UPPCL : उपभोक्ता परिषद सुनवाई में खोलेगा निजीकरण की पोल, 80 हजार करोड़ की DVVNL-PuVVNL की एक रुपये में दी गई जमीन

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Jan 28, 2025 08:27

उपभोक्ता परिषद ने मुख्यमंत्री से मांग की है कि दिसंबर 2024 में जो मसौदा पास किया गया था, उसमें जो भी कमियां सामने आई है, उसकी सीबीआई जांच कराई जाए। प्रदेश के उपभोक्ताओं के तरफ से संगठन को ये जानने का पूरा अधिकार है कि निजीकरण करने की दिशा में जल्दबाजी में वित्तीय व तकनीकी मानकों का उल्लंघन क्यों किया गया।

Lucknow News : प्रदेश की बिजली कंपनियों की तरफ से वार्षिक राजस्व आवश्यकता  (एआरआर) वर्ष 2025-26 पर विद्युत नियामक आयोग (UPERC) के कार्रवाई शुरू करने के साथ उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन लिमिटेड (UPPCL) की चिंता बढ़ गई है। उसके निजीकरण के निर्णय पर लगातार सवाल उठ रहे हैं। इस बीच उपभोक्ता परिषद ने पावर कारपोरेशन को एनर्जी टास्क फोर्स फोर्स में सबसे पहले मंजूर कराए गए मसौदे की पोल खोलने की चेतावनी दे डाली है। 

कम आंकी गई 80000 करोड़ की दोनों बिजली कंपनियों की नेटवर्थ 
संगठन ने कहा है कि बिजली दर की सुनवाई में प्रदेश में हर बिजली कंपनी में जाकर वह निजीकरण की जल्दबाजी में पावर कारपोरेशन प्रबंधन की सच्चाई उजागर करेगा। इसमें प्रदेश की जनता को यह बताया जाएगा कि दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड (DVVNL) व पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड (PuVVNL) के निजीकरण को लकर किस प्रकार से प्रदेश के 42 जिलों की जमीन को महज एक रुपये में देते हुए 80000 करोड़ की दोनों बिजली कंपनियों की नेटवर्थ कम आंकी गई। 

एनर्जी टास्क फोर्स की बैठक में दो मसौदे कराए गए मंजूर
पावर कारपोरेशन के एनर्जी टास्क फोर्स की बैठक में 5 दिसंबर 2024 को पास किए गए मसौदे में पहले ही कई कमियों का खुलासा हो चुका है। उपभोक्ता परिषद लगातार इसका विरोध करता रहा। इसके बाद फिर 9 जनवरी 2025 को एनर्जी टास्क फोर्स से एक नया मसौदा पास कराते नए सिरे से ट्रांजैक्शन एडवाइजर रखने की कार्रवाई शुरू की गई। उपभोक्ता परिषद ने कहा है कि पावर कारपोरेशन अगर ये सोचता है कि इस तरह अब पुराना मुद्दा दब गया है, तो यह उनकी सबसे बड़ी भूल है। पुराने मामले में जो भी मंजूरी एनर्जी टास्क फोर्स से ली गई है, उसकी सीबीआई जांच कराई जाए। 

पहले मसौदे में खामियां उजागर, सीबीआई जांच की मांग
उपभोक्ता परिषद ने मुख्यमंत्री से मांग की है कि दिसंबर 2024 में जो मसौदा पास किया गया था, उसमें जो भी कमियां सामने आई है, उसकी सीबीआई जांच कराई जाए। प्रदेश के उपभोक्ताओं के तरफ से संगठन को ये जानने का पूरा अधिकार है कि निजीकरण करने की दिशा में जल्दबाजी में वित्तीय व तकनीकी मानकों का उल्लंघन क्यों किया गया। यह कोई छोटा मामला नहीं है। यदि उपभोक्ता परिषद ने इन सभी मामलों की पोल नहीं खोली होती, तो शायद आज मामला बहुत आगे बढ़ चुका होता और कहीं ना कहीं इससे सीधे तौर पर देश और प्रदेश के उन उद्योगपतियों को फायदा मिलता, जिनकी नजर उत्तर प्रदेश के चलते हुए विद्युत वितरण तंत्र पर लगी हुई है।

विद्युत नियामक आयोग की आपत्तियों में खामियों को बनाया जाएगा आधार
उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष व राज्य सलाहकार समिति के सदस्य अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि जितने भी मामले पहले एनर्जी टास्क फोर्स में मंजूर कराए गए थे, उन सभी मुद्दों को उपभोक्ता परिषद आम जनता के बीच में ले जाएगा। बिजली दर की सुनवाई शुरू होते ही विद्युत नियामक आयोग की आपत्तियों में भी उन्हें प्रमुख आधार बनाया जाएगा।
 

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