वैश्विक पर्यटन नगरी की अबोहवा धीरे-धीरे मौसम के अनुसार बदलती जा रही है। अब गुलाबी सर्द हवाएं चलने लगी हैं, लोगों को गर्मी से निजात मिलने लगी है तो वहीं, शहर धीरे-धीरे प्रदूषण की चपेट में आता जा रहा है। शहर का हृदय स्थल...
Agra News : प्रदूषण की चपेट में ताज नगरी, शहर के किसी भी हिस्से की अबोहवा शुद्ध नहीं...
Oct 21, 2024 16:52
Oct 21, 2024 16:52
बारिश के बाद प्रदूषण का कब्जा
वर्षा का दौर थमने के बाद शहर की खुदी पड़ी सड़कों से वाहनों के गुजरने पर धूल के गुबार उड़ते रहते हैं। दीपावली पर हो रही सफाई के बाद घरों से कूड़ा निकल रहा है। कूड़े का उचित निस्तारण नहीं होने, सड़कों की मैकेनिकल स्वीपिंग नहीं होने और पानी का छिड़काव सभी क्षेत्रों में नहीं किए जाने से हवा में धूल कणों की मात्रा बढ़ गई है। संजय प्लेस, शाहजहां गार्डन और शास्त्रीपुरम में हवा में मानक के तीन गुणा से अधिक धूलकण दर्ज किए गए। शाहजहां गार्डन में मानक के चार गुणा से अधिक अतिसूक्ष्म कण रहे।
जानें कितना है पीएम 2.5 का स्तर
आगरा में दीपावली से ठीक पहले प्रदूषण का स्तर शहर के प्रमुख क्षेत्रों में बढ़ता दिखाई दे रहा है। दिन में सबसे बेहतर शुद्ध हवा देने वाला क्षेत्र दयालबाग भी प्रदूषण की चपेट में है। यहां बीते दो दिनों से प्रदूषण का स्तर बढ़ गया है। यहां सूक्ष्म कणों की मौजूदगी का अधिकतम स्तर 241 माइक्रोन मीटर तक पहुंच गया, जो कि पुअर की श्रेणी में आता है। धूलकणों की मौजूदगी भी 117 एमपीएम होकर मेड्रिड में पहुंच गई है, यानी इस क्षेत्र की अबोहवा बदल गई है, अब यह सांस लेने योग्य नहीं रही। शहर का हृदय स्थल कहा जाने वाला संजय प्लेस इस समय सबसे अधिक प्रदूषण की मार झेल रहा है। यहां पीएम 2.5 का स्तर 221 और अधिकतम 328 एमपीएम तक पहुंच गया है। वेरी पुअर यानी बहुत अधिक खराब की श्रेणी में आता है। यहां पर धूल के कानों की अधिकतम मौजूदगी 153 रिकॉर्ड की गई है।
हर हिस्सा प्रदूषण की चपेट में
इन क्षेत्रों के अलावा ताजमहल के पास शाहजहां गार्डन में पीएम 2.5 की मौजूदगी अधिकतम 202 एमपीएम और धूलकणों की तीव्रता 213 पाई गई है, जो पुअर की श्रेणी में आता है। कुल मिलाकर देखें तो शहर का ऐसा कोई हिस्सा नहीं बचा है, जो प्रदूषण की जद में नहीं हो। जैसे-जैसे दीपोत्सव नजदीक आता जाएगा, शहर की अबोहवा में जहर बढ़ता चला जाएगा। कई बार तो दीपावली के दौरान पीएम 2.5 600 और 700 को पार कर जाता है, इससे एलर्जी के साथ-साथ सांस के रोगियों की तकलीफ बढ़ जाती है। यही नहीं, बुजुर्गों एवं बच्चों पर भी यह मात्रा घातक होती है।
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