AMU ने फिर रचा इतिहास : अब धान में लगने वाले झंडा रोग की बीमारी का होगा खात्मा, कई वर्षों तक किया रिसर्च 

अब धान में लगने वाले झंडा रोग की बीमारी का होगा खात्मा, कई वर्षों तक किया रिसर्च 
UPT | अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय

Jul 16, 2024 16:01

एएमयू के पौधा संरक्षण विभाग के चेयरमैन डॉक्टर मुजीबुर रहमान और उनकी टीम के द्वारा पता लगाया गया कि धान के पौधों में होने वाली बीमारियां बीज से ही शुरू हो जाती हैं...

Jul 16, 2024 16:01

Aligarh News : अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय सदैव अपने अलग अलग शोध को लेकर चर्चाओं में रहता है। इसके साथ ही वह नए-नए कीर्तिमान स्थापित करता हुआ नजर आ रहा है। वहीं एएमयू ने एक बार फिर अपने परीक्षण से इतिहास रच दिया। दरअसल अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के द्वारा 10 वर्ष के कड़े शोध के बाद अब धान की पैदावार करने वाले किसानों के चेहरे पर मुस्कान साफ तौर पर देखने को मिलेगी। शोध में धान पैदावार में लगने वाली बीमारी का पता लगा लिया गया है। 

एएमयू द्वारा धान में लगने वाले झंडा रोग पर किया गया परिक्षण 
लंबे समय से धान की खेती करने वाले किसान झंडा रोग से परेशान थे। इस बीमारी के चलते किसानों की कड़ी मेहनत मिट्टी में तब्दील हो जाती थी। धान में लगने वाले रोग की पहचान और उससे बचाव का जिम्मा अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और केंद्र सरकार के साथ-साथ उत्तर प्रदेश सरकार के द्वारा अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पौधा संरक्षण विभाग को सौंपा था। 10 वर्ष पहले यह जिम्मेदारी इस विभाग को सौंपने के बाद महत्वपूर्ण सहयोग सरकार और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के द्वारा पौधा संरक्षण विभाग का किया गया। पौधा संरक्षण विभाग के चेयरमैन डॉक्टर मुजीबुर रहमान के द्वारा उत्तर प्रदेश के अलग-अलग जिलों में पहुंचकर अपनी टीम के साथ इस रोग की पहचान के लिए कई शोध किया। 

 यह बीमारी वनस्पति के चावलों में ज्यादा होती
 एएमयू के पौधा संरक्षण विभाग के चेयरमैन डॉक्टर मुजीबुर रहमान और उनकी टीम के द्वारा पता लगाया गया की धान के पौधों में होने वाली बीमारियां बीज से ही शुरू हो जाती हैं। जिसके बाद यह बिमारी जड़ों को भी कमजोर कर देती है। इस रोग के चलते धान के पौधे पीले पड़ने लग जाते हैं और धान का तना पेड़ों से ज्यादा लंबा हो जाता है। इस बीमारी में सबसे अहम भूमिका यह है कि यह बीमारी वनस्पति के चावलों में ज्यादा होती है। इन धानों में पानी की खपत सबसे ज्यादा होती है। जिसके चलते यह बीमारी सबसे ज्यादा इन्हीं चावलों के पौधों में पहुंचती है। अन्य धान की फसल में भी इस बीमारी के लगने की काफी आशंका इसलिए रहती है कि किसान पहले सहारनपुर मेरठ मुजफ्फरनगर अन्य जगहों पर धान की खेती किया करते थे। जहां पर पानी की खपत अच्छी थी। लेकिन अब किसान अलीगढ़, हाथरस, एटा, मैनपुरी, कासगंज, सहित अन्य जिलों पर धान की फसल की पैदावार कर रहे हैं। जबकि यहां पानी की खपत ठीक नहीं होने के बावजूद ये फसल की जा रही है। 

बीमारी को ख़तम करने का तरीका क्या है ? 
वहीं शोध में पता चला है इस बीमारी को अगर खत्म करना है तो सबसे पहले बीज में इस बीमारी की पकड़ सबसे ज्यादा मजबूत होती है। अगर इसे खत्म करना है तो सबसे पहले बीज पर आपको कुछ केमिकल लगाने होंगे। जिससे यह बीमारी जड़ से खत्म हो जाएगी। इस बीमारी को लेकर शोध में बड़ी बात ये सामने आई है। यह बीमारी एक तने से दूसरे तने तक पहुंचती है। फिर यह बीमारी एक खेत से दूसरे खेत व एक गांव से दूसरे गांव में पहुंचती है। इसको खत्म करने के लिए जब आप धान की फसल बोये तो सबसे पहले बीज के ऊपर  बिनोमियल है और कार्बेन्डाजिम केमिकल का प्रयोग करके बीजों पर लगाया जाए।

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