शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद का बड़ा बयान : ज्ञानवापी में पूजा की मांगी अनुमति, अधूरे मंदिरों में प्राण प्रतिष्ठा को बताया शास्त्र विरुद्ध

ज्ञानवापी में पूजा की मांगी अनुमति, अधूरे मंदिरों में प्राण प्रतिष्ठा को बताया शास्त्र विरुद्ध
UPT | शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद

Oct 30, 2024 18:51

ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने ज्ञानवापी को लेकर बड़ा बयान देते हुए एक बार फिर मंदिर में पूजा की अनुमति की मांग की है।

Oct 30, 2024 18:51

Varanasi News : ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने ज्ञानवापी को लेकर बड़ा बयान देते हुए एक बार फिर मंदिर में पूजा की अनुमति की मांग की है। उनका कहना है कि ज्ञानवापी भारतीय धर्म और संस्कृति का महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है, जहां भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए थे। शंकराचार्य का मानना है कि प्राचीनकाल में विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा इस तीर्थ स्थल पर कब्जा कर इसे बदल दिया गया, लेकिन अब भारत स्वतंत्र है, और ऐसे में ज्ञानवापी को हिंदू समाज के लिए पूर्ण रूप से मुक्त किया जाना चाहिए।

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ज्ञानवापी के पौराणिक महत्व का उल्लेख
शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद के अनुसार, पुराणों में ज्ञानवापी का महत्व स्पष्ट रूप से बताया गया है। उन्होंने कहा कि ज्ञानवापी में भगवान शिव स्वयंभू रूप में प्रकट हुए थे, और यह स्थल प्राचीन काल से ही पूजा का स्थान रहा है। वहां के जल का आध्यात्मिक महत्व बताते हुए उन्होंने कहा कि इस जल में स्नान करने और इसका पान करने से शिव का ज्ञान उपदेश मिलता है, जिससे साधक को ज्ञान की प्राप्ति होती है। इस पवित्र स्थल पर पूजा-अर्चना की परंपरा पुरानी है, जिसे शंकराचार्य ने पुनः स्थापित करने की मांग की है।

स्वराज में भी अधिकार की लड़ाई की जरूरत क्यों?
शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने सवाल उठाया कि स्वतंत्रता के बाद भी हिंदू समाज को अपने पवित्र स्थलों पर पूजा करने का अधिकार नहीं मिला है। उन्होंने कहा कि विदेशी शासन के दौरान कई मंदिरों पर आक्रमणकारियों ने कब्जा कर लिया, परंतु अब स्वराज में भी हमें अपने तीर्थ स्थलों के लिए अधिकार की लड़ाई लड़नी पड़ रही है। शंकराचार्य ने तर्क दिया कि वर्तमान समय में, जब आक्रमणकारी नहीं रहे, तब भी मंदिरों पर अधिकार क्यों नहीं मिल पा रहा है? उन्होंने सरकार और समाज से अपील की कि ज्ञानवापी जैसे प्राचीन तीर्थ स्थलों पर हिंदू समाज को पूजा का अधिकार मिले ताकि वे अपने देवता की आराधना कर सकें।



अधूरे मंदिरों में प्राण प्रतिष्ठा को बताया शास्त्र विरुद्ध
बेमेतरा जिले के सपाद लक्षेश्वर धाम में सवा लाख शिवलिंग मंदिर के निर्माण के दौरान शंकराचार्य ने यह भी कहा कि अधूरे मंदिरों में प्राण प्रतिष्ठा करना शास्त्रसम्मत नहीं है। शंकराचार्य ने इसे केवल भावना और भक्ति का विषय बताया, जिसे वेद-शास्त्र नहीं मानते। उन्होंने स्पष्ट किया कि शिवरात्रि तक मंदिर का निर्माण पूरा करने का प्रयास किया जा रहा है। शंकराचार्य ने कहा कि शास्त्रों के जानकार अधूरे मंदिर में पूजा को कभी स्वीकार नहीं करेंगे, क्योंकि मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा तभी उचित मानी जाती है जब मंदिर पूरी तरह से तैयार हो। 

शिवलिंग मंदिर की विशिष्टता
शंकराचार्य ने सवा लाख शिवलिंग से बने इस मंदिर को विश्व का अनोखा मंदिर बताया और कहा कि यह धार्मिक स्थल लोगों के लिए आध्यात्मिकता और धर्म के प्रति आस्था को नई ऊंचाइयों पर ले जाएगा। उन्होंने इस विशेष मंदिर के निर्माण को सराहते हुए कहा कि यह एक अद्वितीय प्रयास है, जो भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता का प्रतीक बनेगा।

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