अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की स्थापना सर सैयद अहमद ने 19वीं सदी में मुस्लिम समाज में शिक्षा का प्रसार करने के उद्देश्य से की थी। एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर सुप्रीम कोर्ट का बहुप्रतीक्षित फैसला आने की संभावना है।
एएमयू अल्पसंख्यक दर्जा पर जल्द आएगा फैसला : सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार, यूनिवर्सिटी कैंपस में हलचल
Nov 07, 2024 15:49
Nov 07, 2024 15:49
- एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर सुप्रीम कोर्ट का बहुप्रतीक्षित फैसला आने की संभावना है
- 10 नवंबर से पहले निर्णय आने की प्रबल संभावना जताई जा रही है
- एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर विवाद 2004 में उभरा
एएमयू का अल्पसंख्यक दर्जा
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की स्थापना सर सैयद अहमद ने 19वीं सदी में मुस्लिम समाज में शिक्षा का प्रसार करने के उद्देश्य से की थी। यह संस्थान शुरुआत में एक मदरसे के रूप में शुरू हुआ और बाद में एमएओ कॉलेज बना, जिसे 1920 में यूनिवर्सिटी का दर्जा प्राप्त हुआ। यूनिवर्सिटी का उद्देश्य मुस्लिम समाज को आधुनिक शिक्षा से जोड़ना था, जिससे वे समाज में बेहतर योगदान दे सकें। आज भी यह संस्थान एक उच्च शिक्षा केंद्र है, जिसमें सभी धर्मों के छात्र अध्ययन करते हैं और यहां किसी भी प्रकार का धार्मिक भेदभाव नहीं होता।
अल्पसंख्यक दर्जे पर सरकार और न्यायालय की भूमिका
एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर विवाद 2004 में उभरा, जब तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने एक पत्र जारी करते हुए एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान मानते हुए प्रवेश नीति में बदलाव का अधिकार दिया। इसके बाद एएमयू ने एमडी-एमएस के कोर्स में छात्रों के लिए आरक्षण नीति लागू की। इस बदलाव पर कुछ लोगों ने आपत्ति जताई और मामला इलाहाबाद उच्च न्यायालय तक पहुंचा। एकल और युगल पीठ ने अपने फैसले में एएमयू के पक्ष में निर्णय नहीं दिया। जिसके बाद एएमयू ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। उच्चतम न्यायालय ने इस पर "यथास्थिति" बनाए रखने का आदेश जारी किया था। इसके बाद भाजपा सरकार ने एएमयू के पक्ष में दाखिल हलफनामे को चुनौती दी, जिससे मामला एक बार फिर न्यायालय के समक्ष विचाराधीन है।
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पूर्व छात्रों और शिक्षकों की उम्मीदें
एएमयू के पूर्व छात्र और शिक्षकों का मानना है कि यह संस्थान शिक्षा का ऐसा केंद्र है जिसने मुस्लिम समाज सहित सभी धर्मों के छात्रों को उच्च शिक्षा का अवसर प्रदान किया है। पूर्व छात्र अरशद हुसैन ने कहा कि एएमयू एक ऐसा संस्थान है जो शिक्षा में पिछड़े मुस्लिम समाज को शिक्षित करने की सोच के साथ बनाया गया था। वह आशा करते हैं कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे के पक्ष में होगा, ताकि यूनिवर्सिटी अपनी मौलिक पहचान बनाए रख सके। पूर्व छात्र इंजीनियर आगा यूनुस का कहना है कि एएमयू का सफर मदरसे से कॉलेज और फिर विश्वविद्यालय तक पहुंचने का रहा है, जिसमें समाज को आधुनिक और प्रगतिशील शिक्षा देने का सर सैयद अहमद का सपना था। वे आशा व्यक्त करते हैं कि सुप्रीम कोर्ट एएमयू का अल्पसंख्यक दर्जा बनाए रखेगा, जिससे इसे देश और विदेश में अपनी विशेष पहचान बनाए रखने में मदद मिलेगी।
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सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार
इस संभावित फैसले के चलते एएमयू के परिसर में शिक्षकों, छात्रों और कर्मचारियों के बीच कई तरह की चर्चा है। परिसर में इस मामले को लेकर उत्सुकता का माहौल है और सभी को सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का बेसब्री से इंतजार है। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का यह निर्णय न केवल इसके छात्रों बल्कि पूरे अल्पसंख्यक समाज पर प्रभाव डालने वाला है और यह भारत में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक घटना साबित हो सकता है। ऐसे में सभी की निगाहें सुप्रीम कोर्ट के संभावित फैसले पर हैं, जो एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर पिछले कई सालों से चल रहे इस विवाद को समाप्त कर सकता है।
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