मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मस्थान-शाही ईदगाह मामले में मुस्लिम पक्ष ने उच्च न्यायालय इलाहाबाद के आदेश के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की है। यह याचिका उच्च न्यायालय द्वारा सभी 15 मुकदमों...
श्री कृष्ण जन्मस्थान-ईदगाह प्रकरण : मुस्लिम पक्ष पहुंचा सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट के आदेश को दी चुनौती
Oct 26, 2024 10:37
Oct 26, 2024 10:37
जानिए क्या था मामला
यह मामला मथुरा के विवादास्पद श्रीकृष्ण जन्मभूमि परिसर और उसके समीप स्थित शाही ईदगाह मस्जिद को लेकर है। श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट और अन्य हिन्दू संगठन वर्षों से यह दावा कर रहे हैं कि शाही ईदगाह का निर्माण भगवान कृष्ण के जन्मस्थान के क्षेत्र में किया गया है। वहीं मुस्लिम पक्ष ने इस स्थल पर अपने अधिकार को लेकर कानूनी दावे किए हैं। इस विवाद के चलते कुल 15 अलग-अलग मुकदमे विभिन्न पक्षकारों द्वारा दायर किए गए हैं। जिनमें श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट और अन्य हिंदू पक्ष भी शामिल हैं।
उच्च न्यायालय का आदेश और मुस्लिम पक्ष की आपत्ति
23 अक्टूबर को उच्च न्यायालय इलाहाबाद के जस्टिस मयंक कुमार जैन की एकल पीठ ने सभी 15 मुकदमों को एक साथ कंसोलिडेट करने का आदेश दिया था। इस आदेश के अनुसार, सभी मामलों की सुनवाई एक साथ की जाएगी, ताकि समय और न्यायिक संसाधनों की बचत हो सके। इसके अलावा शाही मस्जिद ईदगाह कमेटी की इस आदेश को रद्द करने की याचिका को भी खारिज कर दिया गया था। मुस्लिम पक्ष का दावा है कि मुकदमों को एक साथ कंसोलिडेट करना विधिक दृष्टि से गलत है। क्योंकि सभी मुकदमे अलग-अलग वादी द्वारा अलग-अलग प्रार्थनाओं के साथ दायर किए गए हैं।
मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में दी चुनौती
उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ मुस्लिम पक्ष की ओर से सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता तस्नीम अहमदी और एओआर आरएचए सिकंदर द्वारा रिट याचिका दायर की गई है। शाही मस्जिद ईदगाह कमेटी के सचिव और अधिवक्ता तनवीर अहमद का कहना है कि उच्च न्यायालय का कंसोलिडेशन का आदेश कानूनी रूप से अनुचित और समय से पहले है। उनका तर्क है कि प्रत्येक मुकदमे का विषय और उसके पीछे की मांग अलग-अलग है, इसलिए उन्हें एक ही मुकदमे में एक साथ सुनना न्यायिक प्रक्रिया के सिद्धांतों के विपरीत है।
मुस्लिम पक्ष की दलील
अधिवक्ता तनवीर अहमद ने दावा किया कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय का आदेश "विधि विरुद्ध" है और उनका तर्क है कि अदालत को सभी मुकदमों को एक साथ जोड़ने का निर्णय लेने में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए थी। उनका मानना है कि यह फैसला कानूनी प्रक्रिया का उल्लंघन करता है। क्योंकि हर एक मुकदमा अलग-अलग प्रार्थना के साथ दायर किया गया है और उसे स्वतंत्र रूप से सुनना न्याय की दृष्टि से उचित होगा।
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