर रहे हैं। इसी गांव के एक अन्य निवासी का कहना है कि उनके पूर्वज भी हिंदू ब्राह्मण थे, लेकिन उन्होंने अभी अपने नाम में हिंदू टाइटल नहीं जोड़ा है। इसके साथ ही, ये लोग गायों की सेवा भी करने लगे हैं और उनका मानना है कि उनकी असली संस्कृति हिंदू सभ्यता से जुड़ी हुई है।
आजमगढ़ से यहां आए थे पूर्वज
नौशाद का कहना है कि बचपन से ही उन्हें यह महसूस होता था कि उनका कास्ट जैसे शेख, पठान या सैयद उनके अपने नहीं थे, बल्कि ये उधार में लिए गए टाइटल्स हैं। उन्होंने बताया कि उनके पूर्वज आजमगढ़ से यहां आए थे और उनके परिवार के असली वंश की पहचान हिंदू टाइटल्स से जुड़ी हुई है। नौशाद ने यह भी कहा कि शेख, मिर्जा और खान जैसे टाइटल्स अरबी, तुर्की और मंगोल साम्राज्यों से जुड़ी हुई पहचान हैं और वह क्यों इन्हें अपनाएं। उनका कहना है कि उनके पास अपना टाइटल है और वे अपने पूर्वजों के मूल टाइटल्स को ही अपनाएंगे, जो हिंदू ब्राह्मणों से जुड़े हुए हैं।
कतर में उर्दू से किया एमए
नौशाद अहमद दुबे ने बताया कि उन्होंने हाईस्कूल तक की पढ़ाई की और फिर रोज़ी-रोटी की तलाश में कतर चले गए। कतर में रहते हुए उन्होंने उर्दू से एमए किया। नौशाद के परिवार में उनकी पत्नी, एक बेटा और दो बेटियां हैं। उनका बेटा एमबीए करने के बाद विदेश में नौकरी कर रहा है। एक बेटी ने एलएलएम किया और वह यूनिवर्सिटी टॉपर रही, जबकि दूसरी बेटी एमएससी पास आउट है। नौशाद ने यह भी बताया कि जब उन्होंने अपनी बेटियों को उच्च शिक्षा के लिए हॉस्टल भेजा, तो उनके धर्म के कुछ लोगों ने इसका विरोध किया। उन लोगों ने फतवे जारी किए और कहा कि बेटियों को बिना गार्जियन के बाहर कैसे भेज सकते हैं।
अपनी जड़ों से जुड़ने की कोशिश में बदला नाम
नौशाद अहमद कहते हैं कि उन्होंने इस्लाम नहीं छोड़ा है, बल्कि वे अपनी जड़ों से जुड़ने की कोशिश कर रहे हैं। वे गाय भी पालते हैं और तिलक भी लगाते हैं। उनका मानना है कि हर धर्म का सम्मान करना चाहिए और किसी को भला-बुरा नहीं कहना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि आजकल कुछ लोग सिर तन से जुदा करने की बातें करते हैं, लेकिन उन्हें इस्लाम का सही अर्थ नहीं पता। गांव के लोग उन्हें दुबे जी या मुस्लिम ब्राह्मण कहकर बुलाते हैं। हाल ही में डेहरी गांव के नौशाद अहमद की भतीजी की शादी थी और शादी के कार्ड पर उनका नाम 'नौशाद अहमद दुबे' छपा था। यह देखकर लोग हैरान रह गए, क्योंकि उन्हें यह यकीन नहीं हो रहा था कि एक मुस्लिम के नाम में दुबे कैसे हो सकता है।
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